नई दिल्ली – राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) समझौता ट्रेन विस्फोट के आरोपी स्वामी असीमानंद की जमानत को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं देगी। इस मामले में उनके खिलाफ आरोप पत्र दाखिल हो चुके हैं।
लोकसभा में मंगलवार को गृह राज्य मंत्री हरिभाई पारथीभाई चौधरी ने बताया कि एनआइए ने असीमानंद की जमानत के विरोध का कोई आधार न होने पर यह फैसला किया। एआइएमआइएम के असादुद्दीन ओवैसी के सवाल के लिखित जवाब में मंत्री ने यह जानकारी दी।
उन्होंने कहा कि पिछले साल अगस्त में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश में जमानत संबंधी शर्तों को पूरा नहीं कर पाने के कारण असीमानंद को जेल में रहना पड़ा। आदेश की प्रमाणित प्रति कोर्ट द्वारा एक मई 2015 को जारी की गई। 18 फरवरी 2007 को भारत और पाकिस्तान ने बीच चलने वाली समझौता ट्रेन में विस्फोट से 68 लोग मारे गए थे।
चौधरी ने बताया कि सरकार ने मक्का मस्जिद विस्फोट के आरोपी देवेंद्र गुप्ता और लोकेश शर्मा की जमानत को चुनौती की अनुमति देने से मना कर दिया है। यह फैसला समानता के आधार पर किया गया। क्योंकि भरत मोहन लाल और तेजाराम परमार को मिली जमानत का अभियोजन ने विरोध नहीं किया। हालांकि दोनों आरोपी जेल में हैं क्योंकि वे अन्य मामलों में भी आरोपी हैं जिनमें उन्हें जमानत नहीं मिली है।
कांग्रेस समेत कुछ राजनीतिक दलों ने एनआईए पर दक्षिणपंथी समूहों के आतंकवाद से जुड़े मामलों की जांच में विफल रहने की कड़ी आलोचना की है। बताया जाता है कि 2008 के मालेगांव कांड को देख रहीं विशेष लोक अभियोजक रोहिणी सालियन को एनआईए के खिलाफ शिकायत करने पर हटा दिया गया। उन्होंने आरोप लगाया था कि जांच एजेंसी आरोपी साध्वी प्रज्ञा और कर्नल श्रीकांत पुरोहित के प्रति नरम रुख अपनाने के लिए दबाव डाल रही। हालांकि एनआइए ने इसका खंडन किया है।
सालियान से जुड़े घटनाक्रम में मालेगांव विस्फोट कांड को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को एक जनहित याचिका दाखिल की गई। याचिका में विशेष लोक अभियोजक के रूप में उच्च स्तर के वकील की नियुक्ति की मांग की गई है। इसमें कोर्ट की निगरानी में मामले की जांच की भी मांग की गई। साथ ही कोर्ट से सालियान पर दबाव डालने वाले एनआइए के अधिकारियों के खिलाफ सीबीआई को मामला दर्ज करने का निर्देश देने को कहा है।