नई दिल्ली- भारत ने नेपाल में मधेशियों की मांग पर संसद द्वारा नए संविधान में पहले संशोधन को दी गई मंजूरी का स्वागत करते हुए इसे सकारात्मक दिशा में उठाया गया कदम करार दिया।
नेपाली संसद ने शनिवार को इस संशोधन को मंजूरी दी, जिसका भारत ने रविवार को स्वागत किया।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा, “हम नेपाली संसद द्वारा शनिवार को पारित दो संशोधनों को सकारात्मक मानते हुए उनका स्वागत करते हैं।”
स्वरूप ने ट्वीट कर कहा, “हम उम्मीद करते हैं कि शेष मुद्दों को भी इसी प्रकार सकारात्मक रुख से हल किया जाएगा।”
मतदान में शामिल 468 सांसदों में से 461 ने संशोधन प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जबकि सात ने इसके खिलाफ वोट दिया। इस बीच मधेशियों से संबंधित पार्टियों के सांसद नारेबाजी करते रहे।
इस मतदान-प्रक्रिया में मधेशी पार्टियां शामिल नहीं हुईं, जो अपनी मांगों को लेकर पिछले साल 20 सितम्बर को नया संविधान लागू होने के बाद से ही भारत से सटे नेपाल के दक्षिणी तराई क्षेत्र में आंदोलन कर रहे हैं।
मधेशी मोर्चा ने संशोधन से असंतोष जताया है। मोर्चा ने कहा कि हालांकि यह कदम प्रगतिवादी है, लेकिन यह हमारी मांगों को पूरा नहीं करता।
मधेशी मोर्चा नेता उपेंद्र यादव ने आईएएनएस से कहा कि इसमें हमारी राय नहीं ली गई।
मधेशी नेताओं ने कहा कि वे रविवार को बैठक करेंगे और इस संशोधन पर औपचारिक फैसला लेंगे, जिसे नेपाली कांग्रेस, सीपीएन-यूएमएल, यूसीपीएन (माओवादी) और अन्य पार्टियों ने पारित किया है।
संशोधन के मुताबिक, नेपाल में पहले से मौजूद 17 जातीय समूहों की संख्या घटाकर 15 कर दी गई है।
हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव के संसदीय क्षेत्रों की सीमाओं के निर्धारण के लिए परिसीमन आयोग बनाया जाएगा। यह निर्धारण प्राथमिक तौर पर जनसंख्या के आधार पर होगा, जबकि भौगोलिक स्थिति इसमें दूसरा कारक होगा।
नेपाल के दक्षिणी तराई हिस्से के पूर्व से पश्चिमी क्षेत्र में रहने वाले मधेशियों की आबादी नेपाल की कुल आबादी का 51 फीसदी है।