खंडवा – नगर के श्री दादाजी इंजीनियरिंग कालेज में वर्ष 2015-16 के होने वाले छात्र-छात्राओं के प्रवेश पर एआईसीटीई ने प्रतिबंध लगा दिया है। आरटीआई कार्यकर्ता जगन्नाथ माने द्वारा कालेज की अनियमितताओं को लेकर एआईसीटीई को प्रमाणित दस्तावेजों सहित शिकायत की थी। शिकायत पर एआईसीटीई ने जब उचित एवं वैधानिक कार्यवाही नहीं की तो जबलपुर उच्च न्यायालय में इस शिकायत को लेकर जनहित याचिका दायर की गई।
जनहित याचिका पर कालेज के खिलाफ कार्यवाही करने के आदेश उपरांत भी एआईसीटीई द्वारा इसे गंभीरता से नहीं लिया गया और निर्धारित तिथि गुजरने पर एआईसीटीई के खिलाफ न्यायालय की अवमानना का नोटिस दिया गया। इसके बाद एआईसीटीई एप्रुवल कमेटी दिल्ली ने शिकायतकर्ता जगन्नाथ माने एवं कालेज प्रशासन को अपने दस्तावेज लेकर एप्रुवल कमेटी के समक्ष बुलाया। जिसकी सुनवाई के उपरांत दिनांक 30.4.2015 को यह आदेश पारित किया गया कि अब दादाजी इंजीनियरिंग कालेज में वर्ष 2015-16 में नये छात्र-छात्राओं के प्रवेश की मान्यता नहीं रहेगी।
छात्र-छात्राओं के भविष्य को ध्यान में रखते हुए आदेश में कहा गया है कि आदेश के पूर्व जिन छात्र-छात्राओं को 2015-16 में प्रवेश दिया गया है उन छात्र-छात्राओं को एप्रुड कालेज में स्थानांतरित कर दिया जाए और उनके द्वारा जमा राशि भी संबंधित कालेज जिसमें कि उन्हें स्थानांतरित किया जाएगा में जमा की जाए।
फेक्ट फाईल
1. माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर में जनहित याचिका क्रमांक डब्ल्यू पी नं. 12402/13 को दायर की थी।
2. माननीय उच्च न्यायालय द्वारा 22.7.2013 को एआईसीटीई दिल्ली एवं भोपाल को याचिकाकर्ता की याचिका पर आदेश देते हुए कहा कि दादाजी इंजीनियरिंग कालेज में हुई अनियमितता विधि के अनुसार निर्णय ले।
3. 16.4.2015 को शिकायतकर्ता एवं कालेज प्रबंधन के प्रतिनिधि स्टेडिंग अपील कमेटी के समक्ष नई दिल्ली में उपस्थित हुए।
4. एप्रुवल ब्यूरो के डायरेक्टर द्वारा यह आदेशित किया गया है कि दादाजी कालेज का एप्रुवल वर्ष 2015-16 निरस्त किया जाता है।
दादाजी इंजीनियरिंग कालेज में मान्यता के समय हुई अनियमितताएं
1. दादाजी इंजीनियरिंग कालेज वर्ष 2004 के स्थापना के समय इंजीनियरिंग कालेज हेतु दस एकड़ भूमि की आवश्यकता थी। कालेज प्रबंधन कमेटी के पास कम जमीन को नक्शे में हेराफेरी कर दस एकड़ बताया गया।
2. एसडीएम, नायब तहसीलदार और पटवारी द्वारा इस जमीन के दस्तावेजों की जांच की गई जिसमें खसरा क्रमांक 125/1, 125/2 और 125/4 एवं 125/6में मात्र 4.19 एकड़ जमीन थी एवं खसरा क्रमांक 315 एवं 317 यह भूमि कृषि भूमि है और वर्तमान में खेती हो रही है, जहां कालेज निर्मित है वहां से काफी दूर है। इसलिए एआईसीटीई दिल्ली एवं भोपाल ने पांच साला खसरा 1984 से 2015 तक ट्रेस नक्शे सहित बुलवाया गया। जिसमें प्रबंधन द्वारा बताए गए और एसडीएम व पटवारी द्वारा दी गई रिपोर्ट में भिन्नता थी। सर्वे क्रमांक 112 व 113 कालेज के सामने की भूमि शासकीय भूमि है इसका भी उल्लेख किया गया। इसलिए 2004 के अनुसार कालेज को जितनी भूमि चाहिए थी उसकी प्रतिपूर्ति प्रबंधन द्वारा नहीं की गई और तथ्यों को छुपाते हुए मान्यता प्राप्त की।