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Friday, March 29, 2024

ज्यादा लागत वाली फसल सस्ते में कैसे बेच दें? विदेशी तेलों के दाम आधे होने से किसान परेशान

विदेशी तेलों के दाम आधे रह गए हैं। इससे देशी तेलों के लिए मार्केट नहीं बन रहा है। किसानों को सस्ते में अपनी फसलें बेचनी पड़ रही हैं। विदेशों में तेल की कीमतें काफी बढ़ जाने पर सरकार ने आयात शुल्क बहुत कम कर दिया था।

Edible Oil Prices : विदेशी तेलों के दाम आधे रह जाने से भारतीय किसानों को हो रहा नुकसान
हाइलाइट्सविदेशों में दाम टूटने से सभी देशी और आयातित तेल हुए सस्ते
सरसों, मूंगफली और सोयाबीन तेल में आई गिरावट
चारे के लिए खल की कमी होने से डेयरी कंपनियां बढ़ा रहीं दूध के दाम
नई दिल्ली : विदेशों में तेल-तिलहन के दाम टूटने के कारण दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में सोमवार को देशी और आयातित सहित लगभग सभी तेल-तिलहनों के भाव (Edible Oil Prices) गिर गए। सरसों, मूंगफली, सोयाबीन तेल-तिलहन, बिनौला तेल सहित कच्चा पामतेल (CPO) और पामोलीन तेल में गिरावट आई। बाजार सूत्रों ने बताया कि मलेशिया एक्सचेंज सोमवार को बंद है, जबकि शिकागो एक्सचेंज में कारोबार के रुख का देर रात में पता चलेगा। सूत्रों ने कहा कि पिछले साल नवंबर के दौरान मंडियों में कपास की आवक 2-2.25 लाख गांठ की थी, जो घटकर इस बार लगभग एक लाख गांठ रह गई है। उक्त अवधि के दौरान पिछले साल पांच लाख गांठ कपास का निर्यात हुआ था, जो इस बार घटकर लगभग एक लाख गांठ रह गया है। यानी किसान सस्ते में अपनी उपज बेचने से बचते हुए कम मात्रा में बाजार में अपनी फसल ला रहे हैं।
डेयरी कंपनियां इसलिए बढ़ा रहीं दूध के दाम
पशु चारे की सबसे अधिक मांग को पूरा करने में बिनौला खल का योगदान होता है। देश में सर्वाधिक मात्रा में यानी लगभग 110 लाख टन बिनौला खल निकलता है। आयातित तेलों के दाम लगभग आधे टूट जाने से सरसों, मूंगफली और बिनौला की तेल पेराई मिलों को पेराई करने में नुकसान है। इन तेल मिलों की हालत खराब है। सोयाबीन के डी-आयल्ड केक (DOC) की मांग नहीं है। ऐसे में मवेशियों के चारे के लिए खल की कमी हो सकती है। संभवत: यही वजह है कि डेयरी कंपनियां दूध के दाम बढ़ा रही हैं।
आयातित तेलों पर लगे अधिक आयात शुल्क
सूत्रों ने कहा कि पामोलीन और अन्य सस्ते आयातित खाद्य तेलों के आगे कोई देशी तेल टिक नहीं पा रहा है। सरकार को जल्द से जल्द सूरजमुखी और अन्य आयातित तेलों पर आयात शुल्क अधिक से अधिक लगा देना चाहिए। यह कदम देश के तेल-तिलहन उत्पादन को बढ़ाने के लिए बेहद जरूरी है। जिस पामोलीन का दाम लगभग छह महीने पहले 2,150 डॉलर प्रति टन था, वह भाव अब कांडला बंदरगाह पर 1,020 डॉलर प्रति टन रह गया है।
किसानों के लिए खड़ी हुई परेशानी
सूत्रों ने कहा कि इस सस्ते आयातित तेल के आगे देश के किसान अपनी अधिक लागत वाली तिलहन फसल कौन से बाजार में बेचेंगे? ऐसे में तो किसान हतोत्साहित होंगे और तेल-तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता की बात बेमानी हो जाएगी। सूत्रों ने कहा कि सरकार को तेल-तिलहन बाजार की गतिविधियों पर बारीक नजर रखनी चाहिए, तभी स्थिति को काबू में लाया जा सकेगा। उन्होंने कहा कि विदेशों में जब तेल-तिलहनों के दाम मजबूत थे, उस वक्त सरकार ने सूरजमुखी और सोयाबीन तेल पर आयात शुल्क शून्य कर दिया।
