रेत पर लिखी इबारतें (जाबिर हुसैन का रचना-कर्म) और ‘कोलाहल में शब्दों की लय’ (जाबिर हुसैन की क़लम) : समय की निराशा को दूर करने और मनुष्य की शून्यता को भरने की ज़िद – शहंशाह आलम
‘रेत पर लिखी इबारतें’ और ‘कोलाहल में शब्दों की लय’ समकालीन भारतीय साहित्य के सर्वाधिक चर्चित साहित्यकारों में एक जाबिर हुसेन के रचना-कर्म का, दो खंडों में समाहित, सुविचारित और क़लम की अनमोल ताक़त का एहसास कराते देश भर के प्रतिष्ठित रचनाकर्मियों के लेखों का ऐतिहासिक संचयन है। साल 2016 का आरंभ इस सर्वश्रेष्ठ अनुभूति से होने भर के बारे में सोचकर मन में एक नया अनुभव घनीभूत होने लगता है। ‘रेत पर लिखी इबारतें’ जहाँ 612 पृष्ठों में फैली हुई है, वहीं ‘कोलाहल में शब्दों की लय’ 520 पृष्ठों में फैलकर नीले आकाश की तरह हमारी आँखों को जैसे ठंडक पहुँचाती है। सुबूही हुसैन के कुशल चयन-संपादन में ‘विजया बुक्स’ से छपकर आईं दोनों किताबें साहित्यकार जाबिर हुसैन के मानवीय रचनात्मक अनुभवों को जिस सलीक़े, जिस हुनरमंदी, जिस उत्फुल्लता, जिस उत्साह, जिस उत्सव से और जिस उदघोष से उदघाटित करती हैं, वह अन्यत्र कम दिखाई देता है। जाबिर हुसैन उन कुछेक साहित्यकारों में भी हैं, जिनकी क़लम सिर्फ़ और सिर्फ़ आम आदमी का जयघोष करती आई है। उनकी जैसी उत्कृष्ट भाषा-शैली भी कुछेक के यहाँ ही दिखाई देती है।
‘रेत पर लिखी इबारतें’ का आरंभ जहाँ अली सरदार जाफ़री, गोपीचंद नारंग, एम एफ़ हुसेन, गुलज़ार, निर्मल वर्मा, विष्णु प्रभाकर, कमलेश्वर, हबीब तनवीर, नामवर सिंह, जानकी वल्लभ शास्त्री, अशोक वाजपेयी, केदारनाथ सिंह, सिद्दीक़ मुजीबी, अख़तर पयामी, अली अमजद, मुहम्मद हसन, शीन अख़तर, प्रभाष जोशी, कृष्णा सोबती, चित्रा मुदगल, ममता कालिया, लतिका रेणु, मोनिका मिश्रा, रॉबिन शॉ पुष्प, रामवचन राय, रामधारी सिंह दिवाकर, परेश सिन्हा आदि के साथ गुज़ारे लम्हों की तस्वीरों के साथ होकर श्रीपत राय, कमलेश्वर, मृणाल पाण्डे, हसन जमाल, मधुरेश, शिवनारायण, मुद्राराक्षस, मधुकर सिंह, नासिरा शर्मा, रॉबिन शॉ पुष्प, रामधारी सिंह दिवाकर, अरुणकमल, फ़रज़ंद अहमद, अमर कुमार सिंह, रामवचन राय, शंभु गुप्त, अजित कुमार, सत्यनारायण, रवींद्र राजहंस, कुमार प्रशांत, राजी सेठ, रवि भूषण, शिव कुमार मिश्र, दिनेश्वर प्रसाद, कर्मेंदु शिशिर, ओम निश्चल, किरण अग्रवाल, ऋता शुक्ल, शफ़ी जावेद, श्रीराम तिवारी, अवध बिहारी पाठक, प्रमोद तिवारी, शैलेन्द्र चौहान, क़ासिम ख़ुर्शीद, शोभनाथ यादव, जगदीश्वर प्रसाद, बसंत त्रिपाठी, मणिकांत ठाकुर, सच्चिदानन्द, प्रभाष प्रसाद वर्मा, नरेन, मदन कश्यप, विनोद कुमार, शशिभूषण, मुकेश प्रत्यूष, अनुराग वाजपेयी, पल्लव, फ़ज़ल इमाम मल्लिक, अरुण सिंह, अनंत विजय, अंचल सिन्हा आदि के जाबिर हुसेन के प्रखर और अचंभित करनेवाले रचनात्मक योगदान को रेखांकित करनेवाले आलेख हैं। इन आलेखों में जाबिर हुसैन के रचना-कर्म को बड़ी ही बेबाकी और भाषिक चमत्कार के साथ रेखाँकित किया गया है।
