मुंबई- शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय में कहा गया है कि “धार्मिक मुद्दों को अदालत में नहीं ले जाना चाहिए और ऐसे मुद्दों का निपटारा अदालत में नहीं होना चाहिए। इस तरह के मुद्दों का निपटारा सौहार्दपूर्ण ढंग से चर्चा कर समाज के लोगों और संतों द्वारा होना चाहिए।” पूजा स्थलों पर महिलाओं को पूजा करने का समान अधिकार देने संबंधी बंबई उच्च न्यायालय के आदेश के संदर्भ में शिवसेना ने सोमवार को अदालतों से आग्रह किया कि वे धार्मिक मुद्दों से दूर रहें।
संपादकीय में यह भी कहा गया कि यह आज तक बहस का मुद्दा है कि शिरडी के साईं बाबा हिंदू थे या मुसलमान। लेकिन अदालत इसका निर्णय नहीं कर सकती है, क्योंकि यह आस्था का विषय है। इसी तरह अदालत अंतिम रूप से यह नहीं कह सकती कि भगवान राम अयोध्या में ही पैदा हुए थे। इसका फैसला तो समाज के वरिष्ठों को करना चाहिए। वहीँ महाराष्ट्र के अहमदनगर स्थित शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की मनाही के मुद्दे का निपटारा करने की जिम्मेदारी भी मंदिर के ट्रस्टियों, भक्तों और वहां के ग्रामीणों पर छोड़ देनी चाहिए।
उच्च न्यायालय के फैसले पर सवालिया निशान लगाते हुए शिवसेना ने कहा कि क्या यह आदेश उन महिलाओं पर भी लागू होगा, जो मुस्लिम धर्मस्थलों पर इबादत के लिए सघर्षरत हैं। शिवसेना ने कहा कि चूंकि यह महिला सशक्तीकरण में सहायक होगा, इसलिए अदालत को दृढ़तापूर्वक कहना चाहिए कि समान अधिकार सभी महिलाओं को मिलना चाहिए। इस संदर्भ में शिवसेना ने उल्लेख किया कि महिलाओं की समानता की लड़ाई में महाराष्ट्र कैसे अगुवा रहा है। महान समाज सुधारक ज्योतिराव फुले और महर्षि धोंडो केशव कर्वे इसी प्रयास में बहिष्कृत हुए थे।