वृक्ष तथा विभिन्न वनस्पतियां धरती पर हमारे जीवन के लिए बहुत उपयोगी हैं। भारतीय संस्कृति में भी प्राचीन समय से ही वृक्षों तथा वनस्पतियों को पूजनीय माना जाता रहा है। विभिन्न वनस्पतियां हमारे स्वास्थ्य की रक्षा में भी सहायक सिद्ध होती हंै। ऐसा ही एक छोटा परन्तु बहुत महत्वपूर्ण पौधा होता है तुलसी का। हजारों वर्षों से विभिन्न रोगों के इलाज के लिए औषधि के रूप में तुलसी का प्रयोग किया जा रहा है। आयुर्वेद में भी तुलसी तथा उसके विभिन्न औषधीय प्रयोगों का विशेष स्थान है।
आपके आंगन में लगे छोटा-से तुलसी के पौधे में अनेक बीमारियों के इलाज करने के आश्चर्यजनक गुण होते हैं। सर्दी के मौसम में खांसी-जुकाम होना एक आम समस्या है। इनसे बचे रहने का सबसे सरल उपाय है तुलसी की चाय। तुलसी की चाय बनाने के लिए, तुलसी का दस-पन्द्रह ग्राम, ताजी पत्तियां लें और धोकर कुचल लें फिर उसे एक कप पानी में डालें। उसमें पीपरामूल, सौंठ, इलायची पाउडर तथा एक चम्मच चीनी मिला लें। इस मिश्रण को उबालकर बिना छाने सुबह गर्मागर्म पीना चाहिए।
इस प्रकार की चाय पीने से शरीर में चुस्ती-स्पूहृर्ति आती है और भूख बढ़ती है। जिन लोगों को सर्दियों में बार-बार चाय पीने की आदत है उनके लिए यह तुलसी की चाय बहुत लाभदायक होगी जो ना केवल उन्हें स्वास्थ्य लाभ देगी अपितु उन्हें साधारण चाय के हानिकारक प्रभावों से भी बचाएगी।
सर्दी, ज्वर, अरूचि, सुस्ती, दाह, वायु तथा पित्त संबंधी विकारों को दूर करने के लिए भी तुलसी की औषधीय रचना और अपना महत्व है। इसके लिए तुलसी की दस-पन्द्रह ग्राम ताजी धुली पत्तियों को लगभग 150 ग्राम पानी में उबाल लें। जब लगभग आधा या चैथाई पानी ही शेष रह जाए तो उसमें उतनी ही मात्रा में दूध तथा जरूरत के अनुसार मिश्री मिला लें यह अनेक रोगों को तो दूर करता ही है साथ ही क्षुधावर्धक भी होता है। इसी विधि के अनुसार, काढ़ा बनाकर उसमें एक-दो इलायची का चूर्ण और दस-पन्द्रह सुधामूली डालकर सर्दियों में पीना बहुत लाभकारी होता है। इसमें शारीरिक पुष्टता बढ़ती है।
तुलसी के पत्ते का चूर्ण बनाकर मर्तबान में रख लें। जब भी चाय बनाएं तो दस-पन्द्रह ग्राम इस चूर्ण का प्रयोग करें। यह चाय ज्वर, दमा, जुकाम, कफ तथा गले के रोगों के लिए बहुत लाभकारी है।
तुलसी का काढ़ा बनाने के लिए तीन-चार काली मिर्च के साथ तुलसी की सात-आठ पत्तियों को रगड़ लें और अच्छी तरह मिलाकर एक गिलास द्रव तैयार करें। इक्कीस दिनों तक सुबह लगातार खाली पेट इस काढ़े का सेवन करने से मस्तिष्क की गर्मी दूर होती है और उसे शक्ति मिलती है। क्योंकि यह काढ़ा हृदयोत्तेजक होता है इसलिए यह हृदय को पुष्ट करता है और हृदय संबंधी रोगों से बचाव करता हैं।
