भारतीय जनता पार्टी अब बिहार चुनाव में मिली हार के बाद देश में होने वाले चुनावों को बड़ी गंभीरता से ले रही है। हाल ही में 9 नवंबर को दिल्ली में संपन्न पार्लियामेंट बोर्ड की बैठक में बिहार के चुनाव के साथ-साथ मध्यप्रदेश के रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव पर भी चर्चा हुई।
भाजपा के पार्लियामेंट्री बोर्ड के सदस्य एवं मुख्यमंत्री ने बोर्ड को आश्वस्त कराया है कि मध्यप्रदेश में बिहार चुनाव की हार का असर नहीं पड़ेगा और रतलाम-झाबुआ लोकसभा की यह सीट भाजपा के खाते में ही जाएगी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने झाबुआ-रतलाम उपचुनाव की तिथि की घोषणा के पहले ही इस लोकसभा क्षेत्र में सरकारी आयोजन के माध्यम से विकास की करोड़ों की लागत से प्रारंभ होने वाली योजनाओं की आधारशीला रखी थी। इस क्षेत्र में 15 से 20 स्थानों में वे कार्यक्रम आयोजित कर मतदाताओं को रिझाने का प्रयास कर चुके है। भाजपा ने चुनाव की तिथि की घोषणा पूर्व ही अपना प्रत्याशी लगभग तय कर लिया था और उनके पास प्रत्याशी का टोटा था यही वजह रही है कि हमेशा परिवारवाद का विरोध करने वाली भाजपा ने इस सीट पर पार्टी ने पूर्व सांसद दिलीप सिंह भूरिया की बेटी निर्मला भूरिया को अपना प्रत्याशी घोषित किया है। आदिवासी बहूल्य यह क्षेत्र आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित है।
इस सीट पर हमेशा कांग्रेस का बोलबाला रहा है। 2009 से झाबुआ की लोकसभा सीट परिसीमन के बाद समाप्त कर दी गई थी और रतलाम-झाबुआ सीट के नाम से जाने जाने लगी। 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के पूर्व केन्द्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया ने भाजपा के प्रत्याशी दिलीप सिंह भूरिया को 57780 वोटों से हराया था और केन्द्र की यूपीए सरकार में केन्द्रीय मंत्री बने थे। इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी को 251255 वोट मिले वहीं कांग्रेस को 308923 वोट मिले थे। 2014 लोकसभा चुनावों में भी भाजपा ने दिलीप सिंह भूरिया को पुन: टिकट दिया था वहीं कांग्रेस की तरफ से कांतिलाल भूरिया एक बार फिर मैदान में थे। इस चूनाव में भाजपा प्रत्याशी दिलीप सिंह भूरिया को मोदी लहर का लाभ मिला और वे 108447 (एक लाख 8 हजार चार सौ सैतालिस) वोटों से कांग्रेसी प्रत्याशी कांतिलाल भूरिया को हराने में सफल रहे। झाबुआ लोकसभा सीट कांग्रेस की परंपरागत सीट थी इस सीट पर कांग्रेस की टिकट से दिलीप सिंह भूरिया और कांतिलाल भूरिया चुनाव लड़ते रहे और जीतते रहे है। कांग्रेस शासनकाल में केन्द्रीय मंत्री रहे दिलीप सिंह भूरिया ने 1999-2000 में कांग्रेस छोडक़र भाजपा का दामन थाम लिया वे एनडीए शासनकाल में जनजाती आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे।
समय के साथ भूरिया की दलगत आस्था बदलती रही वे गोडवाना गणतंत्र पार्टी और अजय भारत पार्टी के भी पदाधिकारी रहे, वे 2008 में एक बार फिर भाजपा में शामिल हो गए थे। कांतिलाल भूरिया और दिलीप सिंह भूरिया चाचा भतीजे माने जाते है। दिलीप सिंह के पार्टी छोडऩे के बाद कांतिलाल ने पार्टी में एक आदिवासी नेता के रूप में अपनी छवि स्थापित कर ली। इतना ही नहीं झाबुआ लोकसभा सीट पर वे मजबूत आधार स्थापित करने में भी वह सफल रहे। दिलीप सिंह भूरिया के निधन के बाद