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Thursday, April 18, 2024

सिद्धू की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं फिर मार रही हिलोरे

navjot_singh_sidhuपूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं अब खुलकर सामने आ चुकी हैं। सिद्धू ने क्रिकेट से सन्यास लेने के बाद भारतीय जनता पार्टी से अपने राजनैतिक कैरियर की शुरुआत की थी और भाजपा ने भी पंजाब में सिद्धू की लोकप्रियता को देखते हुए उन्हें चार बार संसद सदस्य से नवाजा। सिद्धू की पत्नी डॉ. नवजोत कौर सिद्धू को पंजाब की अकाली-भाजपा सरकार में स्वास्थ्य मंत्री का पद प्रदान किया गया परंतु पिछले लोकसभा चुनाव में नवजोत सिंह सिद्धू को अमृतसर सीट से टिकिट नहीं मिली तो वे खफा हो गए और पार्टी की ओर से उन्हें राज्यसभा में भेजने के बावजूद उनका असंतोष बना रहा और उन्होंने कुछ समय पूर्व ही राज्यसभा सदस्यता से इस्तीफा दिया तो इसका यह अर्थ निकाला गया कि सिद्धू का भाजपा से मोहभंग हो गया है। इसी बीच सिद्धू ने अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी में शामिल होने पर गंभीरता से सोचना प्रारंभ कर दिया परंतु अरविन्द केजरीवाल ने जब उनकी शर्ते मंजूर नहीं की तो सिद्धू ने आम आदमी पार्टी में शामिल होने का इरादा बदल दिया। सिद्धू ने स्वयंं एक बयान में कहा कि अरविंद केजरीवाल उन्हें पंजब विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के शोपीस के रूप में इस्तेमाल करना चाहते थे और आप की सरकार गठित होने पर उनकी पत्नी डॉ. नवजोत कौर सिद्धू को उसमें मंत्री पद का पुरस्कार कर दिया जाता। अगर सिद्धू को अरविंद केजरीवाल का यह आफर स्वीकार नहीं था तो यह समझना कठिन नहीं है कि सिद्धू की राजनैतिक महत्वाकांक्षाएं किस कदर हिलौरे मार रही है।

अरविन्द केजरीवाल से सहमति नहीं बनने पर नवजोत सिंह सिद्धू ने अपनी एक नयी राजनीतिक पार्टी बनाने की घोषणा कर दी और उन्होंने उसका नामकरण भी कर दिया आवाज ए पंजाब पार्टी। सिद्धू इस नई पार्टी का संगठनात्मक ढांचा तैयार करने के लिए कोशिशों में जुटे ही थे कि इस बीच एक न्यूज चैनल द्वारा कराए गए चुनाव पूर्व सर्वेक्षण के नतीजों से यह संकेत मिल गए कि पंजब विधानसभा के अगले साल होने जा रहे चुनावों में कांग्रेस पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर सकती है। ओपीनियन पोल के नतीजों में यह भी बताया गया कि पंजाब की पूर्व कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह मुख्यमंत्री पद के लिए मतदाताओं की पहली पसंद हैं।

ओपीनिसन पोल के इन नतीजों ने नवजोत सिंह सिद्धू के मन में उस कांग्रेस के प्रति मोह जगा दिया हे जिसकी कभी वे कटु आलोचना करते नहीं थकते थे। बताया जाता है कि सिद्धू की अब कांग्रेस नेतृत्व से चर्चाएं प्रारंभ हो चुकी हैं। कांग्रेस को ओपीनियन पोल के नतीजों में विधानसभा की सर्वाधिक सीटों पर जीत की संभावनाएं तो व्यक्त की गई हैं परंतु त्रिशंकु विधानसभा के गठन की आशंका भी व्यक्त की गई है। कांग्रेस को अगर सत्ता की चौखट तक पहुंचना है तो उसे किसी न किसी राजनीतिक दल का समर्थन लेना ही पड़ेगा। इसलिए कांग्रेस को भी नवजोत सिंह सिद्धू आम आदमी पार्टी में शामिल होने के लिए जो शर्ते पेश की थी उनसे भी कांग्रेस अनभिज्ञ नहीं है परंतु सत्ता की चौखट तक पहुंचने के लिए कुछ समझौते तो करना ही पड़ेंगे। कांग्रेस सिद्धू की शर्ते मानने के लिए यह शर्त रख सकती है कि सिद्धू अपनी आवाज ए पंजाब पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दें। सिद्धू इसके लिए भी तैयार हो सकते हैं परंतु वे विधानसभा चुनावों के लिए प्रत्याशिायों के चयन मं अपनी पसंद को भी तरजीह की अपेक्षा कांग्रेस से रखेंगे। कांग्रेस भी सत्ता की दहलीज तक पहुंचने के लिए कुछ समझौते करने तैयार दिख रही है। कांग्रेस ने सिद्धू को डिप्टी सीएम पद देने का आश्वासन दिया है।

इसके साथ ही सिद्धू की पार्टी को 13 सीटें भी चुनावी मैदान में उतरने के लिए दी जाएगी। अब सवाल यह उठता है कि अगर सिद्धू ने यह शर्त रख दी थी कि विधानसभा की सभी 117 सीटों पर प्रत्याशी उनकी मर्जी से ही तय किए जाएं तो कांग्रेस उसके लिए शायद ही तैयार हो लेकिन अगर सिद्धू ने अपने रूख से पीछे हटना स्वीकार नहीं किया तो दोनों पार्टियों के बीच गठजोड़ की संभावनाओं पर भी विराम लग सकता है। जिसका नुकसान कांग्रेस से अधिक सिद्धू की पार्टी को होगा। इसलिए सिद्धू को कांग्रेस के साथ गठजोड़ का विकल्प ही चुनना पड़ेगा। सिद्धू का भाजपा के साथ संबंध विच्छेद हो चुका है और आम आदमी पार्टी में उनके शामिल होने की चर्चाओं पर उन्होंने खुद ही विराम लगा दिया है। अगर सिद्धू को अपने राजनैतिक कैरियर को और संवारना है तो इस समय कांग्रेस के साथ गठजोड़ करने के अलावा उनके सामने और कोई चारा भी नहीं है। देखना यह है कि चतुरमुजान सिद्धू अब कौन सा रास्ता अख्तियार करते है वैसे उनके बारे में यह राय तो बन ही चुकी है कि उन राजनेताओं की भीड़ में एक अलग चेहरा बनने की कोई ख्वाहिश उनके दिल में भी नहीं है जो अपने राजनैतिक हित साधने के लिए अपने सिद्धांतों से भी समझौता कर सकते हैं।

लेखक :- कृष्णमोहन झा
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और आईएफडब्ल्यूजे के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं)






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