नई दिल्ली- बिहार में सीटों के बंटवारे पर एनडीए में जहां सभी दलों के बीच सहमति बनती दिख रही है वहीं पूर्व मुख्यमंत्री मांझी का पेंच अभी भी फंसा हुआ है। मांझी जहां लगातार 25 सीटों की मांग कर रहे हैं वहीं भाजपा उन्हें 20 से नीचे पर ही समेटने की जद्दोजहद में है।
लेकिन इस राजनीतिक रस्साकसी में यह सवाल महत्वपूर्ण हो गया है कि आखिर लोजपा और रालोसपा को उनके मनमुताबिक सीटें देने वाली भाजपा को मांझी को सम्मानजनक सीटें देने में क्या दिक्कत आ रही है।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो इसके पीछे बड़ी वजह लोजपा अध्यक्ष राम विलास पासवान का दबाव भी माना जा रहा है जिनकी वजह से भाजपा मांझी के प्रति हाथ खींचती नजर आ रही है। यह सवाल इसलिए भी जरूरी हो जाता है कि जहां लोकजनशक्ति पार्टी अध्यक्ष राम विलास पासवान के पास वर्तमान में मात्र 3 विधायक हैं वहीं पूर्व मुख्यमंत्री की हम पार्टी में मौजूदा विधायकों की संख्या 18 के करीब है।
ऐसे में यह तो जाहिर ही है कि मांझी अपने मौजूदा विधायकों के लिए उन्हीं की सीटों की मांग तो करेंगे ही इसके अलावा भी वह अपने लिए कुछ अतिरिक्त सीटें तो चाहेंगे ही। लेकिन इसके बाद भी उनके मुकाबले पासवान को सीटों के मामले में ज्यादा तवज्जो देना ही मांझी की असली टीस बनी हुई है।
यही कारण है कि मांझी किसी भी हाल में खुद को पासवान के मुकाबले कमतर दिखाने को तैयार नहीं हैं। पूर्व में भी वह इस बात की घोषणा करते रहे हैं कि उन्हें भी पासवान के बराबर सीटें चाहिएं। पासवान भी जानते हैं कि अगर मांझी ज्यादा सीटें जीतने में सफल रहे तो बिहार की राजनीति में मांझी के मुकाबले उनका वजूद कम हो जाएगा।
मांझी और पासवान की इस खींचतान की एक बड़ी वजह और भी है। बिहार में दोनों ही नेताओं के बीच खुद को बड़ा दलित नेता साबित करने की होड़ लगी है, यही कारण है कि मांझी पूर्व में पासवान को केवल पासवानों का ही नेता बता चुके हैं तो पासवान ने उन्हें एनडीए में ट्रायल पर बताकर उन पर निशाना साधा था।
इसके अलावा दोनों के बीच विवाद की एक बड़ी वजह और भी है जिस कारण मांझी को कम सीटें दिए जाने की बात सामने आ रही है। असल में मांझी की पार्टी में ज्यादातर विधायक वो हैं जो 2005 के चुनावों से पूर्व पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी में हुआ करते थे लेकिन जेडीयू-भाजपा गठबंधन के जीतते ही उन्होंने जेडीयू को दामन थाम लिया।
बाद में उनमें से कई मंत्री भी बने। मांझी के जेडीयू से बगावत करने के बाद अब इन्हीं विधायकों ने मांझी का हाथ पकड़ लिया। इन्हीं विधायकों को लेकर पासवान ज्यादा नाराज दिखाई दे रहे हैं।
इसको लेकर लोजपा संसदीय दल के अध्यक्ष चिराग पासवान ने कुछ दिन पहले अमित शाह से मुलाकात कर मांझी के इन विधायकों को टिकट न देने की मांग की थी। ऐसे में पल-पल बदल रहे घटनाक्रम के बीच यह सवाल लगातार उठ रहा है कि मांझी के प्रति भाजपा की इस बेरुखी के पीछे कहीं पासवान का ही तो हाथ नहीं।