नई दिल्ली – ऐसा शहर जहां किसी को किसी से मतलब नहीं है। ऐसा शहर जहां की पुलिस और न्यायालय रोज रेप, कत्ल और ऐसे ही जघन्य अपराधों से दो-चार होते हैं। उसी शहर में अगर कोई ऐसा दिख जाए जो कि किसी अनाथ को गले लगाने के लिए अदालत तक जा पहुंचे तो ये बहुत ही बड़ी बात होगी।
वो भी ऐसे अनाथ जो न सिर्फ दूसरे परिवार से हैं बल्कि दूसरे मजहब से भी हैं तो उन्हें अपनाने वाले खुद-ब-खुद खास हो जाते हैं और शायद इसलिए न्यायालय तक उनकी प्रशंसा से नहीं चूकता।
कमर्शियल पायलट मोहम्मद शाहनवाज जहीर वही व्यक्ति हैं जिन्हें दिल्ली हाईकोर्ट ने हिंदु माइनॉरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट के तहत आयुष और प्रार्थना नामक जुड़वा बच्चों का अभिभावक बना दिया है।
मील का पत्थर कहे जा रहे अपने ऑर्डर में हाईकोर्ट के जज नाजमी वजीरी ने दूसरे धर्म के बच्चों को गोद देने के साथ ही इन जुड़वा बच्चों के नाम पर एक ट्रस्ट बनाने की भी अनुमति दे दी है।
इस ट्रस्ट को बनाने के लिए इंडियन कमर्शियल पायलट एसोसिएशन और अन्य लोगों ने मिलकर 1 करोड़ की बड़ी रकम का योगदान दिया है।
बता दें कि जिन बच्चों को गोद लिया गया है उनके मृत मां-बाप की संपत्ति अपने आप ही इस ट्रस्ट की हो जाएंगी ना कि बच्चों को गोद लेने वाले माता-पिता की।
जब जहीर के घर का दौरा किया गया तो पाया गया कि आयुष और प्रार्थना दोनों जहीर के घर में घुल मिल गए हैं। जहीर ने कहा कि अदालत के इस फैसले से दोनों बच्चे पूरी तरह हमारे हो गए हैं।
जहीर ने बताया कि उनके पास तीन मंजिला घर है और उनके सास-ससुर व मां-बाप उनके साथ ही रहते हैं। ये दोनों ही बच्चों इन सबकी आंखों का तारा हैं।
उन्होंने इस बात की भी खुशी जताई कि दोनों बच्चों की कस्टडी अब उनके पास है तो वो उनका पासपोर्ट भी बनवा सकते हैं और अपने परिवार के साथ उन्हें बाहर भी घुमाने ले जा सकते हैं।
जहीर ने ये भी बताया कि कैसे अदालत ने इन दोनों बच्चों के एक पड़ोसी अरुण सैनी पर भरोसा नहीं किया। अरुण को लगता था कि जहीर के पास जाने से दोनों बच्चे मंदिर नहीं जा पाएंगे और हिंदु रीतियों को नहीं जान पाएंगे। जहीर का कहना है कि वो इन दोनों का धर्म नहीं बदलेंगे, वो हिंदु बच्चे बनकर ही बड़े होंगे और वही रहेंगे।
आयुष और प्रार्थना ने अपनी एयरहोस्टेस मां और पायलट पिता को एक साल के अंदर ही 2012 में खो दिया था और परिवार के ड्राइवर की दया पर जी रहे थे जो इनका खयाल रखता था।
हालांकि बच्चों के पिता प्रवीण दयाल ने जहीर से बच्चों की देखभाल करने का वादा लिया था, लेकिन पास और दूर के रिश्तेदारों के प्रवीण के बैंक अकाउंट और संपत्ति पर दावा करने के कारण जहीर दुविधा में थे।
इसके बाद जहीर अपने काम में बिजी हो गए। लेकिन एक दिन जब इन बच्चों का फोन उनके पास आया और उन्होंने रोते हुए अपने साथ गलत व्यवहार की शिकायत जहीर से की तो तुरंत उन्होंने कोर्ट में केस दर्ज कर इन बच्चों के अभिभावक बनने के लिए याचिका दायर की।
जहीर ने कोर्ट में दी अपनी याचिका में अदालत को बताया था कि बच्चों के पिता ने अपनी बीमारी के दौरान ही इनका खयाल रखने का वादा जहीर से लिया था। इसके साथ ही जहीर ने प्रवीण के भाई का वो स्टेटमेंट भी कोर्ट में रखा जिसमें उसने जहीर के ऊपर पूरा विश्वास जताते हुए बच्चों की कस्टडी उसे सौंपने पर संतुष्टि जताई है।
साथ ही साथ जहीर ने ये भी बताया कि बच्चों के मामा व नानी दोनों ही विदेश में जाकर बस गए हैं और वो बच्चों की देखभाल करने में असमर्थ हैं।
जज वजीरी ने जहीर के अच्छे काम को देखते हुए कवि निदा फाजली और जावेद अख्तर की पंक्तियां अदालत में कहकर सुनाई कि अनाथ और जरूरतमंद बच्चों की देखभाल करना और उन्हें सुरक्षा देना सबसे बड़ा महान काम है।
दोनों बच्चों का अभिभावक जहीर को बनाने के साथ-साथ अदालत ने उनके माता-पिता के नाम की सारी संपत्ति आयुष प्रार्थना बेनेवोलेंट ट्रस्ट के नाम कर दी है। ये दोनों बच्चे जब तक 25 साल के नहीं हो जाते तब तक सारी संपत्ति ट्रस्ट की ही रहेगी।
वकील योगेश जगिया जिन्होंने जहीर की तरफ से बिना एक भी पैसे लिए ये केस लड़ा अदालत के सि फैसले को अभूतपूर्व करार दिया है। योगेश के अनुसार ये एक दूसरे धर्म का मामला था।
उन्होंने कहा कि गोद लेने के तो कई मामले देखें हैं, लेकिन बच्चों के अभिभावक बनने का मसला काफी अलग था। जहां वो बच्चों को केवल पालेंगे बच्चों की संपत्ति पर अभिभावकों का कोई हक नहीं होगा।
योगेश कहते हैं कि उन्हें अदालत को ये समझाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी। दिल्ली के टॉप स्कूल में पढ़ने वाले आयुष बड़े होकर पायलट बनना चाहते हैं वहीं उसकी बहन डिजाइनर।
(साभारः टाइम्स ऑफ इंडिया)