एसिडिटी, संधिवात, मधुमेह, स्थूलता, खुजली, यौन दुर्बलता, प्रदाह आदि अनेक बीमारियों के उपचार के लिए तुलसी की चटनी बनाई जा सकती है। इसके लिए लगभग दस-दस ग्राम धनिया, पुदिना लें उसमें थोड़ा सा लहसुन अदरख, सेंधा नमक, खजूर का गुड, अंकुरित मेथी, अंकुरित चने, अंकुरित मूंग, तिल और लगभग पांच ग्राम तुलसी के पत्ते मिलाकर महीन पीस लें। अब इसमें एक नींबू का रस और लगभग पन्द्रह ग्राम नारियल की छीन डालें। इस चटनी को रोटी के साथ या साग में मिलाकर खाया जा सकता है।
चटनी से कैलिशयम, पौटेशियम, गंधक, आयरन, प्रोटीन तथा एन्जाइम आदि हमारे शरीर को प्राप्त होते हैं। एक बात ध्यान रखें यह चटनी दो घंटे तक ही अच्छी रहती है अतः इसका प्रयोग सदा ताजा बनाकर ही करें। दो घंटे के बाद इसके गुण में परिवर्तन आ जाता है। इस चटनी को कभी फ्रिज में न रखें।
शीत ऋतु में तुलसी का पाक भी एक गुणकारी औषधि के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। इसके लिए तुलसी के बीजों को निकाल कर आटे जैसा बारीक पीस लें। अब लगभग 125 ग्राम चने के आटे में मोयन के लिए देसी घी व थोड़ा सा दूध डालकर उसे लोहे या पीतल की कडाही में घी डालकर धीमी आंच पर भूनें। बाद में लगभग 125 ग्राम खोआ डालकर उसे भूनें। इसके बात उसमें बादाम की गिरि व तुलसी के बीजों का चूर्ण मिला लें। जब लाल हो जाए तो इसमें इलायची व काली मिर्च डालकर इस मिश्रण को तुरंत उतार लें। अब मिश्री की चाशनी में केसर डालकर इस मिश्रण को उसमें डाल दें, अच्छी तरह मिलाएं, गाढ़ा होने पर थाली में ठंडा कर टुकड़े करें। सर्दी में प्रतिदिन 20 से 100 ग्राम मात्रा दूध के साथ खाने से बल वीर्य बढ़ता है। इससे पेट के रोग, वातजन्य रोग, शीघ्रपतन, कामशीतलता, मस्तिष्क की कमजोरी, पुराना जुकाम, कफ आदि में बहुत लाभ होता है।
अरिष्ट आसव बनाने के लिए 100 ग्राम बबूल की छाल को लगभग डेढ़ किलो पानी में तब तक उबालें जब तक कि पानी एक चैथाई न हो जाए। अब इसे छानकर इसमें लगभग अस्सी ग्राम तुलसी का चूर्ण, पांच सौ ग्राम गुड़, 10 ग्राम पीपल तथा 80 ग्राम आंवले के पूहृल मिला दें। काली मिर्च, जायफल, दालचीनी, शीतलचीनी, नागकेसर, तमालपत्र तथा छोटी इलायची, प्रत्येक की 10-10 ग्राम मात्रा को कूट पीसकर इसमें मिला दें।
इस मिश्रण को एक डिब्बे में बंद कर लगभग एक माह के लिए रखें इसके बाद आसव को छानकर प्रयोग करें। प्रतिदिन सुबह इसकी एक चम्मच मात्रा के सेवन से खांसी, वीर्यदोष, निर्बलता तथा भूख न लगने जैसी बीमारियां दूर हो जाती हंै।
आपके आंगन में लगे तुलसी के पौधे का न केवल धार्मिक महत्व होता है अपितु यह स्वास्थ्य लाभ भी देता है। किसी इमारत के ऊपरी मंजिल पर रहने वाले लोग आंगन में न सही गमले में तो तुलसी का पौधा लगा ही सकते हैं।