वर्तमान में देश वैश्विक पटल पर खुद को जितनी तेजी से मजबूत साबित करने का प्रयास कर रहा हैं , देश के कुछ नागरिक अपने स्वार्थ की पूर्ती के लिए देश को उतनी ही तेजी से पीछे खींचने का काम कर रहे हैं। हम विदेशों में जाकर अपनी छवि को सुधारने का प्रयास कर रहे हैं तो देश के नागरिक आए दिन कुछ ऐसा काम कर ही दे रहे हैं कि सुधरी हुई छवि फिर धुन्धली हो जा रहीं हैं और हमारे ऊपर अराजक हेने का तमगा लग जा रहा हैं । हाल फिलहाल की घटनाओं पर ध्यान दे तो साल की शुरूआत से ही देश में कुछ न कुछ ऐसा हो ही जा रहा कि विवाद थमने का नाम ही नही ले रहा हैं । कभी पठानकोट में हुआ हमला हमारी सुरक्षा की पोल खोल रहा हैं तो कभी जवाहर लाल नेहरू विश्वविधालय में लगे नारें देश के अन्दर फैलते हुए आतंक की तस्वीरे उजागर कर रहे हैं , वही आरक्षण के नाम पर बवाल कर रहे लोग अपने स्वार्थ में इतने अन्धे होते जा रहे हैं कि शान्त माहौल को भङकाने में अपना पूरा योगदान कर रहे हैं ।
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देश में पिछले साल से लेकर अब तक एकाएक जिस तरह आरक्षण के आन्दोलन की मांग अपना जोङ पकङ पही हैं , वे किसी भी तरह से देश हित में नही हैं और देश की राजनीति जिससे से माहौल शान्त करने की उम्मीद की जाती हैं वे हर बार की तरह हमें ठेंगा दिखाकर अपने हित को पूरा करने के खेल में देशहित को भी नुकसान पहुँचाने से नहीं चुकती हैं और ऐसा आज से नहीं सदियों से होता चला आ रहा हैं । जब देश का संविधान बन रहा था तब देश में ऊँच – नीच का बहुत ज्यादा बोलबाला था जिसके मध्य नजर देश की संविधान की धारा 10 में जनजातियों और अनुसूचित जातियों के लिए नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था की गयी हैं । जिससे उनके ऊँच – नीच का बढती खाई को भरा जा सकें पर संविधान सभा में उस समय भी आरक्षण के विषय पर विवाद हुआ था और मात्र एक वोट के कारण यह मुद्दा संविधान सभा में अटक गया था । ऐसी परिस्थिति में ङाँ. भीमराव अम्बेङकर को समस्या सामना करना पङा पर उन्होने इस समस्या से निकलने का एक अनूठा समाधान खोजा और उन्होनें अनुसूचित जाति व जनजाति शब्द के स्थान पर पिछङा वर्ग शब्द का प्रयोग किया । परन्तु विरोधों का सफर इससे खत्म नहीं हुआ और कुछ सदस्य तभी इसके विपक्ष में अपना तर्क देने लगे, जिनमे श्री टी.टी. क्रष्णामाचारी ने ,प्रारूप समिति पर ताना मारते हुए कहा कि , सम्भवत प्रारूप समिति अपने सदस्यों का स्वार्थ देखती रही हैं, इसीलिए संविधान बनाने के बजाए, वकीलों के वैभव की कोई चीज बना दी हैं । और सेठ दामोदर स्वरूप ने कहा कि पिछङे वर्ग के लिए सेवाओं में आरक्षण का अर्थ दक्षता और अच्छी सरकार को नकारना हैं और आरक्षण के इस विषय कों लोक सेवा आयोग के फैसले पर छोङ देना चाहिए ।
