लखनऊ- ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में महिला श्रमिकों की संख्या के लिहाज से उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है ! साथ ही शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में महिला कामगारों की संख्या में सबसे ज्यादा अन्तर भी इसी सूबे में है ! एसोचैम-टारी द्वारा किए गए एक ताजा अध्ययन में यह तथ्य सामने आया है !
उद्योग मंडल एसोचैम और नालेज फर्म ‘थॉट आर्बिटरेज रिसर्च इंस्टीट्यूट’ (टारी) ने ‘फीमेल लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन इन इंडिया’ विषय पर किए गए अध्ययन में महिला श्रमशक्ति भागीदारी (एफएलएफपी) के मामले में दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले भारत की स्थिति का विश्लेषण किया है ! साथ ही यह जानने की कोशिश की है कि कौन से कारक भारत में एफएलएफपी को तय करते हैं और एफएलएफपी में सुधार की राह में कौन-कौन सी बाधाएं हैं !
अध्ययन के दायरे में लिए गए चार राज्यों उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश तथा मध्य प्रदेश में एफएलएफपी की स्थिति का विश्लेषण किया गया है !
देश का सबसे ज्यादा आबादी वाला और एफएलएफपी के राष्ट्रीय स्तर पर मौजूदा रुझानों को बेहतर बनाने की खासी संभावनाओं वाला राज्य होने की वजह से उत्तर प्रदेश पर विशेष ध्यान दिया गया है !
एसोचैम के राष्ट्रीय महासचिव डीएस रावत ने यह अध्ययन रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि अध्ययन में शामिल किए गए चार राज्यों में से उत्तर प्रदेश में शहरी क्षेत्रों में स्वावलंबी महिलाओं का फीसद सबसे ज्यादा (67.5) है, हालांकि शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में महिला कामगारों की संख्या में सबसे ज्यादा अन्तर भी उत्तर प्रदेश में ही है ! रावत ने कहा कि देश में कुटीर, लघु तथा मध्यम औद्योगिक इकाइयों (एमएसएमई) में 33.17 लाख महिलाओं को रोजगार मिल रहा है ! उनमें से दो लाख महिलाओं को उत्तर प्रदेश की एमएसएमई से रोजी-रोटी मिल रही है !
रावत ने कहा, ‘पूर्णकालिक श्रमिकों की संख्या के लिहाज से उत्तर प्रदेश देश में अव्वल है ! इनमें 4.98 करोड़ पुरुष तथा 1.59 करोड़ महिलाएं शामिल हैं ! हालांकि लैंगिक अन्तर के मामले में भी उत्तर प्रदेश शीर्ष पर है !’
उन्होंने कहा, ‘उत्तर प्रदेश की वर्तमान सरकार ने सुधार के अनेक प्रयास किए हैं लेकिन अभी काफी काम होना बाकी है ! [एजेंसी]