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Friday, March 29, 2024

मुज़फ्फरनगर- सरकार को क्लीन चिट, मीडिया कठघरे में

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लखनऊ- मुजफ्फरनगर दंगों की जांच करने वाली जस्टिस विष्णु सहाय कमीशन ने दंगों के लिए अखिलेश यादव सरकार को क्लीन चिट दे दी है, लेकिन इसके लिए प्रशासन, पुलिस और इंटेलिजेंस तीनों को जिम्मेदार माना है। दंगे भड़काने के लिए कुछ सियासी पार्टियों के नेताओं और अफवाहें फैलाने के लिए अखबारों और सोशल मीडिया को जिम्मेदार माना गया है। रिपोर्ट में मीडिया को भी कठघरे में खड़ा किया गया है। आयोग का मानना है कि मीडिया ने दंगों से सम्बन्धित घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर रिपोर्टिंग की और अफवाहें भी फैलाईं। कुछ खबरों ने तो दंगों को भड़काया भी।

ये रिपोर्ट विधानसभा में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पेश की। इस रिपोर्ट में दंगे कराने, भड़काने और उन्हें ना रोक पाने की दर्जन भर वजहें गिनाई गई हैं। दंगों को लेकर एक झूठे स्टिंग के शिकार मंत्री आजम खान चाहते हैं कि रिपोर्ट में मीडिया के रोल पर और विस्तृत बातें शामिल होनी चाहिए थी। रिपोर्ट में बीजेपी एमएलए संगीत सोम पर फर्जी वीडियो शेयर कर दंगा भड़काने और दूसरे नेताओं पर भड़काऊ भाषण देने के इल्जाम हैं। दंगों के आरोपी बीजेपी विधायक सुरेश राणा कहते हैं कि उनके खिलाफ इल्जाम झूठे हैं।

मुजफ्फरनगर दंगे की जांच करने वाले जस्टिस विष्णु सहाय आयोग ने दंगों के लिए मुख्य रूप से तत्कालीन एसएसपी सुभाष चंद्र दुबे और तत्कालीन एलआईयू इंस्पेक्टर प्रबल प्रताप सिंह को दोषी माना है। आयोग ने दोनों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई करने को कहा है। जस्टिस सहाय की रिपोर्ट विधानसभा में रविवार को पेश की गई।

मुजफ्फरनगर दंगे सरकार के फैसलों के कारण
वहीँ दूसरी तरफ मुजफ्फरनगर दंगे की जांच के लिए बने जस्टिस विष्णु सहाय आयोग ने पूरे मामले में शुरुआती घटना के बाद सरकार के फैसलों पर ही अंगुली उठाई है। आयोग ने यहां तक कह दिया है कि सरकार के एक फैसले से तो बहुसंख्यक समाज खास तौर पर जाट समुदाय में तीखी प्रतिक्रिया हुई।
उनमें यह संदेश भी गया कि सरकार मुस्लिमों की पक्षधर है और उनके प्रभाव में काम हो रहा है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आयोग की रिपोर्ट रविवार को विधानसभा में रखा।

आयोग ने दंगे भड़कने के 14 कारण गिनाए हैं। बसपा व भाजपा नेताओं के बारे में कहा है कि चूंकि उनके खिलाफ दंगा भड़काने का मुकदमा दर्ज है, अत: आयोग उनके खिलाफ संविधान के अनुच्छेद 20(2) के तहत सरकार को कोई कार्रवाई करने के लिए विधिक रूप से नहीं कह सकता।

राज्य सरकार ने 27 अगस्त 2013 से 15 सितंबर 2013 के बीच मुजफ्फरनगर में हुए सांप्रदायिक दंगों की जांच के लिए जस्टिस विष्णु सहाय की अध्यक्षता में आयोग गठित किया था। आयोग ने 700 पन्नों में अपनी रिपोर्ट में दंगे के कारणों का विस्तार से ब्योरा दिया है।

छह खण्डों की रिपोर्ट में आयोग ने पाया है कि मुजफ्फरनगर, शामली, सहारनपुर और बागपत और मेरठ में इस दौरान हुए दंगे का मुख्य कारण अभिसूचना तंत्र का फेल होना था।

आयोग ने पाया कि 7 सितंबर 2013 को जब नगला मण्डौर में महापंचायत हुई तो उसकी रिकार्डिंग नहीं की गई। आयोग ने कहा कि तत्कालीन एसएसपी सुभाष चंद्र दुबे ने दायित्वों को निभाने में शिथिलता और लापरवाही बरती। वह इन घटनाओं को प्रभावी रूप से रोकने में भी नाकाम रहे।

इसी के साथ तत्कालीन एलआईयू इंस्पेक्टर प्रबल प्रताप सिंह ने भी महापंचायत में आने वाले लोगों की संख्या के बारे में ठीक से इनपुट नहीं दिया। उनके मुताबिक भीड़ 15-20 हजार के आसपास होने की बात कही गई लेकिन भीड़ 40-50 हजार की थी। खुफिया एजेंसियां हालात की गंभीरता को समझने में नाकाम रहीं।

आयोग ने कहा कि प्रमुख सचिव गृह आरएम श्रीवास्तव, सीओ जगत राम जोशी, डीएम कौशल राज शर्मा, एसएसपी सुभाष चंद्र दुबे ही दंगों के उत्तरदायी थे। आयोग ने कहा कि 30 अगस्त को डीएम कौशल राज शर्मा द्वारा कादिर राणा और अन्य व्यक्तियों से ज्ञापन लिए जाने के कारण हिन्दू आक्रोशित हो गए।

ऐसा होना ही बाद में दंगे होने का कारण बना लेकिन आयोग ने माना है कि अगर कौशल राज शर्मा ज्ञापन न लेते तो क्या करते? उनके पास कोई और विकल्प भी नहीं था और उस दिन मुजफ्फरनगर में कुछ भी हो सकता था।

रिपोर्ट के मुताबिक 7, सितम्बर 2013 को दंगों वाले दिन स्थानीय अभिसूचना इकाई के तत्कालीन निरीक्षक प्रबल प्रताप सिंह द्वारा मुजफ्फरनगर के मण्डौर में आयोजित महापंचायत में शामिल होने जा रहे लोगों की संख्या की सही खुफिया रिपोर्ट नहीं दे पाने, महापंचायत की रिकार्डिंग ना किए जाने तथा तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सुभाष चन्द्र दुबे की ढिलाई और नाकामी के कारण मुजफ्फरनगर में दंगे हुए जिनकी आग सहारनपुर, शामली, बागपत तथा मेरठ तक फैली।

गौरतलब है कि मुजफ्फरनगर में सितम्बर 2013 को हुए साम्प्रदायिक दंगों में कम से कम 62 लोग मारे गए थे तथा सैकड़ों अन्य घायल हो गए थे। इन दंगों की आग शामली, सहारनपुर, बागपत तथा मेरठ तक फैल गई थी। सरकार ने दंगों से पहले हुए कवाल काण्ड से लेकर 9 सितम्बर, 2013 तक घटित घटनाओं की जांच के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश विष्णु सहाय की अध्यक्षता में एकल सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया था।

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