नई दिल्ली – केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने हाल ही में कहा था कि यूपीए सरकार ने ही ‘हिंदू आतंकवादी’ शब्द का इस्तेमाल किया था। राजनाथ के मुताबिक, इस शब्द के इस्तेमाल की वजह से ही आतंक के खिलाफ लड़ाई कमजोर हुई है। इस बीच बाबरी मस्जिद विध्वंस के मामले में अपनी रिपोर्ट देने वाले जस्टिस मनमोहन सिंह लिब्रहान ने दावा किया है कि उन्होंने पहली बार हिंदू आतंकवादी शब्द का इस्तेमाल किया था।
उन्होंने कहा कि यदि मैं अपना दृष्टिकोण बदल लूं, तो भी मैं इसे मिटा नहीं सकता। मैं कोई राजनेता नहीं हूं। किसी भी किस्म का आतंकवाद बुरा है। निर्दोष लोगों की हत्या गलत है। बाबरी मस्जिद विध्वंस के दौरान जस्टिस लिब्रहान पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में न्यायाधीश थे।
जस्टिस लिब्रहान को दिसंबर 1992 में इस मामले की जांच के लिए गठित किए गए आयोग का अध्यक्ष बनाया गया था। उन्होंने इस मामले में 17 साल बाद वर्ष 2009 में एक हजार पन्नों की रिपोर्ट तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपी थी। इसमें उन्होंने भाजपा और आरएसएस के कई नेताओं के नाम लिए थे, हालांकि उन्हें इस बात की कोई उम्मीद नहीं थी कि इन नेताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई होगी।
लिब्रहान ने कहा कि उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कई सिफारिशें की थीं। मगर, कोई भी राजनीतिक दल इस पर कार्रवाई करने को तैयार नहीं था, क्योंकि यह वोट और नारों की राजनीति है। जांच आयोग किसी काम के नहीं होते। सिख विरोधी दंगों और सुभाष चंद्र बोस केस में कितने आयोग गठित किए गए, लेकिन उसका नतीजा क्या निकला?
समझौता धमाके और मालेगांव धमाके के मामले में हिंदू आतंकवादियों की भूमिका और इन केसों में गवाहों के पलटने पर किए गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि एनआईए जैसी जांच एजेंसियों के स्वतंत्र होने की बात मजाक है। अगर नेता चाहें तो रातों-रात जांच पूरी हो सकती है और मामला अपने अंजाम तक पहुंच सकता है।