खाली हुई सीट के चुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टी अपनी प्रतिष्ठा से जोडक़र देख रही है और यही कारण है कि सत्तारूढ़ दल चुनाव आचार संहिता लगने के पूर्व सरकारी खजाने से हर संभव राशि क्षेत्र के विकास में लगाकर मतदाताओं को आकर्षित करने में लगा था। भाजपा संगठन और सरकार दोनों ही काफी पहले से ही चुनाव तैयारी में लगे हुए थे। कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष और पूर्व केन्द्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया की सक्रियता भी भाजपा से कम नहीं आंकी जा सकती। यह बात अलग है कि केन्द्र और राज्य में कांग्रेस की सरकार ना होने की वजह से वे यहां सरकारी तंत्र से मतदाताओं को आकर्षित करने वाली कोई योजना प्रांरभ नहीं कर सके। 2014 लोकसभा चुनाव से यह चुनाव काफी हद तक अलग रहेगा।
2014 में जो मोदी लहर थी वह इस समय नहीं है बल्कि बिहार, दिल्ली में मिली बीजेपी को करारी हार का असर इस क्षेत्र में देखने को मिल सकता है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत द्वारा आरक्षण को लेकर दिए बयान को कांग्रेस इस क्षेत्र में मुद्दा बनाने में लगी है, अनूसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित इस क्षेत्र में यह मुद्दा अत्याधिक संवेदनशील होगा। यह बात अलग है कि इस मुद्दे को कांग्रेस अपने पक्ष में मतदान कराने में कितनी सफल हो पाती है। वही प्रदेश का विश्व चर्चित व्यापम घोटाले का सर्वाधिक असर इसी लोकसभा क्षेत्र में रहा है।
इस क्षेत्र के युवाओं को व्यापम मामले में पुलिस की काफी प्रताडऩा भी झेलनी पड़ी है। झाबुआ जिले के मेघनगर में व्यापम घोटाले से जुड़ी छात्रा नम्रता डामोर का नाम आने के बाद उसका शव उज्जैन के पास रेलवे ट्रेक में मिला था इस घटना की रिपोर्टिंग करने मेघनगर पहुंचे आज तक के रिपोर्टर अक्षय सिंह की रहस्यमय तरीके से मौत हो गई और यह मामला अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी जमकर गूंजा। व्यापम मामले में इस लोकसभा क्षेत्र के काफी मतदाता प्रभावित हुए थे। कांग्रेस आरक्षण के बाद व्यापमं घोटाले को सबसे बड़ा मुद्दा बनाने में लगी है। सितंबर माह में पेटलावद में हुई भीषण त्रासदी ने भी भाजपा के कुल्हे हिलाकर रख दिए है।
घटना का मुख्य आरोपी राजेन्द्र कासवा आरएसएस और भाजपा से जुड़ा बताया जा रहा है। घटना के दो माह बाद भी पुलिस मुख्य आरोपी को पकडऩे में असफल रही है। क्षेत्रीय जनता भी इस बात को लेकर काफी आक्रोषित है। कांग्रेस इस आक्रोश को अपने पक्ष में जुटाने में लगी है। इस चुनाव में कांग्रेस के पास खोने को कुछ नहीं दिख रहा है, बल्कि पाने को बहुत कुछ है, यदि कांग्रेस उम्मीदवार कांतिलाल चुनाव जीतते है तो प्रदेश में कांग्रेस के खाते में तीन सीटें हो जाएगी। प्रदेशाध्यक्ष रहते हुए भूरिया के नेतृत्व में 2013 विधानसभा चुनाव में जो करारी हार पार्टी को झेलने को मिली थी उसे भुलाकर पार्टी उन्हें कोई महत्वपूर्ण दायित्व भी सौंप सकती है। भूरिया को जीताने की जिम्मेदारी पार्टी ने सभी क्षेत्रीय क्षत्रपों को सौंपी है। कमलनाथ, दिग्गी, ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ ही प्रदेश प्रभारी मोहन प्रकाश भी चुनाव जीतने की रणनीति तैयार करने में लगे हुए है। बिहार की तर्ज पर महा गठबंधन बनाकर भाजपा विरोधी वोटों को बंटने से बचाने के प्रयास भी किए जा रहे है, जिसमें सफलता मिलने की पूर्ण संभावना है, ऐसा माना जा रहा है कि पार्टी का केन्द्रीय नेतृत्व भी अपने स्तर पर प्रयास करेगा।
