पंचनद विश्व का एक मात्र ऐसा संगम स्थल है, जहां एक कोस की परिधि में पाँच नदियाँ (चम्बल, यमुना, सिंध, पहुज और क्वांरी) के चार अलग-अलग संगमों से मिलकर पंचनद की अविरल धारा प्रयाग में जाकर गंगा की गोद में समा जाती है। पंचनद की पौराणिक प्रसांगिकता की प्रमाणिकता बाल्मीक रचित रामायण में मंदोदरी-रावण संवाद में इसे शीघ्र फलदायी तपोस्थली बताया गया है। तो वहीं देवी भागवत ग्रन्थ में दैत्यराज दनु के प्रष्न पर ब्रम्हा जी द्वारा इसकी प्रसांगिकता का बखान स्पष्ट किया गया है।
जिसके बाद दैत्यराज द्वारा अपने दोनों पुत्रों रम्भ और करम्भ को तपस्या हेतु पंचनद भेजा गया था और इसी पौराणिक कथा में स्वयं ब्रम्हा जी द्वारा रम्भ के उद्धार और महिषासुर नामक दानव की उत्पत्ति का इसी स्थान पर वर्णन मिलता है।
वहीं कालेश्वर मन्दिर के समीप पंचनद कुण्ड में ब्रम्हा जी द्वारा अपने निज कमण्डल से डालीं गयीं पानी की बूंदों का महत्व वहां ब्रम्ह महूर्त में स्नान करने के उपरान्त महामृत्युजंय यंत्र स्पष्ट दृष्टिगोचर स्नानार्थी को अकाल मृत्यु से बचाता है। पंचनद परियोजना के साथ आध्यात्मिक हैरीटेज खोलेगा पर्यटन के द्वार
पंचनद के पश्चिम छोर पर एक बड़े तटीय भू-भाग में आध्यात्मिक हैरीटेज के लिए नदियों का शांत वातावरण यमुना-चंबल के संगम भरेह तट पर पाण्डु पुत्र भीम द्वारा स्थापित भारेष्वर मन्दिर तो वहीं यमुना, क्वारी और सिंध के तट पर कालेष्वर मन्दिर, समीप ही बाबा मुकुन्दवन एवं सिद्धकाली मन्दिर, दानदाता कर्ण द्वारा स्थापित कर्णादेवी मन्दिर जिनका हजारों वर्ष पुराना पौराणिक महत्व व इतिहास को संजोये अस्तित्व बचाये रखने की प्राचीर दृष्टिगोचर होती है। जिसे मात्र एक सड़क मार्ग से जोड़कर आध्यात्मिक हेरीटेज बनाकर देसी व विदेषी पर्यटकों एवं श्रद्धालुओं को आकर्षित किया जा सकता है।
प्रवासी पक्षी विहार सफारी बनेगी मजबूत आधार
पंचनद के पष्चिम छोर पर भरेह तट पर जहां भारत सरकार द्वारा पूर्व से क्रियान्वित राष्ट्रीय चम्बल सफारी योजना के तहत घडि़यालों, डाल्फिनों एवं कछुओं के संरक्षण के साथ-साथ अगर यहां प्रतिवर्ष सर्दियों के मौसम में एषियाई ठण्डे प्रदेशो रूस, साइबेरिया और मंगोलिया से आने वाले प्रवासी पक्षियों की एक सैकड़ा से अधिक प्रजातियों के समूहों को अनुकूल जैवकीय परिवेष की उपलब्धता को दृष्टिगत रखते हुए प्रवासी पक्षी विहार सफारी की इजाजत दे दी जाये तो यहां निष्चित ही करोड़ों रूपये देसी व विदेषी मुद्रा से पर्यटन के रूप में राष्ट्रीय आय में वृद्धि की जा सकती है। साथ ही स्थानीय स्तर पर महानगरों की ओर होने वाले पलायन को रोककर खाली हाथों में रोजगार का विकल्प दिया जा सकता है।
परियोजना को लेकर शंका और समाधान
पंचनद बांध परियोजना के क्रियान्वयन से निःसंदेह लाभ ही लाभ है। तो वहीं कुछ शंकाओं के बादल मन में घुमड़ रहे हैं जिसका समाधान खोजा जाना और नीति स्पष्ट करने की सख्त आवष्यकता भी है।
अगर यह मान लिया जाये कि बांध परियोजना से स्थानीय बासिंदों को अपनी जननी जमीन को न्यौछावर कर सरकार एवं राष्ट्र के हितों में सहयोग करें तो ऐसी स्थिति में उनके पेट की आग और परिवार के भविष्य की चिंता लाजमी सी है। ऐसी स्थिति में सरकार क्या उनको सिर्फ और सिर्फ मुआवजे से अनका पुनर्वास कराकर अपने कतव्यों से इतिश्री कर लेगी?
वहीं दूसरा बड़ा सवाल यह है कि वर्षों से दस्यु समस्या, सूखे और मौसम के विसम हालातों से जूझ रहे किसानों के बेटों को बेरोजगारी के दंष से बचाने के लिए क्या उन्हें इस परियोजना में नौकरियां देकर महानगरों की ओर होने वाले पलायन को रोकने की दिषा में कदम उठाया जायेगा।
बांध परियोजना को लेकर उठने वाले राजनैतिक असंतोष और समाधान
निःसंदेह बांध परियोजना को लेकर राजनैतिक सियासी गलियारों में विरोधी राजनैतिक तत्व भ्रामक प्रचार और बेवजह मुद्दे उछालकर सकारात्मक दिषा में रोढ़े अटकाने के प्रयास जगजाहिर होंगे ही साथ ही सबसे गंभीर पहलू यह होगा कि राजनैतिक फायदा विरोधियों को मिलने से बचाने की एक अहम चुनौती हमें स्वीकार करनी होगी। मेरा मत है कि अगर परियोजना में इसकी दिषा में क्रियान्वयन को लेकर संघर्षरत एक दर्जन स्थानीय लोगों की एक युवा टीम को समिति बनाकर स्थानीय समस्याओं और मुद्दों के समाधान की दिषा में प्रतिनिधित्व का मौका देकर होने वाले तमाम संदेहों व शंकाओं पर विराम लगाया जा सकेगा। @सुनील कुमार