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Friday, November 22, 2024

शोहरत का ‘ शार्टकट ’: ज़हरीले बोल?

भारतवर्ष प्राचीन संस्कृति व सभ्यता वाला एक ऐसा देश है जिसे एक शिष्ट, संस्कारित,मेहमाननवाज़, परोपकारी तथा त्यागी व तपस्वी लोगों के विशाल देश के रूप में जाना जाता है। हमें अपने पूवर्जों से मिले तमाम ध्येय वाक्य जैसे सत्यमेव जयते,बहुजन हिताय बहुजन सुखाए,सत्यम शिवम सुंदरम,सर्वे भवंतु सुखिन:,अहिंसा परमोधर्म: व वसुधैव कुटंबकम आदि इस बात का प्रमाण हैं कि हम सत्य पर विश्वास करने वाले पूरे संसार के हित की मनोकामना करने वाले तथा चारों ओर सुख व समृद्धि का वातावरण देखने की मनोकामना रखने वाले एक अहिंसावादी देश के वासी हैं। निश्चित रूप से सुसंस्कार,तमीज़ और तहज़ीब हमारी बेशकीमती विरासत है। हमें बचपन से ही स्कूल में यह श£ोक कंठस्थ कराया जाता है कि ‘ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए औरन को शीतल करें आपहुं शीतल होए’। परंतु वर्तमान दौर में तो ऐसा प्रतीत होता है गोया उपरोक्त सभी बातें महज़ काल्पनिक बातें बनकर रह गई हों। ठीक इनके विपरीत आज देश में चारों ओर कुछ ऐसी शक्तियां सक्रिय हो उठी हैं जिनके पास ज़हर उगलने के अतिरिक्त गोया कोई दूसरा काम ही न हो। दुर्भाग्यपूर्ण तो यह है कि अपने कटु वचनों से समाज के वातावरण को ज़हरीला बनाने वाले यह लोग किसी ओर वर्ग के नहीं बल्कि राजनीति,धर्मक्षेत्र तथा समाज सेवा जैसे पुनीत क्षेत्रों से जुड़े लोग हैं।

हालांकि ऐसे वर्ग के लोगों से तो यही उम्मीद की जाती है कि इस प्रकार के जि़म्मेदार लोग समाज को जोडऩे,किन्हीं कारणों से समाज में आई दरार को खत्म करने,नफरत की खाई को पाटने जैसे कार्य करेंगे। परंतु शोहरत हासिल करने के नशे में चूर यह शक्तियां अपना अधिकांश समय इसी उधेड़-बुन में व्यतीत करती हैं कि किस प्रकार से ऐसे कड़वे वचन बोले जाएं जो समाज के किसी धर्म अथवा वर्ग विशेष के लोगों को तो आहत करें ही साथ-साथ उन्हें उनके इन्हीं ज़हरीले वचनों की वजह से अ$खबार व टेलीविज़न में भी प्राथमिकता से प्रकाशित व प्रसारित किया जाए। यानी ऐसे फायर ब्रांड नेताओं द्वारा ‘बदनाम अगर होंगे तो क्या नाम न होगा’ की नीति अख्तियार की जा रही है।

azam khan yogiहमारा देश विभिन्न धर्मों,संप्रदायों,जातियों तथा विभिन्न प्रकार के खानपान,पोशाक व बोली-भाषा वाला एक विशाल देश है। हम इस देश में कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक राष्ट्र होने के बावजूद किसी एक प्रकार की संस्कृति,सभ्यता,रहन-सहन अथवा भाषा आदि को एक-दूसरे पर थोप नहीं सकते। बजाए इसके हमें अपने देश को अखंड बनाए रखने के लिए एक-दूसरे की सभ्यताओं,संस्कृतियों व उनके रीति-रिवाजों व मान्यताओं आदि का सम्मान करने की ज़रूरत है। परंतु कुछ कुंए के मेंढक जैसी सोच व प्रवृति रखने वाले लोग मात्र अपने समाज अथवा अपने धर्म व जाति के लोगों को खुश करने के लिए तथा इसी बहाने प्रसिद्धि प्राप्त करने की गरज़ से दूसरे समुदाय के लोगों को सार्वजनिक रूप से अपशब्द कहते देखे जा रहे हैं। और जब देश के मंत्रियों,सांसदों,विधायकों तथा जि़म्मेदार नेताओं द्वारा इसी प्रकार की बातें की जाने लगें फिर तो देश के अंधकारमय भविष्य की कल्पना करना भी बेमानी नहीं है। केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा, गिरीराज सिंह,संजय बलियान,सांसद योगी आदित्यनाथ, साक्षी महाराज,साध्वी प्राची, आज़म खान, संगीत सोम,अकबरूद्दीन ओवैसीआदि कुछ ऐसे नाम हैं जिन्हें देश की जनता ने विभिन्न चुनाव क्षेत्रों से निर्वाचित कर लोकसभा अथवा विधानसभा में अपने प्रतिनिधि के रूप में निर्वाचित कर भेजा है।

