शिक्षा समाज की एक ऐसी कङी हैं जो समाज को जितनी तेजी से उन्नति के शिखर पर चठा सकती हैं उतनी ही तेजी से उसे उस शिखर से नीचे भी गिरा सकती हैं । और भारत सदियों से अपनी उन्नत शिक्षा प्रणाली के लिए जाना जाता हैं परन्तु वर्तमान में देश में कुछ ऐसी भी घटनाएं सामने आ रहीं हैं जिसमे देश की शिक्षा प्रणाली पर गम्भीर सवाल उठाने का काम किया हैं । शिक्षा के प्रचार – प्रसार के उद्देश्य से जिन विश्वविधालयों की स्थापना की गई थी , आज उन में से अधिकांश विश्वविधालय राजनीति का अङ्ङा बन चुके हैं , और राजनीति का अङ्ङा बनने नें कोई बुराई नहीं हैं परन्तु जब राजनीति देशहित से ऊपर जाने लगती हैं तब देश का भविष्य अवश्य खतरे में नजर आने लगता हैं । जब संसद का सत्र बर्बाद होता हैं तो हम लोगों में से अधिकांश लोग नेताओ पर यह कहते हुए प्रहार करते हैं कि ये हमारे टैक्स कें पैसों की बर्बादी कर रहें हैं ,लेकिन जब हमारे ही टैक्स के पैसें से चलने वालें विश्वविधालय में राष्ट्र विरोधी नारें लगते हैं तो हम से ही कुछ लोग उसे अभिव्यक्ति की आजादी बताकर मामलें कों तूल देनें सें इंकार कर देते हैं ,और इसी विरोधाभास के कारण देश कों अपनें ही विद्रोहियों से जूझना पङता हैं ।
ऐसा ही कुछ वाकया इस समय जवाहर लाल नेहरु विश्वविधालय में देखने को मिल रहा हैं । देश की जाने-माने विश्वविधालय में गिनें जानें वाला यें विश्वविधालय , जिसमें देश का प्रत्यके विधार्थी पढना चाहता हैं। इन दिनों ये विश्वविधालय राष्ट्रहित में विधार्थी को प्रेरित करनें के कारण नहीं अपितु राष्ट्रविरोध में छात्रों कों प्रेरित करने ने कारण सुर्खियों में हैं । मामलें को समझनें सें पहले ये जानना भी जरुरी हैं कि आखिर जवाहर लाल नेहरु विश्वविधालय में ऐसी क्या खास बात हैं ?? जवाहर लाल नेहरु विश्वविधालय का निर्माण जेएनयू अधिनियम 1966 ( 1966 का 53 ) के अन्तर्गत संसद द्वारा 22 दिसम्बर 1966 को हुआ था । 2014 के आकङे के अनुसार जवाहर लाल नेहरु विश्वविधालय में 8,308 छात्र पढते हैं और अन्य विश्वविधालय में जहाँ 26 छात्रों पर 1 शिक्षक होता हैं वहीं जवाहर लाल नेहरु विश्वविधालय में 15 छात्रों पर 1 शिक्षक होता हैं ।
जेएनयू में सरकार को हर छात्र को पढाने में 3 लाख रुपये लगते हैं और सरकार की तरफ सें इस विश्वविधालय को हर साल 244 करोङ रुपये Aid और Subsidies को रुप में मिलते हैं । इस साल दिसम्बर में यह विश्वविधालय अपने 50 साल भी पूरे कर रहा हैं । विश्वविधालय का निर्माण जब हुआ था तब इसका उद्देश्य था कि ये विश्वविधालय अध्ययन , अनुसंधान और अपने संगठित जीवन के उदाहरण और प्रभाव द्वारा ज्ञान का प्रसार करना । उन सिद्दान्तों को विकास के लिए प्रयास करना , जिनके लिए जवाहर लाल नेहरु ने जीवन प्रयन्त काम किया था । जैसे – राष्ट्रीय एकता , सामाजिक न्याय , धर्म निरपेक्षता , जीवन की लोकतान्त्रिक पद्दति , अन्तरराष्ट्रिय समझ और सामाजिक समस्याओं के प्रति वैज्ञानिक द्रष्टिकोण को बढावा देना , तब के वर्तमान हालात को देखकर कोई भी विश्वविधालय के परिवेश पर सवाल नहीं उठा सकता था पर वर्तमान में विश्वविधालय पर सवाल उठने लगें हैं । ऐसा नहीं हैं कि विश्वविधालय का शैक्षिक परिवेश खराब हैं और विश्वविधालय का बौद्दिक स्तर निम्न हैं पर आए दिन विश्वविधलय से उठने वाले देशविरोध के स्वरों ने विश्वविधालय की छवि को धूमिल करने का काम किया हैं । विश्वविधलय के बौद्दिक स्तर का अनुमान हम इसी बात से लगा सकते हैं कि हमारे राजनेता अक्सर इस विश्वविधालय में जाने से बचते हैं क्योंकि जब छात्रों द्वारा सवाल के गोले दागे जाते हैं तब अधिकांश नेता निरउत्तर हो जाते हैं ।
