खंडवा – मध्य प्रदेश के खंडवा जिले से 100 किलोमीटर दूर घोघलगांव में किसान पिछले 10 दिन से जल सत्यग्रह कर रहे हैं. इन किसानों की पीड़ा यह है की ओंकारेश्वर बांध में 191 मीटर पानी छोड़ने से बांध का जलस्तर बढ़ाए जाने से 200 एकड़ जमीन डूब गई है, जिससे इनके फसले नुकसान हुए
हैं. जल सत्याग्रह में शामिल आंदोलनकारियों के गले तक पानी पहुंच गया है. वहीं सरकार का दावा है कि जलस्तर बढ़ने से खरगोन व बडवानी जिले के किसानों को सिंचाई के लिए पानी मिलेगा. किसानों के इस मुहीम में नर्मदा बचाव अन्दोलाकरी से लेकर आम आदमी पार्टी और कांग्रस भी जुड़ गई है.
उल्लेखनीय है कि नर्मदा नदी पर बने ओंकरेश्वर बांध के जलस्तर की उंचाई 189 मीटर से बढ़ाकर 191 मीटर कर दी गई है. जल भराव का काम जारी है. वहीं नर्मदा बचाओ आंदोलन और ग्रामीणों का आरोप है कि जलस्तर बढ़ने से कई गांवों के डूब क्षेत्र में आने का खतरा बढ़ रहा है. आप को बता दे की जल सत्याग्रह कर रहे आन्दोलनकारी पिछले 10 दिन से लगातार पानी में ही खड़े है. पानी में ही वो खान पीन भी कर रहे हैं. जल सत्याग्रह कर रहीं महिलाओं व कुछ पुरुषों के शरीर दसवें दिन सफ़ेद पड़ने लगे हैं.
इस पुरे मामले को देखते हुए राजनैतिक पार्टियाँ भी काफी सक्रिय हो गई है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव मौके पर पहुच कर आन्दोलनकारियों से मिले तो वहीं आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष आलोक अग्रवाल किसानों के साथ धरने पर बैठ गए हैं. अग्रवाल ने कहा कि जब तक विस्थापितों की मांगें पूरी नहीं की जाती है, तब तक पानी में रह जल सत्याग्रह करेंगे. फिर चाहे शरीर गल कर खत्म ही क्यों ना हो जाए. वहीं बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार चौहान ने जल सत्याग्रहियों के समर्थन में आए आम आदमी पार्टी और कांग्रेस को नौटंकी बाज बताया है.
2012 में भी हुआ था जल सत्याग्रह
वर्ष 2012 में भी घोघल गाँव के लोगों ने 17 दिन तक जल सत्याग्रह किया. इस सत्याग्रह में आन्दोलन कर रहे लोग सिर्फ शौच करने और भोजन करने के लिए पानी से बाहर निकलते थे. मजबूर हो कर मध्य प्रदेश सरकार ने सत्याग्रहियों से बात की और जमीन के बदले जमीन देने की बात कही और जिसके पास 5 एकड़ जमीन है उसे 2.5 लाख रूपए देने का वादा किया. बाद में सरकार ने अपना वादा पूरा भी किया.फिर क्यों है किसानों में असंतोष ?
किसानों का यह मानना है कि सरकार ने उनको जो जमीन दी है वह उपजाऊ नहीं है. ग्रामीणों का कहना है कि बांध की उचाई 189 मीटर तक ही राखी जाए. ये लोग जमीन के बदले जमीन और पर्याप्त मुआवजे की मांग कर रहे हैं. तीन साल पहले जलसत्याग्रह के बाद शासन ने ओंकारेश्वर बांध प्रभावितों को विशेष पैकेज की घोषणा की थी. इसके साथ ही जीआरए द्वारा दिए गए आदेशों के परिपालन में प्रभावितों को पांच-पांच एकड़ जमीन दी जाना किया गया था. इसके बाद प्रभावितों ने मुआवजे और विशेष अनुदान की करीब दस करोड़ रुपए राशि लौटा दी थी लेकिन अब तक प्रभावितों का जमीन नहीं मिली.
प्रदेश सरकार अपने रुख पर अड़ी
एक ओर जहां ओंकारेश्वर बांध के विस्थापित परिवारों की उम्मीदें उच्चतम न्यायालय पर टिक गई हैं, वहीं मध्य प्रदेश सरकार ने एकदम स्पष्टï कह दिया है कि वह बांध में पानी का लेवल 189 मीटर से बढ़ाकर 191 मीटर करने के अपने फैसले को वापस नहीं लेगी. 520 मेगावॉट की इस बिजली परियोजना की सरकार ने हाल में ऊंचाई बढ़ाने का फैसला किया.सरकार का कहना है कि वर्ष 2012 में प्रति भूमिहीन परिवार के तौर पर तकरीबन 2.5 लाख रुपये का मुआवजा ले चुके हैं और अब उनके लिए कुछ और मुआवजा नहीं दिया जा सकता।
सरकार ने अब तक इन प्रभिवितों के लिए क्या किया
राज्य सरकार ने इसके लिए मुआवजे की मद में वर्ष 2012 में 225 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि जारी की थी. करीब 6,329 परिवारों में 153 करोड़ रुपये की रकम पहले ही बांटी जा चुकी है.नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के प्रवक्ता आदिल खान का कहना है कि हम केवल कुछ लोगों की कीमत पर लगभग 28,000 किसानों के हितों को बलि नहीं चढ़ा सकते, जबकि जो लोग जल सत्याग्रह कर रहे हैं, असल में वे तो प्रभावित लोग भी नहीं हैं.
जल सत्याग्रहियों की मांग
नर्मदा बचाओ आंदोलन के आलोक अग्रवाल ने बताया है कि सरकार की हठधर्मिता के कारण सैकड़ों परिवार भूमिहीन होने के कगार पर हैं. बांध का जलस्तर बढ़ाए जाने से 200 एकड़ जमीन डूब गई है. अग्रवाल ने आगे कहा कि वह खुद ”जलसत्याग्रह पर हैं और खेत के डूबने से प्रभावित हुए किसानों को पुर्नवास का लाभ मिलना चाहिए और साथ ही सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के मुताबिक भूमि के बदले भूमि और मुआवजा दिया जाना चाहिए था, लेकिन राज्य में ऐसा नहीं हुआ. प्रभावितों को जब तक लाभ नहीं मिलता तब तक यह जल सत्याग्रह जारी रहेगा.
घोघल गांव से live रिपोर्ट : मोदास्सिर खान