वहीं इतना विरोध होने के बाद भी आरक्षण के पक्ष में भी आवाज उठाने वालों की कमी नहीं थी । जिसमें प्रोफेसर के.टी, शाह ने कहा था कि यदि आरक्षण नही होगा तो भर्ती करने वाले अफसर अपने इच्छा अनुसार पक्षपात करेगा, ऐसी स्थिती में अफसर योग्यता नही देखता हैं ,केवल स्वार्थ देखता हैं। सान्तनू कुमार दास ने कहा कि अनुसूचित जाति के लोग परीक्षा में बैठते हैं ,उनका नाम सूची में आ भी जाता हैं , लेकिन पदों पर नियुक्ति का समय आता हैं तो उनकी नियुक्ति नहीं होती हैं, उन्होनें कहा कि ऐसा इसलिए होता हैं कि ,उच्चवर्ग के लोग जो नियुक्त होते हैं ,उनकी जबर्दस्त सिफारिश होती हैं ,जो उनकी नियुक्ति में सहायक होती हैं, ऐसी स्थिति में लोक सेवा आयोग का बना रहने का अर्थ नही हैं ।
अन्त में पूर्ण वाद-विवाद के बाद अम्बेङकर ने कहा कि देश के वर्तमान हालात में आरक्षण की देश को जरूत हैं पर एक सीमा पर आकर इसकों खत्म कर देना ही देश के लिए उचित रहेंगा । पर हमारी राजनीति की यही तो विशेषता हैं कि वे अच्छी बातों को जल्दी भूल जाती है और अपने हित की बातों को कभी नही भूलती हैं ,चाहे वे देश हित में हो या न हो और आज इसी का परिणाम हैं कि देश में आरक्षण की मांग उठती हैं और नेता अपने राजनीति हित को साधने के ख्याल से उसे दबाने के स्थान पर उग्र कर अपनी सियासी रोटियां सेकने में व्यस्त हो जाते हैं । परिणामस्वरूप गुजरात में पटेल आरक्षण , आन्ध्र प्रदेश में कापू समुदाय और हरियाणा में जाट आरक्षण की मांग उग्र हो जाती हैं ।
हरियाणा में इस समय जिस तरह जाट आरक्षण उग्र हुआ हैं उसने वहाँ के माहौल को एकदम अराजक बना दिया हैं । इस आरक्षण के आन्दोलन में एक तरफ जहाँ 1500 प्रदर्शकारियों थे वहीं दूसरी तरफ बस 150 सेना की टुकङी थी । रोहतक, झज्जर, हिसार, करनाल, पानीपत. सोनीपत, भिवनी जैसे पूरे 9 जिलों में कर्फ्यू जैसे हालात बने हुए थे । भीङ ने हरियाण के वित्त मन्त्री कैप्टन अभिमन्यु के घर के घर पर हमला कर उनके घर को आग के हवाले करने में भी देर नहीं की और दुर्भाग्यवश वे उस समय घर पर हीं उपस्थित थे , हालाँकि इस घटना क्रम में उन्हें कोई चोट नहीं आई । आरक्षण के इस आन्दोलन के कारण रेलवे को पूरे 200 करोङ का नुकसान हुआ हैं , और रेलवे को अपनी कई मालगाङी और मुसाफिर गाङी भी रद्द करनी पङी । देश की जानी-मानी दूध कम्पनी अमूल को रोहतक स्थित अपने प्लांट में काम बन्द करना पङा ।
इस आन्दोलन की मार न केवल हरियाणा पर पङ रही हैं बल्कि इसने दिल्ली को भी अपने चपेट में ले लिया था । दिल्ली को हरियाणा से हर रोज मिलने वाला 60 प्रतिशत पानी जो मुनक नहर से प्राप्त होता था इस पर आन्दोलनकानियों ने अपना कब्जा जमाकर पानी की आपूर्ति को पूरी तरह से बन्द कर दिया हैं तो दूसरी तरफ हरियाणा से आने वाले वाहनों पर भी इस आन्दोलन का व्यापक प्रभाव पङा हैं जिसके कारण आजादपुर मंङी में सब्जियों की कीमत में 100 रूपये प्रति क्विंटल पहुँच गयी हैं , क्योकि इन सब्जियों की आपूर्ति में 10 से 15 प्रतिशत की कमी आई हैं । इन्ही सब के बीच हरियाणा सरकार को रविवार को होने वाली CTET की परीक्षा को भी रद्द करना पङा । ऐसे में ये सवाल उठने लगे हैं कि क्या इस तरह से सरकारी कामों को बाधित करके और जनता को नुकसान पहुँचा कर अपनी माँग मनवाने का ये तरीका कितना सही हैं ? इससे पहले भी इन आनदोलनकारियों ने अपनी माँगो को मनवाने के लिए जून 2015 में आन्दोलन किया था और रेलवे की पटरियों की कुर्बानी ले ली थी , जिसका खामियाजा यात्रियों को भुगतना पङा था ।
