नई दिल्ली- संघ, सरकार और भाजपा की समन्वय बैठक के बाद देश के शिक्षा क्षेत्र में बदलाव का तानाबाना बुनने की शुरुआत हो गई है। इसकी पहली कड़ी में संघ के वरिष्ठ नेताओं की उपस्थिति में केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी, संस्कृति मंत्री डॉ. महेश शर्मा, पार्टी शासित आठ राज्यों के शिक्षा और संस्कृति मंत्रियों के साथ शिक्षा के नए मॉडल पर चर्चा शुरू की।
इस दौरान देश की प्राचीन शिक्षा व्यवस्था की परंपरा को बढ़ावा देने के लिए सीबीएसई की तर्ज पर गुरुकुल शिक्षा के लिए केंद्रीय स्तर पर बोर्ड की स्थापना पर सहमति बनी है।
सुशासन सेल द्वारा आयोजित इस दो दिवसीय कार्यक्रम के पहले दिन शिक्षा पर व्यापक विचार विमर्श किया गया। इसके अलावा राज्यों को पाठ्यक्रमों में स्वामी विवेकानंद, सरदार पटेल, नानाजी देशमुख, सावरकर, दीनदयाल उपाध्याय, रविंद्रनाथ टैगोर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पंडित मालवीय को प्रमुखता से शामिल करने का निर्देश दिया गया है। निकट भविष्य में भाजपा शासित राज्य पाठ्यक्रमों में गीता और योग को भी महत्व देते दिख सकते हैं।
दिन भर कई सत्रों में चली बैठक में प्रस्तावित नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर भी चर्चा हुई। इस बैठक में सोमवार को संस्कृति पर चर्चा होगी। इसमें संघ के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के एजेंडे को अमलीजामा पहनाने पर भी चर्चा होगी।
उल्लेखनीय है कि शिक्षा के क्षेत्र में आमूलचूल बदलाव के लिए बीते 26 जून को संघ की संस्था विद्या भारती की सह कार्यवाह भैयाजी की उपस्थिति हरियाणा भवन में गंभीर चर्चा हुई थी। इस दो दिवसीय बैठक में शिक्षा क्षेत्र में बदलाव का एजेंडा तय किया गया था। दो दिवसीय बैठक में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, इतिहास में प्राचीन भारत के सत्ता संचालन से जुड़ी हस्तियों को पर्याप्त जगह न मिलने और भावी एजेंडे पर अलग-अलग चर्चा हुई।
बैठक में उपस्थित एक सूत्र के मुताबिक इस दौरान प्राथमिक शिक्षा के दौरान बच्चों के सांस्कृतिक, नैतिक और बेहतर चरित्र के निर्माण पर जोर दिया गया। राज्यों से कहा गया कि वह गुजरात के तर्ज पर शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के प्रमुख दीनानाथ बत्रा की 10 किताबों की समीक्षा कर इन्हें पाठ्यक्रमों में शामिल करे।
पाठ्यक्रमों में शिवाजी, राणाप्रताप और पृथ्वीराज चौहान को पाठ्यक्रमों में उचित स्थान दिलाने पर भी सहमति बनी। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर चर्चा के दौरान यह तय किया गया कि सौ फीसदी साक्षरता हासिल करने के लिए सरकार निजी संगठनों से तालमेल बढ़ाए। इस दौरान निजी संस्थानों को भी शिक्षा के तय मूल्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की हर हाल में जानकारी दे।
सुझाव यह भी दिया गया कि बच्चों में बेहतर समझ विकसित करने के लिए प्रारंभिक शिक्षा के लिए अंग्रेजी की जगह हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं को प्राथमिकता दी जाए।