अहमदाबाद-जमीन अधिकार आंदोलन गुजरात (जाग) के बैनर तले शहरीकरण का जबर्दस्त विरोध हो रहा है। गुजरात में शहरी करण का दायरा बढ़ाए जाने का विरोध कोई दो चार संगठन-समुदाय नहीं कर रहे परंतु ऐसा करने वाले 200 से भी अधिक गांव हैं।
इनमें भी 100 गांव ऐसे भी हैं जिन्हें शहरी क्षेत्र में शामिल किए जाने की अधिसूचना तक जारी हो गई थी , ग्रामीणों के विरोध के चलते इन्हें संबंधित शहरी विकास प्राधिकरण से बाहर किया गया। याद रहे ये हालत तब है जब गुजरात विकास मॉडल लगातार चर्चा में है।
जमीन अधिकार आंदोलन गुजरात (जाग) के बैनर तले शहरीकरण का विरोध सूरत-जूनागढ, हिम्मतनगर, मोरबी एवं आणंद तथा इनके ग्रामीण इलाके मे हो रहा हैं। जनसंख्या के हालिया आंकड़ों में कहा गया है कि गुजरात में शहरीकरण तेज गति से बढ़ रहा है और ये रफ्तार देश में सबसे तेज है और इसी राज्य में ये स्वर तेज हो रहा है कि ‘हमें शहर नहीं बनना है, गांव ही रहने दीजिए हमें जूनागढ महानगर पालिका के दायरे में शामिल करने को प्रस्तावित 42 गांव कर विरोध कर रहे हैं
खेती बंद और कर का बोझ भी बढ़ेगा
महानगरपालिका क्षेत्र का हिस्सा बनने वाले ग्रामीण इलाकों में कृषि कार्य बंद हो जाता है ये सत्य है और भूखंड छोटे-छोटे हिस्सों में हो वहां नगर योजना एक्ट (टीपी एक्ट) 20 से 50 प्रतिशत जमीन शासन के अधिकार में चली जाती है, ऐसे मे कृषि कार्य योग्य भूखंड बचते ही नहीं है। इतना ही नहीं विविध तरह के कर बढ़ जाते हैं। आवक के स्रोत सीमित अथवा बंद हो जाते हैं।
विरोध भी सही है
सागर रबारी जो “जमीन अधिकार आंदोलन गुजरात (जाग) से है कहते हैं कि “ मनपा इलाकों में भी मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं जिसे लेकर लगातार शिकायतें उठती रहती हैं इसलिए शहरीकरण में शामिल होने वाले नए इलाके (जो कि गांव होंगे) में मूलभूत सुविधाओं की उपलब्धता होने को लेकर शंका वाजिब है।
साथ मे उन्होने बताया की नए इलाकों के डेवलपमेंट प्लान (डीपी) में ग्रामीण इलाकों नहीं अपितु बिल्डर -बिचौलिए केन्द्र में रहने की आशंका है। गांव अभी पंचायत के जरिए अपने फैसले लेते हैं, ये स्वतंत्रता शहर का हिस्सा बनने पर छिन जाएगी और रोजमदारी की जरूरतों के फैसले प्रशासक-अधिकारी बंद कमरों में करेंगे, जैसा कि होता है।
रिपोर्ट :-तुलसीभाई पटेल