ऐसे जि़ममेदार लोग किसी एक धर्म,समुदाय अथवा किसी जाति विशेष का प्रतिनिधित्व नहीं करते। बल्कि मंत्री बनने के बाद तो इनकी जि़म्मेदारी और भी बढ़ जाती है। यह अपने विभाग के पूरे सूबे अथवा पूरे देश के जि़म्मेदार मंत्री होते हैं। परंतु ऐसे पदों पर पहुंचने के बावजूद यदि इनके मुंह से धर्म विशेष के लोगेां के प्रति ज़हर उगलना जारी रहे या समाज को विभाजित करने का इनका रवैया बर$करार रहे तो इनसे बड़ा गैर जि़म्मेदार तथा हमारे देश की मिली-जुली तहज़ीब को आघात पहुंचाने वाला दूसरा व्यक्ति और किसे कहा जाए?

इन दिनों देश में कहीं किसी धर्म विशेष के निहत्थे,कमज़ोर व अकेले व्यक्ति को लक्षित हिंसा का शिकार बनाया जा रहा है तो कहीं गौकशी के नाम पर राजनैतिक रोटियां सेंकने की साजि़श रची जा रही है। और यदि इसी दौरान कहीं किसी राज्य में चुनाव होते नज़र आ जाएं फिर तो ऐसे विवादित मुद्दों पर ही पूरा चुनाव लडऩे के दुष्प्रयास शुरु हो जाते हैं। जैसाकि इन दिनों देखा जा रहा है कि बिहार जैसे देश के दूसरे सबसे बड़े राज्य में राजनेताओं द्वारा चुनाव पूर्व क्या-क्या हथकंडे नहीं अपनाए जा रहे हैं? लालू यादव स्वयं को यदुवंशी व सबसे बड़ा गौपालक होने की सफाई देते फिर रहे हैं तो दूसरी ओर उनपर निशाना साधने वाले लोग उन्हें ‘कंस की औलाद’ तक कहने से बाज़ नहीं आ रहे हैं। इसी प्रकार सांसद साक्षी महाराज ‘गाय की खातिर मरने और मारने को तैयार’ जैसे गैरजि़म्मेदाराना व भडक़ाऊ बयान दे रहे हैं। यहां ऐसे बयानों को एक-एक कर गिनाने की या उन भडक़ाऊ बातों का दोहराने की कोई आवश्यकता नहीं क्योंकि अखबार व टेलीविज़न इन कड़वे वचन बोलने वाले फायर ब्रांड नेताओं की मनोकामना पूरी करते हुए प्रतिदिन इनके विषय में कुछ न कुछ प्रकाशित व प्रसारित कर अपनी टीआरपी तो बढ़ाते ही रहते हैं साथ-साथ इन्हें इनकी मुंहमांगी मुराद यानी बैठे-बिठाए शोहरत भी मिलती रहती है। भले ही समाज में धर्म आधारित नफरत की खाईयां क्यों न गहरी होती जाएं। परंतु इन स्वयंभू जि़म्मेदार नेताओं को अपनी सत्ता व प्रसिद्धि की मद में किसी बात की कोई फिक्र नहीं रहती।

