कहां थे हम और कहां जा रहे है? विकास,गरीबी,अर्थव्यवस्था आदि समस्याएँ जो देशहित के लिये सर्वोपरि है,उन्हें पूर्णतः अनदेखा कर हम धर्म और
संस्कृति की जुबानी जंग करने मे मशगुल हुए जा रहे है। क्या यही है हमारा धर्मनिरपेक्ष अतुल्य भारत ??
“एक प्रक्रिया जो लम्बे समय से प्रचलन मे है वह है,विचारों का राजनितीकरण और राजनीति का विचारीकरण”।
साहित्यकारों से लेकर फिल्मकारों तक और राजनेताओं से लेकर कलाकारों तक सभी बयानबहादुर बने फिर रहे है।इनमें से कोई भी गरीबी के ऊपर कोई बयान नही देता, कोई नही कहता कि देश की अर्थव्यवस्था को कैसे सुदृढ़ किया जाये,मरते किसानों के ऊपर कोई चिंता जाहिर कर यह नहीं कहता कि ये क्यूँ आत्महत्या करने पर आमादा हो रहै है?
कभी कोई बुद्धिजीवी शिक्षा के बाजारीकरण पर अपने विचार नही रखता लेकिन अवांछनीय रूप से लोगों की मानसिकता पर प्रहार कर उन्हें आहत करने मे इन्हें मजा आता है। ‘न जाने अतीत और वर्तमान की विचारधाराओं में सम्मिलित आज का राजनैतिक परिवेश भारत को किस दिशा मे लेकर जायेगा’??
अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक,गाय,आरक्षण,पाकिस्तान और एक दम तरोताजा ‘असहिष्णुता’ जैसे शब्दों पर हम ओछी राजनीति करने को ऊतारू हो गये
है,लेकिन कभी भी विकास के नाम पर राजनीति नही करते है,क्यों ? एक वर्ग कहता है देश मे असहिष्णुता बड़ी है और दुसरा कहता है नही बड़ी है फिर हमारे तथाकथित न्यूज चैनल वाले उन्हें आपस मे लडवाकर अपनी टीआरपी का ऊल्लू सीधा करते है। संसद का भी यही हाल हैं ,पक्ष और विपक्ष मे आरोप और प्रत्यारोप का घमासान मचा बैठा है,और करोड़ों रूपये ऐसे ही बरबाद हो रहै है।
यह पैसे तो जनता की मेहनत है और हमारे बयान बहादुर इन्हें बयानों की गर्मजोशी की आग मे जलाते जा रहै है। भूमिअधिग्रहण अपनी जगह अटका हुआ है कोई काम शुचारू रूप से नहीं हो रहा है। आखिर कब तक ये लोग जनता के विश्वास मे जहर घोलते जाएंगे ? अब तो विदेशी भी हम पर ऊँगली उठाने से नही कतराते है।
अगर जल्द ही देश को बयानी पटरी से निकालकर विकास की ओर नहीं लाया गया तो वह दिन दुर नही जब हम फिर से जमीन पर गिर जाएंगे । अब तो हमारे पडौसी देश भी हमे देख कर कहते है कि —
बकौल दुष्यंत-
“तुम्हारे शहर मे ये शोर सुन सुनकर तो लगता है।
कि इंसानों के जंगल मे कोई हाॅका हुआ होगा”।
पंकज कसरादे ‘बेखबर’
मुलताई
मध्यप्रदेश