जाबिर हुसैन जितने बेहतरीन गद्यकार, जितने बेहतरीन पद्यकार हैं, उतने ही बेहतरीन संपादन-कला के कार्यों से जुड़े रहे हैं। बिहार विधान परिषद् जैसी संवैधानिक संस्था के शीर्ष पद पर रहकर जहाँ ‘साक्ष्य’ जैसी वैचारिक पत्रिका का संपादन करते हुए देश भर में बिहार विधान परिषद् को नई पहचान दिलाई, वहीं अब स्वतंत्र रूप से ‘दोआबा’ जैसी उत्कृष्ट साहित्यिक पत्रिका का कुशल संपादन-प्रकाशन करते हुए अब तक उन्नीस अंक निकाल चुके हैं। ‘कोलाहल में शब्दों की लय’ खंड जाबिर हुसैन के इन्हीं सृजनात्मक कार्यों पर देश भर के लेखकों द्वारा व्यक्त किए गए विचारों का संकलन है। हाँ, इस खंड की विशेषता इसमें है कि इस खंड में जाबिर हुसैन की इक्कीस कथा-डायरी शामिल करते हुए उनके उद्दीप्त विचार और उद्देश्यपूर्ण जीवनानुभव को प्रकट करने का सार्थक प्रयास किया गया है। इस दूसरे खंड में जाबिर हुसेन का सर्वश्रेष्ठ रूप उभरकर सामने आया है। जाबिर हुसैन की कथा-डायरी अपने नए मुहावरे के कारण व्यापक पाठकवर्ग का ध्यान अपनी तरफ़ खींचती रही है।
‘कोलाहल में शब्दों की लय’ में सारी की सारी कथा-डायरियाँ इस मायने में विशिष्ट हैं कि इन कथा-डायरियों के पात्र अपनी-अपनी गहरी संवेदनाएँ व्यक्त करते हुए हमें चौंकाते भी हैं। इसी तरह जाबिरहुसैन की रचनाशीलता हमें चौंकाती भी रही है, आंदोलित भी करती रही है। इसलिए भी कि जाबिर हुसैन जितने जीवनानुभव के साहित्यकार हैं, उतने ही आंदोलनों के भी साहित्यकार हैं, इसीलिए उनके लेखन में जहाँ जन-सरोकार स्पष्ट दिखाई देते हैं, वहीं आमजन के प्रति उनकी प्राथमिकताएँ भी आईने की तरह साफ़ दिखाई देती हैं। इस संचयन की संपादिका सुबूही हुसैन लिखती भी हैं, सच्चाई यही है कि उन्होंने ज़िन्दगी भर जिन वर्गों की लड़ाई लड़ी और उन्हें इंसाफ़ दिलाने के लिए संघर्ष किया, उनके बीच ऐसी कोई सृजनात्मक प्रतिभा उभरकर सामने नहीं आई, जो ईमानदारीपूर्वक इन संघर्षों की सच्चाई उजागर कर सके। यह भी सच्चाई है कि जाबिर हुसेन की क़लम जागती रहती है। ‘कोलाहल में शब्दों की लय’ जाबिर हुसैन की जागनेवाली और चौकन्नी क़लम के समर्थन का ही साक्ष्य है।
इस दूसरे संचयन के महत्वपूर्ण लेखकों में अशोक वाजपेयी, सुरेश सलिल, रमाकांत श्रीवास्तव, रामधारी सिंह दिवाकर, शिवनारायण, कर्मेंदु शिशिर, रविभूषण, नासिरा शर्मा, किरण अग्रवाल, साधना अग्रवाल, क़ासिम ख़ुर्शीद, हरेन्द्र कुमार, सुशील सिद्धार्थ, मनोज मोहन, प्रमोद रंजन, वीरेन्द्र सारंग, सुधीर सुमन, प्रमोद कुमार सिंह, परितोष कुमार, विनय कुमार झा, विनोद विट्ठल, प्रणय प्रियंवद आदि हैं। इन सारे लेखकों ने जाबिर हुसैन के दुर्लभ साहित्यिक कार्यों को एकदम दुर्लभ तरीक़े से चित्रित किया है।
‘रेत पर लिखी इबारतें’ (जाबिर हुसैन का रचना-कर्म) और ‘कोलाहल में शब्दों की लय’ (जाबिर हुसैन की क़लम), इन दोनों संचयन का संपादन-प्रकाशन ऐसा है कि आप वर्षों भूल नहीं पाएँगे। यह संचयन हिंदी साहित्य में अपना दीर्घकालिक स्थान बनाए रखेगा, इसमें संदेह नहीं किया जाना चाहिए।
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‘रेत पर लिखी इबारतें’ (जाबिर हुसैन का रचना-कर्म), ‘कोलाहल में शब्द’ (जाबिर हुसैन की क़लम)/चयन एवं संपादन : सुबूही हुसैन/प्रकाशक : विजया बुक्स, 1/10753 स्ट्रीट 3, नवीन शाहदरा, दिल्ली-110032/पुस्तक प्राप्ति-संपर्क : दोआबा प्रकाशन, 247 एम आई जी, लोहियानगर, पटना-800020/मूल्य : 650₹ और 550₹।
समीक्षक :
शहंशाह आलम
प्रकाशन शाखा,
बिहार विधान परिषद
पटना- 800015.