इसी प्रकार आज़म खान व अकबरूद्दीन ओवैसी जैसे जनप्रतिनिधि भी आए दिन इन्हीं कट्टरपंथी शक्तियों के विरुद्ध कुछ न कुछ ऐसी आपत्तिजनक बयानबाजि़यां करते रहते हैं जिससे यह प्रमाणित होता है कि समाज में ज़हर घोलने का काम केवल किसी एक समुदाय विशेष के नेताओं की ओर से ही नहीं किया जा रहा बल्कि ऐसी कोशिशों में दूसरे वर्ग के नेता भी पूरी सक्रियता से लगे हुए हैं। अकबरूद्दीन ओवैसी व आज़म खान जैसे नेता तो यूं भी स्वयं को तमीज़ और तहज़ीब का अलमबरदार बताते हैं तथा अपनी उर्दू जैसी मधुर वाणी से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। परंतु यदि इसी मीठी भाषा में ज़हर से बुझे हुए तीर चलने लगें तो इसे भी उर्दू तहज़ीब का अपमान ही कहा जाएगा। जिस भाषा का इस्तेमाल यह नेता समाज में कड़वाहट घोलने में करते हैं उसी भाषा का इस्तेमाल यदि समाज को जोडऩे व नफरत की खाई को पाटने के लिए किया जाए तो यह कहीं ज़्यादा कारगर साबित होगा और इनकी लोकप्रियता भी बढ़ेगी। परंतु यह लोग भी कट्टरपंथी हिंदुत्ववादी नेताओं की ही तरह उन्हीं की भाषा में उनका जवाब देने की कोशिश करते हैं जिससे समाज में फासला और अधिक बढऩे लगता है। ज़ाहिर है इन नेताओं द्वारा इस्तेमाल की गई किसी भी ऐसी भाषा को जो समाज को बांटने का काम करे,किसी जि़ममेदार मंत्री अथवा विधायक के मुंह से निकलने वाली भाषा नहीं कहा जा सकता।

देश की लोकसभा में 543 सांसद हैं। देश की जनता अपने सांसद के अतिरिक्त शायद ही दस-बारह और अन्य सांसदों के नाम जानती हो। उनमें भी ऐसे सांसदों को लोग ज़्यादा जानते हैं जो चंद प्रमुख विभागों के केंद्रीय मंत्री हों। परंतु देश की जनता साक्षी महाराज,योगी आदित्यनाथ,साध्वी प्राची, व गिरीराज सिंह जैसे सांसदों के नामों को भलीभांति जानती है। इसलिए नहीं कि इन्होंने राष्ट्रनिर्माण में अपना कोई अमूलय योगदान दिया हो बल्कि केवल इसलिए कि यह लोग अपने बेतुके ज़हरीले तथा आपत्तिजनक बयानों की वजह से आए दिन सु$िर्खयां बटोरते रहते हें। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश की विधानसभा में जहां 403 विधायक हैं वहां सबसे अधिक प्रसिद्धि प्राप्त मंत्री व विधायक का नाम भी आज़म खान है। यह भी अपने विवादित व आपत्तिजनक बयानों के चलते राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त करने वाले नेता बन चुके हैं।

इसी प्रकार आंध्र प्रदेश विधानसभा में जहां विधायक व विधान पार्षद मिलाकर 221 सदस्य हैं इस राज्य मेंं भी सबसे अधिक शोहरत विधायक अकबरूद्दीन ओवैसी को ही हासिल है। गोया यह नेता या इस प्रकार के अन्य कई नेता व कई अन्य तथाकथित स्वयंसेवी संगठनों के जि़म्मेदार लोग व अनेक धर्मगुरु समाज में ज़हरीले बोल बोलकर भले ही शोहरत हासिल करने का शार्टकट रास्ता क्यों न अपनाते हों परंतु इनकी यह शैली देश को कमज़ोर करने,विभिन्न धर्मों व समुदायों के मध्य अविश्वास का वातावरण पैदा करने तथा देश में हिंसा व अराजकता का माहौल बनाने का काम करती है। और इन हालात में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि भी धूमिल होती है। देश के जि़म्मेदार लोगों,धर्मगुरुओं तथा जनप्रतिनिधियों से तो यही उम्मीद की जानी चाहिए कि वे देश को जोडऩे तथा एक-दूसरे धर्म व समुदाय के मध्य सहयोग व विश्वास का वातावरण बनाने का काम करें। देश की सरकारें अपने नफे-नुकसान को देखते हुए भले ही ऐसे फायर ब्रांड नेताओं को प्रोत्साहित अथवा हतोत्साहित करें या न करें परंतु राष्ट्र का हित चाहने वाली जनता का यह दायित्व है कि वह ऐसे नेताओं की मंशा तथा उनके इरादों को भलीभांति समझे और इनका बहिष्कार कर इन्हें आईना दिखाने की कोशिश करे।

:-निर्मल रानी

nirmalaनिर्मल रानी 
1618/11, महावीर नगर,
अम्बाला शहर,हरियाणा।
फोन-09729-229728

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