भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों ब्रिटेन का अपना सफल दौरा पूरा किया। लंदन में जिस प्रकार उनका भव्य स्वागत किया गया उससे निश्चित रूप से देश का सिर बुलंद हुआ। परंतु देश में मोदी राज में बढ़ती असहिष्णुता तथा गुजरात में 2002 में हुए सांप्रदायिक दंगों की काली छाया ने यहां भी उनका पीछा नहीं छोड़ा। जिस समय ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरून के साथ नरेंद्र मोदी एक संयुक्त पत्रकार सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे उसी समय एक पत्रकार ने भारत में इन दिनों बढ़ती जा रही असहिष्णुता की घटनाओं का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से प्रश्र किया कि भारतवर्ष आ$िखर लगातार असहिष्णु देश क्यों बनता जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस प्रश्र के जवाब में यह उत्तर दिया कि-‘भारत बुद्ध व गांधी की धरती है और हमारे देश की संस्कृति समाज के बुनियादी मूल्यों के विरुद्ध किसी बात को स्वीकार नहीं करती’। एक दूसरे पत्रकार ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री कैमरून से प्रश्र कर डाला कि मोदी का ब्रिटेन में स्वागत करते हुए वे स्वयं को कितना सहज महसूस कर रहे हैं,विशेषकर इस तथ्य को देखते हुए कि आपके (कैमरून के) प्रधानमंत्री पद के प्रथम कार्यकाल के समय नरेंद्र मोदी को गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर ब्रिटेन आने की अनुमति नहीं दी गई थी। इसी पत्रकार ने नरेंद्र मोदी से भी यह प्रश्र किया कि उनके लंदन आगमन पर यह कहते हुए विरोध प्रदर्शन हुए कि गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए उनके रिकॉर्ड को देखते हुए वे उस प्रकार के सम्मान के अधिकारी नहीं जिसे आमतौर पर विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के किसी नेता को दिया जाता है?
जहां तक प्रधानमंत्री के लंदन में हुए अभूतपूर्व स्वागत का प्रश्र है तो जहां इस स्वागत से देश स्वयं को गौरवान्वित महसूस करता है वहीं पत्रकारों की इस प्रकार की प्रश्रावली तथा नरेंद्र मोदी के विरुद्ध लंदन में सडक़ों पर विभिन्न संगठनों व समुदायों के लोगों द्वारा किया जाने वाला ज़ोरदार विरोध प्रदर्शन भी देश के लिए चिंता का विषय है। इस बात से कौन इंकार कर सकता है कि यह गंाधी व बुद्ध की धरती है तथा भारत ने हमेशा पूरे विश्व को शांति,अहिंसा,प्रेम व सद्भाव का पाठ पढ़ाया है। महात्मा बुद्ध जिनकी कर्मस्थली भारतवर्ष रहा है, आज दुनिया के जिन-जिन देशों में महात्मा बुद्ध के अनुयायी रहते हैं उन देशों में महात्मा बुद्ध के अमूल्य संदेशों की वजह से ही भारत को आदर व सम्मान की निगाह से देखा जाता है। इसी प्रकार गांधी के सत्य व अहिंसा के संदेशों के चलते दुनिया भारत को नमन करती है। विश्व का कोई भी राष्ट्राध्यक्ष ऐसा नहीं होता जो नई दिल्ली आए और राजघाट पर गांधी जी की समाधि के समक्ष अपने सिर को न