नई दिल्ली – सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पति का दूसरी औरत के साथ नाजायज संबंध हर मामले में पत्नी के लिए क्रूरता नहीं है और इसे पत्नी की आत्महत्या के लिए उकसावा भी नहीं माना जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के एक मामले की सुनवाई के दौरान यह बात कही। दरअसल, पति और पत्नी के संबंधों में खटास आ जाने के बाद वे तलाक के बारे में सोच रहे थे। इस बारे में महिला ने अपनी बहन को भी बताया था कि उसकी शादी टूट रही है। पत्नी ने कहा था कि वह अपने पति का घर छोड़ देगी। हालांकि, पत्नी ने बाद में जहर खाकर अपनी जान दे दी।
इस मामले में महिला के परिजनों ने पति और उनके घर वालों पर क्रूरता का आरोप लगाया था। उनका कहना था कि पति के नाजायज संबंध के चलते ही महिला ने आत्महत्या की है। ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट ने इस मामले में पति को दोषी माना था।
पति के वकील एचए रायचूरा ने इस आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील की। उनकी अपील एसजे मुकोपाध्याय और दीपक मिश्रा की बेंच ने सुनी। बेंच ने मामला सुनने के बाद कहा कि मामले में दहेज की मांग नहीं की गई है। सबूतों के मुताबिक पति के दूसरी औरत के साथ नाजायज संबंध होने से मृतक महिला तकलीफ में थी। क्या ऐसी स्थिति को आईपीसी की धारा 498ए के तहत क्रूरता माना जाएगा?
बेंच ने कहा कि पति और पत्नी एक ही घर में अलग-अलग रहने लगे थे। नाजायज संबंधों के कुछ सबूत हैं और अगर यह साबित भी हो जाता है, तो हम नहीं समझते कि यह आईपीसी की धारा 498ए के तहत आने वाली क्रूरता है। यह साबित करना मुश्किल होगा कि मानसिक क्रूरता इस हद तक थी कि उसने पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसा दिया।
जस्टिस मिश्रा ने कहा कि जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी कहा है, महज विवाहेत्तर संबंध साबित भी हो गया तो यह गैर कानूनी और अनैतिक ही होगा। अगर अभियोजन पक्ष यह सबूत जुटा सके कि आरोपी ने यह सब ऐसे किया कि पत्नी आत्महत्या के लिए प्रेरित हो गई तो यह दूसरा मामला होगा।
बेंच ने कहा कि इस मामले में आरोपी का नाजायज संबंध हो सकता है। हालांकि, सबूतों के अभाव में यह साबित नहीं होता कि यह अत्यधिक मानसिक क्रूरता का मामला था। 498 ए के मुताबिक ऐसी क्रूरता, जो किसी महिला को आत्महत्या के लिए उकसा सके।