अनूपपुर – मध्यप्रदेश सरकार केन्द्र सरकार चाहे जितने दावे करें पर देश के कुछ हिस्सें अब भी ये बंया कर रहे है की हिन्दोस्तान में दो भारत है एक तरफ चमचमाता भारत तो दुसरी तरफ बिजली पानी दाने दाने को मोहताज भारत। मध्यप्रदेश के कुछ बदनसीब गांव विकास की अंधी दौड़ में बहुत पीछे छूट गये हैं। अनूपपुर जिले में भी एक बदकिस्मत गांव है जहां पीने का पानी नहीं, खाने को दाना नहीं, बिजली नहीं, सरकार नहीं, यहां शासन की मेहरबानी नहीं। अपनी बेबसी पर रोता यह गांव अब पलायन को मोहताज है।
प्रदेश सरकार केन्द्र सरकार विकास के लाख दावे करे पर यह सच है कि दूरदराज के आदिवासी अंचल आज भी अपनी बदनसीबी पर रो रहे हैं। सरकारी रिकार्ड में हर आदमी तक सरकार और प्रशासन की पहुंच है लेकिन हकीकत में एैसा नहीं है। अनूपपुर जिले के पुष्पराजगढ़ विकासखण्ड में दर्जनो गांव है जो आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिये तरस रहे हैं। इन गांवो में दशकों से न कोई प्रशासनिक अधिकारी आया और न सरकार की योजनायें पहुंची। आजादी के इतने सालो बाद भी कई गांवों में बिजली की रौशनी नहीं है। पिचरवाही ग्राम पंचायत का एक एैसा ही बदनसीब आदिवासी बाहुल्य गांव ‘बेलापानी’ है, जहां पीने का पानी नाले में मिलता है। इस गांव में 4 हैण्डपम्प चारो सूखे हुवे हैं एक अधूरा कुआं है जो इस गांव की अंधेरी जिंदगी को बयां करता है। चुभने वाला इस जीवन संघर्ष अब पलायन को मोहताज है।
जहां प्रशासन नहीं वहा स्वास्थ्य व्यवस्था का अंदाजा लगाया जा सकता है। 5 सौ की आबादी वाला बेलापानी एक एैसा बदनसीब गांव है जहां आज तक किसी गर्भवती महिला को टीका नहीं लगा और न ही किसी बच्चे का स्वास्थ्य परीक्षण हुवा। गांव में कभी जननी एक्सप्रेस नहीं आयी। बीमार इंसान को कंधे पर या फिर खाट पर लादकर 15 किलोमीटर दूर पहाड़ी रास्तो से चलकर लेडरा गांव लाया जाता है। जहां से फिर कोसो दूर राजेंद्रग्राम अस्पताल पहुंचना होता है। ग्रामीण इस मुसिबत का हल तंत्र क्रिया या फिर झाड़ फूंक में तलाशते हैं।
इस गांव में शिक्षा का बुरा हाल है। टूटा-फूटा एक स्कूल है, जहां आदिवासी बच्चे पढते हैं। शिक्षक की मनमर्जी चलती है। जब चाहो पढ़ाओ नही तो घर जावो। गांव की लड़कियों के लिये पांचवी के बाद शिक्षा के दरवाजे लगभग बंद हो जाते हैं। गांव का युवक गोपाल दास कुशराम पहला व्यक्ति है जिसे मॉस्टर डिग्री करने का सौभाग्य मिला है। गांव का दुर्भाग्य एैसा कि बिजली भी नहीं और चिमनी जलाने के लिये कैरोसीन भी नसीब नहीं होता।
रोजगार गांरटी योजना को लेकर सभी सरकारे दंभ भरती है। लेकिन डोलापानी गांव के लोग इस योजना को जानते तक नहीं हैं। योजना के तहत कभी किसी को काम नहीं मिला। सरकारी योजनाओं का इतना बुरा हाल है कि अब तक केवल 4 परिवारों को इंदिरा आवास योजना का लाभ तो मिला पर वह भी अधूरे पडे है। बुजूगों को और असहायों को पेंशन नहीं मिलती। 1 रूपये किलो गेहूं और 2 रूपये किलो चावल कहां मिलता है गांव वालों को पता नहीं। गांव के लोग जंगल में मिले कंदमूल, कड़वा गिरौठा खाकर अपना पेट पालते हैं।
गांव का उपसरपंच भी मानता है कि इस गांव में सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिला है। लोग विकास के लिये तरस रहे हैं। अपनी बदहाल जिंदगी को बदलना चाहते हैं लेकिन सरकार का साथ नहीं मिल रहा।
अनूपपुर कलेक्टर नरेंद्र परमार से जब इस स्थति पर बात की गई तो उन्होंने कहा की वह खुद इन गांवो में जा कर स्थति का जायजा लेंगे।
आदिवासियों और ग्रामीण विकास के नाम पर करोड़ाे रूपये पानी की तरह बहा जाता हैं। शहर से लगे गांव में विकास की कुछ लकीरे खींच दी जाती है किंतु जैसे ही दूरदराज के ईलाकों में पहुंचते हैं हालात बद्तर दिखते हैं। संघर्षपूर्ण जीवन के यह नायक सच कहा जाये तो आदिमयुग में जी रहे हैं…..
#स्पेशल रिपोर्ट :- विजय उरमलिया