झुकाए। गोया यह कहना तो बहुत सरल है कि भारतवर्ष बुद्ध व गांधी की धरती है पंरतु क्या वर्तमान समय में गांधी और बुद्ध की धरती का मान व सम्मान उनकी शिक्षाओं के अनुरूप रखा जा रहा है? पिछले दिनों भारत में बिहार रा’य में विधानसभा चुनाव संपन्न हुए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं अपने भाषण में यह कहा कि पिछड़ों का आरक्षण छीन कर दूसरे धर्म के लोगों को देने की साजि़श रची जा रही है। उन्होंने अपने बयान के समर्थन में नितीश कुमार द्वारा पूर्व में लोकसभा में मुसलमानों को आरक्षण दिए जाने के संबंध में दिए गए उनके भाषण की प्रतियां जनता को दिखाईं। विधि विशेषज्ञों के अनुसार भारतीय संविधान में ऐसा संभव ही नहीं है कि किसी एक वर्ग का आरक्षण छीनकर किसी दूसरे वर्ग को दिया जा सके। फिर आ$िखर प्रधानमंत्री द्वारा इस प्रकार की बात करने का तात्पर्य क्या था? यदि यह महज़ धर्म आधारित मतों के ध्रुवीकरण का प्रयास नहीं तो और किस प्रकार की कोशिश थी? क्या बुद्ध व गांधी की शिक्षाा इस बात की इजाज़त देती है कि सत्ता की खातिर समाज में ऐसी गैर जि़म्मेदाराना बातें कर समाज को बांटने की कोशिश की जाए?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले भी कई बार भारत में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा तथा के पक्ष में व महात्मा गांधी व बुद्ध के मूल्यों की हिफाज़त करने की बातें कर चुके हैं। वे यहां तक कह चुके हैं कि यदि आवश्यकता पड़ी तो वे आधी रात में भी अल्पसंख्यकों की रक्षा हेतु तैयार हैं। परंतु बिहार में दिया गया उनका आरक्षण संबंधी भाषण व भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की गैरजि़म्मेदाराना बातें तथा उनकी अपनी पार्टी के कई मुख्यमंत्रियों,मंत्रियों,सांसदों व विधायकों द्वारा देश में खुलेआम अल्पसंख्यकों के विरुद्ध उगला जाने वाला ज़हर देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को यह सोचने के लिए मजबूर कर रहा है कि आखर भारत में गत् डेढ़ वर्ष में अचानक असहिष्णुता इस कद्र क्योंकर बढऩे लगी? हालांकि नरेंद्र मोदी के राजनैतिक संस्कारों का केंद्र समझे जाने वाली राष्ट्रीय स्वयं संघ की शिक्षा-दीक्षा तथा उसके संस्कार तो निश्चित रूप से यही सिखाते हैं कि देश का धर्म के आधार पर धु्रवीकरण हो। इनके मार्गदर्शक व इनके आदर्श समझे जाने वाले नेता अपनी पुस्तकों में यह उल्लेख कर चुके हैं कि देश को मुसलमानों,ईसईयों तथा कम्युनिस्टों से बड़ा खतरा है। इनकी शिक्षाएं उन अंगे्रज़ों को भी अपना दुश्मन नहीं मानतीं जिन्होंने भारत में क्रूरतापूर्वक शासन किया तथा देश को $गुलाम बनाकर रखा। परंतु इस विशाल लोकतंत्र के निर्वाचित प्रधानमंत्री के नाते नरेंद्र मोदी व उनके सहयोगी नेताओं की यह मजबूरी है कि वे विश्व को यह दर्शाते रहें कि भारतीय शासक समूचे लोकतंत्र की निष्पक्ष नुमांईंदगी करने वाले एक धर्मनिरपेक्ष शासक हैं। परंतु क्या हकीकत में ऐसा है?
