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Thursday, April 25, 2024

आखिर कौन हैं दलितों का नेता ?

parliament of indiaदेश मे अगर किसी भी हिस्से से दलितो के उत्पीङन की खबर आती हैं तो हमारी राजनीति इसे दलितो की समस्या के नजरिए से देखने के बजाए अपनी सियासी नफा–नुकसान के नजरिए से देखने लगती हैं । आने वाले 15 अगस्त को देश का आजाद हुए पूरे 69 वर्ष हो जाएंगे लेकिन आज भी दलितो की स्थिति में आमूल – चूल बदलाव ही हो पाए हैं ।

दलितो के मसीहा बनकर उनके नाम पर सत्ता हासिल करने वालो की लम्बी लिस्ट है पर दलितो के लिए कास करने वालो के नामों की लिस्ट बनाने की जरुरत ही नही हैं क्योकि इनकी संख्या इतनी कम है कि इनके नाम उंगलियों पर ही गिने जा सकते हैं । 121 करोङ की आबादी वाले इस देश मे दलितो की जनसंख्या 16 प्रतिशत है लेकिन इनके नाम पर राजनीति करने वाले नेताओ की संख्या पूरी 100 प्रतिशत हैं ।

चुनाव के समय सबका दलित प्रेम जाग जाता है और चुनाव के समय जितनी जल्दी एंव तेजी से ये प्रेम जागता है चुनाव बाद उससे भी ही जल्दी एंव तेजी से ये प्रेम खत्म हो जाता हैं । सही मायनों में दलितो के हित मे बात करने वालो में और उनके लिए काम करने वालों मे डॉ भीमराव अम्बेडकर का नाम सबसे ऊपर हैं । अगर डॉ अम्बेडकर नही हो तो आज दलितो की जो स्थिति हैं, उससे भी बदतर स्थिति होती ।

डॉ अम्बेडकर ने जब दलितो के लिए आरक्षण और अलग चुनाव प्रणाली की मांग की थी तब उनकी यह मांग नही मानी गयी थी लेकिन जैसे ही उन्होनें हिन्दू धर्म छोङकर बौद्द धर्म अपनाने की धमकी दी वैसे ही उनकी यह मांग मान ली गई और पूना पैक्ट समझौता हो गया ।

पूना पैक्ट समझौते के कारण दलितो को बहुत लाभ मिला हालांकि उन्हे पूरा आरक्षण नही मिला सका लेकिन कम से कम आधा – अधूरा आरक्षण तो मिल ही गया था । इस समझौते के कारण के ही दलितो के लिए शिक्षा के लिए दरवाजे खुल गए ।

1929–1930 के अपने एक बयान मे डॉ अम्बेडकर ने गांधी जी से कहा था कि ‘ मैं सारे देश की आजादी की लङाई के साथ उन एक चौथाई जनता के लिए भी लङना चाहता हूँ जिस पर कोई ध्यान नही दे रहा हैं । आजादी की लङाई मे सारा देश एक हैं और मैं जो लङाई लङ रहा हूँ , वह सारे देश के खिलाफ हैं , मेरी लङाई बहुत कठिन हैं ।

हालांकि बाद मे कई लोग दलितो के हक की लङाई जारी रखने लिए सामने आए पर उन्होने दलितो की लङाई के नाम पर गठित की डॉ अम्बेडकर की पार्टी को खुद के ही लङाई की भेंट चढा दिया । डॉ अम्बेडकर द्वारा खङी की गई रिपब्लिक पार्टी बाद के दिनों मे 4 भागों मे बंट गई ।

एक भाग रामदास अठावले के नेतृत्व में पहले शिवसेना में फिर बाद मे भाजपा मे शामिल हो गया । डॉ अम्बेडकर के पोते प्रकाश अम्बेडकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ( एनसीपी ) मे शामिल हो गए । एक भाग जिसमे योगेंद्र कबाङे थे वे भी बाद मे भाजपा मे शामिल हो गए ।

दलितो की स्थिति आज भी बहुत ज्यादा अच्छी नही हुई हैं लेकिन समाज का एक बङा तबका जो पढा – लिखा है पर जमीनी हकीकत से आज भी कोसो दूर हैं अपने आस – पास के शहरी वातावरण को देखकर ही यह अनुमान लगा लेते हैं कि दलितो की स्थिति बहुत सुधर गई हैं लेकिन आज भी वास्तविकता समाज के ग्रामीण इलाकों मे मौजूद लोगो को ही पता हैं कि आज भी ग्रामीण इलाको में दलितो के साथ कैसा भेदभाव हो रहा हैं और उन्हें किस तरह से छूआछात का शिकार होना पङता हैं और जाति सूचक शब्दो का सामना करना पङ रहा हैं ।

देश में आरक्षण व्यवस्था लागू तो हो गई है लेकिन जिस व्यक्ति तक इस व्यवस्था का लाभ पहुँचना चाहिए उस व्यक्ति तक आज भी इस व्यवस्था का लाभ नही पहुँच रहा हैं दलित समाज आज न केवल समाज के अन्य लोगों द्वारा प्रताङित किया जा रहा हैं बल्कि अपने ही समाज मे मौजूद कुछ विसंगतियो के कारण आगे नही बढ पा रहा हैं ।

दलित समाज मे महिलाओं की स्थिति आज भी जस की तस बनी हुई हैं हालांकि अपवाद के तौर पर मायावती इस समय दलितो की मसीहा बनने के प्रयास मे लगी हई हैं , जो खुद एक दलित समाज से आई हुई महिला हैं लेकिन उन्होने दलित महिलाओं के लिए अब तक ऐसा कोई विशेष काम नही किया जिसके बल पर वे दलित महिलाओं का प्रतिनिधित्व कर सकें ।

मायावती ने तो अब तक के अपने राजनैतिक सफर में एक भी अपनी जैसी दलित महिला का नेतृत्व तैयार नही कर पाई हैं । दलितो के नाम पर राजनीति करने का कापीरॉइट रख चुकी मायावती खुद प्राइवेट प्लेन से सफर करती हैं , एक से बढकर एक मंहगे कपङे पहनती हैं , हजार – हजार रुपय के नोटो की माला पहनती हैं लेकिन अपने उपर किए जाने इन खर्चो को वे कभी दलितो पर खर्च नही करती हैं ।

चुनाव के घोषणा के बाद मायावती जैसे कई नेता दलित नेता एकाएक देश की राजनीति मे प्रकट हो जाते हैं और प्रकट होकर चुनावी घोषणा पत्र मे दलितो के लिए तमाम तरह के काम करने की घोषणा कर दलितो को मुंगेरी लाल के सपने दिखा जाते हैं और चुनाव बाद तू कौन और मैं कौन के रास्ते पर चल पङते हैं और वादो से अन्जान बन जाते हैं ।

दलित समाज के भी समझना होगा कि हर दलित नेता उनका अपना नही हो सकता हैं । अगर ऐसे नेता होते तो आज तक न जाने कितने दलित नेता समाज मे आ चुके होते और दलितो के लिए काम कर रहे होते पर वास्तव मे दलितो के ले काम करने वाले बहुत कम ही नेता हैं । दलितो को अपने समाज के अन्दर मौजूद कुछ कमियों को दूर करना होगा और महिलाओं को आगे बढना होगा । दलित समाज के स्त्री एंव पुरुषों दोने को शिक्षित होना पङेगा ताकि हर बार की तरह वे अपना राजनैतिक प्रयोग होने से बचा सकें ।

लेखक :- सुप्रिया सिंह छप्परा बिहार
Mail id – singh98supriya@gmail.com

 

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