जिस रूपये को कमाने के लिये मनुष्य दिन रात एक करता है वह विभिन्न प्रकार के व्यवसाय एवं जतन करता है वही अब धीरे-धीरे जेब और तिजोरी से गायब होने लगा है। इसकी जगह लेने लगे हैं विभिन्न प्रकार के वह कार्ड जो इसके पर्याय बनते जा रहे हैं जी हां यह सच्चाई है जो शनै:शनै:मनुष्य को नगदी से दूर करती जा रही है। कहने का मतलब साफ है कि हम फिर वहीं पहुंचने लगे हैं जहां करोडों वर्ष पूर्व थे?
ज्ञात हो कि मुद्रा का चलन के पूर्व वस्तु विनिमय और कार्य के बदले जरूरत की चीजें और अनाज को देने की प्रथा रही है। फिर प्रारंभ हुआ विभिन्न प्रकार की समय-समय पर मुद्राओं का चलन लेकिन अब यही मुद्रा जो कि आदमी को अमीर और गरीब की श्रेणी में लाकर खडा करती है गायब होते जा रही है? यह बात अलग है कि इसकी जगह प्रचलन वाले कार्ड एवं सीधे एकाउंट में आदान प्रदान ने ले ली है। देखा जाये तो विश्व के अधिकांश देश इस दिशा में काफी आगे निकल चुके हैं तो भारत भी इससे पीछे नहीं दिखलायी देता है सरकार की मंशा स्वयं इस दिशा में कार्य को गति देने से साफ देखी जा सकती है।
संसार के कुछ देश तो एैसे हैं जहां छोटे-छोटे व्यवसायी भी क्रेडिट कार्ड का प्रयोग करने में लगे हुये हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार कोपेनहागेन एवं स्टॉकहोम जैसे नगरों में चाय कॉफी वाले छोटे खोमचों में भी क्रेडिट कार्ड से भुगतान करने की सुविधा है। बतलाया जाता है कि यूरोप का स्कैंडिनेवियाई नगद से छुटकारा पाने लगा हुआ है वहीं बर्ष 2030 तक डेनमार्क एवं स्वीडन कैशलेस सोसाइटी अर्थात् बगैर नगद मुद्रा वाले राष्ट्र बनने में लगा हुआ है।
ज्ञात हो कि यहां पर वर्तमान में अधिकांश भुगतान क्रेडिट कार्डों या मोबाइल के द्वारा उपभोक्ता करने लगे हैं। डेनमार्क में नोटों,सिक्कों को छोड क्रेडिट कार्ड या मोबाइल फोन से भुगतान को अच्छा मान कार्य कर रहे हैं। यहां एक बडा वर्ग तो नगद लेकर चलने पर अब भरोसा ही नहीं करता है। ज्ञात हो कि डेनमार्क के चैंबर ऑफ कॉमर्स ने गत बर्ष घोषणा कर दी थी कि समस्त व्यवसायी के पास नगद रहित पेमेन्ट का विकल्प होना आवश्यक हैं।
बात करें स्वीडन में जहां 95 प्रतिशत के लगभग व्यवसाय क्रेडिट कार्डों या बैंक ट्रांसफर से होने लगा है यहां तक लघु व्यवसायी एवं दुकानदार भी अब इसी दिशा में कार्य करने लगे हैं। ज्ञात हो इन देशों में अनेक बैंकों द्वारा एटीएम मशीनों को अलग करने की प्रक्रिया भी प्रारंभ हो चुकी है। जानकारों की माने तो गत बर्ष 2010 में स्वीडन देश में वहां के बैंकों में 8.7 अरब नगद क्रोनर (स्वीडन की मुद्रा) जमा थी बतलाया जाता है कि बर्ष 2014 में यह कम होकर सिर्फ 3.6 अरब हो गयी थी।
क्रेडिट कार्ड के बाद अब मोबाईल बैंक-
केश लेश होती तेजी से दुनिया में के्रडिट कार्ड के साथ मोबाईल फोनों का भी प्रचलन होने से एक कदम इसमें और जुड गया है। जानकारों की माने तो स्वीडन के ही कुछ प्रतिष्ठित बैंकों ने एक एैसा मोबाईल एप तैयार किया है जो लोगों में लोकप्रिय होने लगा है और बतलाया जाता है कि एक बडा भाग जो व्यापार खरीदी से लगभग आधा इसी के जरिये होने लगा है। डेनमार्क देश में तो मात्र 20 प्रतिशत ही नगदी का उपयोग किया जा रहा है। वैसे देखा जाये तो नगदी के बिना दुनिया और व्यापार का स्वीकार बडा मुश्किल सा प्रतीत होता है परन्तु यह एक सच्चाई है कि विश्व के अधिकांश देश इस दिशा में आगे बढ चुके हैं।
जानकार बतलाते हैं कि बैंकों के लिए यह बडे लाभ का सौदा है जिसमें क्रेडिट कार्ड से होने वाले भुगतान पर उसको कुछ ज्यादा आय प्राप्त होती है। वहीं बतलाया जाता है कि यूरोप के स्कैंडिनेवियाई देशों में कम मुद्रा को छापने का कार्य कम कर दिया गया है। डेनमार्क ने तो वकायदा यह घोषणा भी कर दी है कि वह नोट अर्थात् वहां की मुद्रा डैनिश क्रोनर की छपाई बंद करने की दिशा में कार्य करने जा रहा है।
भारत में भी बढता प्रचलन-
भारत में भी अधिकांश स्थानों पर के्रडिट कार्ड,ई-बेंकिंग,ई-पेमेन्ट,मोबाईल बेंकिंग इसी दिशा में बढता कदम बतलाया जाता है। इसकी संख्या में लगातार ईजाफा होने से लगता है कि वह दिन दूर नहीं जब भारत भी केश लेश हो कार्ड लेश हो जायेगा। इसके जहां अनेक फायदे हैं तो वहीं कुछ कमियां भी जानकार बतलाते हैं परन्तु फायदों की संख्या ज्यादा बतलाई जाती है। भारत सरकार द्वारा सीधे खातों में भुगतान,कर्मचारी पेंमेंट,करों के भुगतान,सब्सिडी,ई-पेमेंट सब कुछ इसी दिशा में आगे बढने के संकेत बतलाये जाते हैं। जानकार बतलाते हैं कि इससे सरकारों को ज्यादा लाभ होने की संभावनायें हैं क्योंकि जो भी राशि अर्थात् पैसा है वह सब पैसे रिकॉर्ड में आने से सब पारदर्शी हो जायेगा। काले धन एवं रिश्वतखोरी पर इससे लगाम लगने की पूरी संभावनायें बतलायी जा रही हैैं। जानकार बतलाते हैं कि पेटीएम नाम की एक कंपनी ने गत बर्षो में भारत देश में मोबाइल पेमेन्ट का कारोबार बहुत ही तेज गति से किया है।