गत् अक्तूबर के दूसरे सप्ताह में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर,केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा,भाजपा सांसद साक्षी महाराज तथा भाजपा विधायक संगीत सोम को बुलाकर उनके द्वारा अल्पसंख्यकों के विरुद्ध दिए जाने वाले विवादित व आपत्तिजनक बयानों पर लगाम लगाने की हिदायत दी। यह समाचार मीडिया में प्रसारित कराया गया। यह सुनकर अ‘छा भी लगा कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष द्वारा अपने बेलगाम नेताओं पर नकेल कसी गई है। परंतु स्वयं अमित शाह ने बिहार में चुनाव जीतने की गरज़ से अपने भाषण में यह कहा कि यदि भारतीय जनता पार्टी बिहार में चुनाव हारती है तो पाकिस्तान में पटाखे छूटेंगे। क्या अमितशाह अथवा भाजपा के अन्य नेता अमितशाह के इस वक्तव्य की समीक्षा कर सकते हैं? आखर अमितशाह ने किस संदर्भ में यह बात कही और इस प्रकार का बयान देकर वे क्या साबित करना चाहते थे? क्या जो अमितशाह अपनी पार्टी के दूसरे बेलगाम नेताओं को अपने बयानों पर नियंत्रण रखने की हिदायत दे रहे हों उन्हें स्वयं इस प्रकार की गैरजि़म्मेदाराना बात करनी चाहिए? उनका यह वक्तव्य जनता को कितना स्वीकार हुआ और कितना नहीं,प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बिहार के पिछडा़ें में उनके आरक्षण छीने जाने का भय बताया जाना वहां की जनता ने कितना सुना और उस बात की कितनी अनसुनी की यह बिहार का चुनाव परिणाम साबित कर चुका है। बिहार का चुनाव परिणाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लंदन में दिए गए उस वक्तव्य को शत-प्रतिशत सत्य साबित कर चुका है कि भारतवर्ष बुद्ध व गांधी की धरती है और यहां असहिष्णुता की कोई गुंजाईश नहीं। बिहार के इस संदेश से अब देश के उन शासकों को भी सबक लेना चाहिए जो बातें तो सहिष्णुता की करते हैं और संरक्षण अहसिष्णुता फैलाने वालों को देते हैं।
भाारत में बढ़ती असहिष्णुता पर केवल देश का अल्पसंख्यक समाज या यहां का राजनैतिक विपक्ष ही चिंतित नहीं है बल्कि पिछले दिनों वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ‘ मूडीज़’ की निवेशक सेवाओं वाली शाखा मूडिज़ एनोलाटिक्स ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से यह अपील की कि-‘ या तो वह अपनी पार्टी के सदस्यों पर लगाम लगाएं या घरेलू और वैश्विक साख को गंवाने के लिए तैयार रहें’। मूडीज़ ने कहा कि ‘विभिन्न बीजेपी सदस्यों की ओर से विवादित बयान दिए जाते रहे और विभिन्न भारतीय अल्पसंख्यकों को उकसाने की कार्रवाईयों ने जातीय तनाव पैदा किया है परंतु सरकार ने कुछ नहीं किया’। मूडीज़ के इस बयान के अगले ही दिन इंफोसिस के संस्थापक एन आर नारायणमूर्ति ने कहा कि अल्पसंख्यकों के ज़ेहन में बहुत डर बैठा हुआ है जोकि आर्थिक विकास पर असर डाल रहा है। रिज़र्व बैंक के गर्वनर राम रघुराजन ने कहा कि राजनैतिक रूप से सही होने की अत्यधिक कोशिशें तरक्की में रुकावट पैदा कर रही हैं। सहनशीलता का माहौल अलग-अलग विचारों के प्रति सम्मान तथा सवाल करने के अधिकार की सुरक्षा देश के विकास के लिए ज़रूरी है। गोया देश का प्रत्येक शुभचिंतक, जि़म्मेदार व्यक्ति व बुद्धिजीवी वर्ग देश के वर्तमान हालात को लेकर चिंतित है। और शासक वर्ग से राष्ट्र के प्रति गंभीर होने की बाट जोह रहा है। परंतु शासकों की दोहरी नीति के चलते देश का डरा व सहमा समाज देश के बहुसंख्य असिहष्णु व उदारवादी समाज के सहयोग,समर्थन व उसके मेल-मिलाप के बावजूद उसे संदेह की नज़र से देख रहा है। यह समाज यह सोचने को मजबूर है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि- हम को उनसे वफा की है उम्मीद- जो नहीं जानते वफा क्या है ?
:-तनवीर जाफरी
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