दमोह- जो कभी देश की आजादी के लिये एक जूनून पैदा करता था फिरंगियों से लडने के लिये और राष्ट्र पर अपने प्राण न्यौछावर करने के लिये क्रांतिकारियों में राष्ट्र भक्ति का भाव पैदा करता था। जिसको गाते-गाते हजारों क्रांतिकारी फांसी के फंदों पर झूल गये वही वंदे मातरम आज गाने में या तो रूची नहीं दिखलायी दे रही है या फिर लापरवाही जिसको लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है।
ज्ञात हो कि मध्यप्रदेश शासन ने प्रत्येक माह के कार्यदिवस के प्रथम दिन में वंदे मातरम गायन प्रत्येक शासकीय कार्यालयों में कराने का निर्णय एवं आदेश जारी किये थे। जिसके चलते प्रारंभ में तो जोरशोर से यह किया गया परन्तु कुछ ही महिनों बाद यह सिर्फ संयुक्त कलेक्ट्रेड भवन तक सीमित होकर रह गया। परन्तु अब तो यहां भी होने वाली उपस्थिति शासकीय सेवकों की आरूचि एवं लापरवाही को दर्शाने के लिये काफी है अगर एैसा कहा जाये तो शायद कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी?
हालांकि बीच बीच में कुछ कार्यवाही भी हुई परन्तु फिर वही ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ होती देखी जा सकती है। सूत्रों की मानें तो संयुक्त कलेक्ट्रेड भवन को छोडकर किसी भी शासकीय कार्यालय में वंदे मातरम का गायन नहीं कराया जाता है। आज सम्पन्न हुये वंदे मातरम गायन के दौरान कुछ अधिकारियों,कर्मचारियों की समय के पूर्व उपस्थिति एवं अधिकांश की अनुपस्थिति को आप क्या कहेंगे? जिला मुख्यालय पर संयुक्त कलेक्ट्रेड भवन में आयोजित संचालित अधिकांश कार्यालयों के प्रमुख एवं अधिनस्थ कर्मचारियों का उपस्थित न रहना चर्चाओं में बना हुआ है?
वंदे मातरम गायन के अवसर पर डिप्टी कलेक्ट्रर,नंदा कुशरे,अविनाश रावत,सीपी पटेल के साथ कुछ विभागों के अधिकारी,कर्मचारियों की उपस्थिति रही। अधिकांश तो वंदे मातरम गायन होने के काफी देर बाद कार्यालय पहुंचे जिनकी लगातार चर्चा बनी रही?
@डॉ.एल.एन.वैष्णव