कांग्रेस के स्टार प्रचारक सोनिया गांधी और राहुल गांधी के इस सीट पर प्रचार में आने की संभावना बहुत कम है, हालांकि भूरिया अपने संबंधों के आधार पर सोनिया गांधी को प्रचार के लिए बुलाने में लगे हुए है। भाजपा की तरफ से चुनाव प्रचार की कमान प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश के संगठन महामंत्री अरविन्द मेनन के हाथों में है उनके सहयोग के लिए प्रदेश के एक दर्जन से भी अधिक मंत्री और दो केन्द्रीय मंत्रियों को दायित्व सौंपा गया है। प्रदेश के परिवहन मंत्री भूपेन्द्र सिंह को पार्टी ने चुनाव प्रभारी बनाया है। भाजपा इस क्षेत्र में व्यापम, आरक्षण और पेटलावद जैसे मुद्दे को भुलाकर शिवराज के विकासात्मक कार्यों को सामने रख कर मोदी के ‘सबका साथ सबका विकास’ नारे को सार्थक करने में लगी है।
प्रदेश के संगठन महामंत्री के रूप में अपने 5 वर्ष का कार्यकाल पूर्ण कर चुके अरविन्द मेनन के लिए यह चुनाव अत्यंत महत्वपूर्ण है, उनके कार्यकाल में भाजपा ने सभी उपचुनावों, लोकसभा चुनावों एवं 2013 के विधानसभा चुनाव के साथ ही नगरीय निकाय चुनावों में जीत का स्वाद चखा है। व्यापमं घोटाले की व्यापकता के बाद यह पहला आम चुनाव है, साथ ही इस चुनाव के पूर्व जो हार का सामना पार्टी को बिहार में झेलना पड़ा उससे यह चुनाव भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व के लिए भी प्रतिष्ठा का बन गया है। यदि यह चुनाव भाजपा हार जाती है तो प्रदेश में शिवराज एवं केन्द्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रभाव और जादू खत्म होने की बात करने का विपक्ष को मौका मिलेगा। भाजपा इस बात को लेकर काफी गंभीर है, यही वजह है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने सारे कार्यक्रम निरस्त कर झाबुआ में ही रहकर 13 नवंबर तक प्रतिदिन 10-10 सभाएं करने का निर्णय लिया है।
मध्यप्रदेश के कांग्रेस प्रभारी मोहन प्रकाश भी इस क्षेत्र में गंभीरतासे लगे हुए है, बिहार में कांग्रेस को मिली जीत के बाद पार्टी जीत का अपना सिलसिला कायम रखना चाहती है और यही वजह है कि पार्टी इस सीट पर पार्टी जातीगत कार्ड भी चल रही है। 15 नवंबर को इंदौर में ब्राम्हण सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है, जिसके माध्यम से पार्टी ब्राम्हण वोटों को अपनी तरफ मोडऩे का प्रयास करेगी। पार्टी की तरफ से यह कार्य महेश जोशी और भोपाल के पूर्व विधायक पीसी शर्मा को सौंपा गया है।
कांग्रेस का प्रयास शिवराज के इस बयान को भी केस कराने का है जो उन्होंने बौद्ध सम्मेलन के दौरान कहा था कि कोई माई का लाल आरक्षण खत्म नहीं कर सकता। भाजपा भी अपने ब्राम्हण नेताओं को आगे करके क्षेत्र के लगभग 30 हजार ब्राम्हण मतदाताओं को अपनी तरफ करने की कोशिश में लगी है। ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो चुनाव परिणाम ही तय करेंगे, लेकिन राजनैतिक पंडितों और मेरा स्वयं का यह मानना है कि यह चुनाव परिणाम प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के भविष्य की राजनीति के लिए महत्वपूर्ण है।
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