हम इसी से अनुमान लगा सकते हैं कि जो राजनेता मीङिया के सवालों कें उत्तर एक बार दे भी सकते हैं पर इस विश्वविधालय के छात्रों के सवालों को जवाब नहीं दे पाते हैं , तो छात्रों का बौद्दिक स्तर कितना उच्च हैं !!!!!!! 2009 में जब राहुल गांधी यूपी की दलित बस्ती का दौरा करने के पश्चात बिना किसी तामझाम के इस विश्वविधालय के छात्रों से मिलने पहुँचे और उनसे सवाल पूछने को कहा तब छात्रों ने सवालों की ऐसी छङी लगा दी राहुल गाँधी जी निरउत्तर हो गए । छात्रों नें कॉर्पोरेट को टैक्स में छूट , विदेश नीति , किसान आत्महत्या , गुटनिरपेक्षता , लैटिन अमेरिका पर भारत की नीति और कांग्रेस में मौजूदा वंशवाद पर तीखे सवाल पूछे और हर बार की तरह मार्क्स , गांधी , एङम स्मिथ , गॉलब्रेथ , एंगेल्सको पढने वाले छात्रों के सवालों के उचित जवाब न दे पाने के कारण न केवल राहुल गांधी बल्कि मनमोहन सिंह , प्रणव मुख्रर्जी और इंदिरा गांधी को भी विरोध का सामना करना पङा था । जवाहर लाल नेहरु विश्वविधालय वह कैंपस जहाँ 1975 में आपतकाल , 1984 में सिक्ख दंगों का विरोध हुआ था तो बाबरी ध्वंस और गुजरात दंगों का भी विरोध हुआ हैं । पर ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि आखिर छात्रों को अचानक ऐसा क्या हो गया हैं कि वे देश विरोधी बातें करने लगे हैं । जो छात्र तर्कों के आधार पर बार करते थे आज वे तर्कविहीन क्यों होते जा रहें हैं ? जवाहर लाल नेहरु विश्वविधालय में जहाँ शुरु से ही वांमपंथी विचारधारा का प्रभुत्व रहा हैं , वहाँ धीरे-धीरे दक्षिणपंथी विचारधारा का विकास हो रहा हैं ।
इस का परिणाम 13 सितम्बर 2015 को छात्रसंघ चुनाव के परिणाम के रुप में सामने आया । 13 सितम्बर को हुए छात्रसंघ चुनाव में 4 में से 3 पद पर जहाँ वामपंथी विचारधारा वाले छात्रों को जीत मिली वहीं बीजेपी की छात्र शाखा एबीवीपी ने 14 साल का सूखा खत्म कर 1 पद पर कब्जा जमाया । 2001 में एबीवीपी के सांबित पात्रा ने 1 वोट से अध्यक्ष का चुनाव जीते थे । इसी परिणाम को देखते हुए छात्र संगठनों को अपने घटते प्रभुत्व का आभास हो रहा हैं ऐसे इसकी भङास 9 जनवरी को सामने आई जब 10 छात्रो के समूह ने ङेमोक्रेटिक स्टूङेंट युनियन के बैनर तले अफजल गुरु की फांसी की बरसी मनाते हुए फांसी का विरोध किया और जम्मू कश्मीर के लिबरेशन फ्रंट के सह संस्थापक मकबूल भट्ट की याद में देश विरोधी नारे लगाये गयें । नारें भी ऐसे लगाये गयें कि एक बार सुनने वाला भी बेचारा दुविधा में पङ जाये कि वे भारत में हैं या पाकिस्तान में । “ कश्मीर मांगे आजादी , केरल मांगे आजादी , पाकिस्तान जिन्दाबाद , हिन्दुस्तान मुर्दाबाद , तुम कितने अफजल मारोगो – हर घर से अफजल आंएगे ।“ ऐसे नारे को सुनने के बाद देश के वीर जवानों को भी अपनी शहादत पर अफसोस होता होगा ।
हालांकि बाद में इन नारों की अगुवाई करने वाले छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को गिरफ्तार कर लिया गया हैं और बाकी फरार छात्रों को भी खोजने का काम भी पुलिस कर रहीं हैं लेकिन इन सब में सबसें ज्यादा शर्म की बात तो यह हैं कि जहाँ सभी लोग इन छात्रों का विरोध कर रहे हैं , वहीं हमारें कुछ नेता इस मुद्दे पर भी राजनीति कर रहे हैं और अपनी सियासी रोटियां सेक रहे हैं । सीपीएम महासचिव सीताराम येजुरी और सीपीआई नेता ङी राजा ने कहा कि पुलिस गलत कारवाही कर रही हैं और देश में आपातकाल जैसा माहौल बनाया जा रहा हैं । वामंपंथी विचारधारा के इन नेताओ को समर्थन देने के लिए आम आदमी के तथाकथित मसीहा केजरीवाल और अपनी पार्टी का हाथ आम आदमी को देने की बात करने वाली कांग्रेस भी इन छात्रों के समर्थन में अपना हाथ बढा रहीं हैं ।
ऐसे में सवाल उठना लाजमी हैं कि क्या देश में कभी ऐसा समय आएगा , जब ये नेता अपनी राजनीति से ऊपर उठकर देश के बारे सोचेगें ? छात्रों को दिशा दिखाने वाले शिक्षक भी इन छात्रों का समर्थन कर रहे हैं । जिन शिक्षकों को छात्रों को देशप्रेम के लिए प्रेरित करना चाहिए वे भी छात्रों कें देशविरोधी कामों को प्रोत्साहित कर रहें हैं । देश के विश्वविधालय के माध्यम से महान समाज सुधारक एंव नेता इस देश को मिले हैं । आज विश्वविधालय में छात्रों की आन्तिरक राजनीति के कारण देश की छवि को जो नुकसान हो रहा हैं उसने हम सबको सोचने पर मजबूर किया हैं कि छात्र राजनीति कितनी उचित हैं ?
लेखिका – सुप्रिया सिंह
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