[box type=”shadow” ] आरक्षण पर आन्दोलन करने वाले के इतिहास पर अगर ध्यान दे तो हम देखेगें कि ये आन्दोलनकारी हर बार अपनी मांग को सरकार से मनवाने के लिए हिंसा का सहारा लेते हैं । इसका उदाहरण हम आन्ध्र प्रदेश में पूर्वी गोदावरी जिलें हुए कापू समुदाय के आन्दोलन को देखकर भी लगा सकते । उस आन्दोलन में तो आन्दोलनकारियों ने अपनी सारी सीमा ही लांघ दी थी और ट्रेन के ङिब्बों को आग के हवाले कर दिया था । तो दूसरी तरफ गुजरात के पटेल आरक्षण के आन्दोलनकारियों ने भी खङी बस को आग के हवाले कर दिया था। [/box]
आखिरकार इस तरह सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुँचा कर अप्रत्यक्ष रुप से ये आन्दोलनकारी अपने ही टैक्स के पैसों की बर्बादी कर रहें हैं और ऐसा भी नहीं कहा जा सकता हैं की इन्हें इस बात का पता का न हों कि ये अपने ही पैसों में आग लगा रहें हैं ,क्योकि गुजरात के पटेल , आन्ध्र प्रदेश का कापू समुदाय और हरियाणा के जाट अपने राज्य के सम्रद्द समुदायों मे गिने जाते हैं और पढे-लिखे भी माने जाते हैं , ऐसे में इन सें हिंसा की उम्मीद नहीं की जा सकती हैं पर वे हर बार हिंसा करके हमारी उम्मीदों को तोङ देते हैं । आरक्षण के मुद्दे पर राजनेताओं को जहाँ आरक्षण की माँग कर रहे लोगों को शान्त करने का प्रयास करना चाहिए वे वहाँ इस मुदुद् पर हर बार की तरह राजनीति करने लगते हैं और अपने चुनावी वोट बैंक को मजबूत करने की कोशिश करने में लगें रहते हैं, चाहे उससे देश को नुकसान ही क्यों न पहुँचें ।
जाट आरक्षण का प्रतिनिध्तव कर रहें अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समीति के राष्ट्रीय अध्यक्ष मलिक ने कहा कि हिंसा में भाजपा के कार्यकर्ता शामिल हैं और मुख्यमन्त्री नहीं चाहते हैं कि जाटों को आरक्षण मिलें , क्योकि वे स्वंय जाट नही हैं । ऐसे आरोप प्रत्यारोप करने वाले नेताओं से उम्मीद करना कि आरक्षण को शान्त करेगे , हम एक तरह से अपने आप को ही धोखा दे रहें हैं । नेताओं को आरक्षण के मुद्दे पर राजनीति करने के लिए प्रेरित करने में बहुत हद तक हम हीं लोग जिम्मेदार हैं क्योकि हम लोग ही हर बार जाति, धर्म के नाम पर बटँते हैं और हम बटँते हैं तभी वे हमें बाटँते हैं और अपनी सियासत करते हैं , इसीलिए जिस दिन हम लोंग वाकई में आपस में एक – दूसरे को भाई-भाई मानने लगे , उस दिन सें हम इस तरह की राजनीति का शिकार होने से बहुत हद तक बच मकते हैं । और अगर आरक्षण पर ध्यान दे तो आज आरक्षण को उचित ठहराना बहुत हद ठीक नही हैं क्योकि आज समाज बदल रहा हैं और ऊँच-नीच का भेद भी मिट रहा हैं ,इसीलिए अगर आज आरक्षण देना ही हैं तो उसे आर्थिक आधार पर देना ज्यादा तर्क संगत रहेगा ,क्योकि आज भी समाज का एक बङा तबका ऐसा हैं जो आरक्षण के अन्दर न आने के कारण विकास से पीछे हैं । जातिगत आरक्षण के स्थान पर आर्थिक आधार पर आरक्षण को आधिक महत्त्व देना आज समाज के हित में अधिक उपयोगी रहेगा और इसे वाकई में समाज में समानता लागू हो सकेगीं और सब अपना विकास कर सकेंगें । – फाइल फोटो
लेखिका – सुप्रिया सिंह
संपर्क – singh98supriya@gmail.com