– नीलम का प्रयोग –नीलम को शनिवार के दिन पंचधाु या स्टील की अंगूठी में जडऋवाकर विधिनुसार उसकी उपासनादि करके सूर्यास्त से दो घंटे पूर्व मध्यमा उंगली में धारण करना चाहिए। नीलम का वजन 4 रती से कम नहीं होना चाहिए। इसे पहनने से पूर्व ओम शं शनैयचराय नमः मंत्र का 23 हजार बार जान करना चाहिए।
– शनि की साढ़ेसाती -यदि शनि जन्म लग्न से या चन्द्र से बारहवीं लग्न पर स्थित हो तो इस पूरे समय को शनि की साढ़ेसाती कहा जाता है। शनि एक राशि पर ढाई वर्ष रहता है। इस प्रकार तीन राशियों पर उसका भ्रमण साढ़े सात वर्ष में पूरा होता है। यदि किसी व्यक्ति की साढ़ेसाती अनिष्टाहृ हो तो, नीलम अवश्य पहनना चाहिए।
– नीलम से रोगोपचार –आयुर्वेद के अनुसार नीलम तिक्त रस वाला है जो कफ, पित तथा वायु के कष्टों को शमूल नष्ट करता है। इसके अलावा नीलम दीपन हृदय, वृष्प वल्य और रसायन है इसलिए यह मस्तिाहृ की दुर्बलता, क्षय, हृदय रोग, दमा, खांसी, कुष्ठ आदि में अत्यधिक फायदा करता है। नीलम के द्वारा अन्य रोगोपचार
निम्नलिखित हैं:-
– आंखों के रोग – धुंध, जाला, पानी गिरना, मोतियाबिंद आदि में नीलम को केवड़े के जल में घोटकर आंखों में डालने से शीघ्र लाभ होता है।
– पागलपन में नीलम का भस्म रामवाण औषधि है।
– नीलम को धारण करने से खांसी, उल्टी, रक्त विकार, विषम ज्वर आदि स्वतः खत्म हो जाते हैं।
Blue Sapphire Stone Neelam Indian Astrology and Numerology