जब विदेशों में दाम आधे रह गए तो क्यों नहीं बढ़ी रही ड्यूटी
सीपीओ पर 5.5 प्रतिशत का नाममात्र आयात शुल्क कर दिया जो पहले 41.25 प्रतिशत था और सूरजमुखी तेल पर आयात शुल्क पहले 38.50 प्रतिशत हुआ करता था। अब जब विदेशों में तेल-तिलहन के दाम टूटकर लगभग आधे रह गये हैं तो सरकार की ओर से कोई पहल नहीं हो रही है। सस्ता आयातित तेल हमें कभी आत्मनिर्भरता की राह पर नहीं ले जाएगा, जबकि इसके उलट देशी तेल हमें खाद्य तेलों के मामले में आत्मनिर्भरता दिलाने के साथ-साथ मुर्गीदाने और मवेशी चारे के लिए महत्वपूर्ण खल एवं डीओसी भी उपलब्ध कराएंगे।
अधिक लागत वाली फसल सस्ते में कैसे बेच दें किसान
उन्होंने कहा कि सीपीओ से कोई खल हमें नहीं मिल सकता। संभवत: इसी कारण से इस बार हमें डीआयल्ड केक (डीओसी) का आयात भी करना पड़ा। देश में तेल आयातक तो पहले ही धराशायी हो चुके हैं। उन्होंने कहा कि किसान इस बार सोयाबीन बीज की महंगे में खरीद करने को बाध्य हुए थे। किसानों ने सोयाबीन बीज की खरीद लगभग 11,000 प्रति क्विंटल के आसपास की। अब जब फसल बाजार में बिकने को आई है तो यही दाम वायदा कारोबार में 5,400-5,500 रुपये क्विंटल कर दिया गया है। अब महंगे दाम में बीज खरीद करने वाले किसान करें तो क्या करें, क्योंकि मौजूदा दाम वैसे तो न्यूनतम समर्थन मूल्य से अधिक है, पर बीज की खरीद भाव के मुकाबले इसके बाजार में दाम आधे रह गये हैं।
किसानों को मिलें अच्छे दाम
सूत्रों ने कहा कि महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक में मुर्गी दाने और मवेशी चारे के लिए सूरजमुखी के डीओसी और इसके खल का चलन है। देश में तिलहन उत्पादन तभी बढ़ सकता जब किसानों को उनकी उपज के अच्छे दाम मिलें और खरीद की सुनिश्चित खरीद की व्यवस्था हो।
सोमवार को तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे:
सरसों तिलहन – 7,175-7,225 (42 प्रतिशत कंडीशन का भाव) रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली – 6,410-6,470 रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) – 14,750 रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली रिफाइंड तेल 2,395-2,660 रुपये प्रति टिन।
सरसों तेल दादरी- 14,500 रुपये प्रति क्विंटल।
सरसों पक्की घानी- 2,190-2,320 रुपये प्रति टिन।
सरसों कच्ची घानी- 2,250-2,375 रुपये प्रति टिन।
तिल तेल मिल डिलिवरी – 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 14,000 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 13,700 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 12,500 रुपये प्रति क्विंटल।
सीपीओ एक्स-कांडला- 8,850 रुपये प्रति क्विंटल।
बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 12,150 रुपये प्रति क्विंटल।
पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 10,300 रुपये प्रति क्विंटल।
पामोलिन एक्स- कांडला- 9,450 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल।
सोयाबीन दाना – 5,525-5,625 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन लूज 5,335-5,385 रुपये प्रति क्विंटल।
मक्का खल (सरिस्का) 4,010 रुपये प्रति क्विंटल।

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