वो कहते है न अगर मन में काम करने की ललक हो तो हर मंजिल हासिल की जा सख्ती है। ऐसी ही कहानी है भोपाल की रहने वाली तस्लीम की जो बचपन से अपने दोनों पेरो से विकलांग है। वह नई नई दुल्हनों को मेहंदी लगाकर उस से मिलने वाले पेसो से जरूरत मंदो की मदद कर रही है।
तस्लीम ने चर्चा में बताया की मेरे घर की स्थिति ठीक नही थी हम घर में 6 लोग थे। पापा मजदूरी करते थे। तभी मैंने सोच लिया था की मुझे आगे चलकर मेरे माँ-बाप का सहारा बनना है। तस्लीम ने बताया की उसने मेहंदी लगाना कहि से नही सीखा,तस्लीम की छोटी बहन मेहंदी लगाने का कार्य करती थी।
जब छोटी बहन की शादी हो गई तब मेरे को मेरी अम्मी ने सलह दी की और हिम्मत दिलाई की तुम बहुत अच्छी मेहंदी बना सख्ती हो। तुम मेहंदी लगाने जाव तो सही। माना की तुम विकलांग हो उसका अफ़सोस पुरे परिवार को है,यह तो ईशवर की मर्जी है हमने बहुत कोशिस की तुम्हें ठीक करने की मग़र तुम ठीक नही हो पाई।अम्मी की यह बात मुझे बहुत समझ आई और मैंने हिम्मत की और निकल गई।
मैंने बहुत कम दिनों में बहुत अच्छी मेहंदी बनाना सीख लिया था। जब लोगो ने मेरे काम की तरीफ की और होसला अफजाई किया तो मेरे को बहुत अच्छा लगा। में अपने काम को और निखार ती गई और आगे बढ़ती गई जैसे जैसे समय गुजरता गया मेरी पहचान पुरे भोपाल में बढ़ती गई और जगह जगह से शादी में दुल्हनों को मेहंदी लगाने के आफर आने लगे।
में काम भी करती थी और साथ में पढ़ाई भी 10 वी कक्षा पास करने के बाद में आगे की पढ़ाई में टाइम नही दे सखी क्योंकि दिव्यांग होने की वजह से स्कूल आने जाने में बहुत दिक्कत आती थी।और आज मुझे मेहंदी लगाते लगाते 15 साल हो गए। और इसके बाद पापा अम्मी ने मेरी शादी सीहोर में कर दी। अब मेरा ख्याल मेरे पति रखते है और उन्होंने मुझे कभी भी मेहँदी का कार्य करने से मना नही किया बल्कि और मेरी हिम्मत बढ़ाई।
में ज्यादातर भोपाल में ही रहती हूँ मेरे मेहंदी के काम की वजह से और जब यहां काम नही होता तो सीहोर चली जाती हूँ मेरी सास और नन्द भी बहुत अच्छी है मेरा पूरा ख्याल रखती है। तस्लीम का कहना है की उसने जिंदगी से इतना ही सीखा है की अगर कोई कमी हो तो उसे अफ़सोस नही करना चाहिए। आज मेरी कमजोरी मेरी पहचान बनी है।
मुझे पोलियो होने का कोई अफ़सोस नही में बहुत खुश हूँ। शुरू में बहुत मुश्किल आई मगर मैंने कभी भी हिम्मत नही हारी।और लोग किसी ना किसी को अपनी पहचान बना लेते है मैंने अपने अपनी मजबूरी को ही अपनी पहचान बना ली। मेरी उम्र 36 वर्ष है जिंदगी में बहुत उतार चढ़ाव आए मगर कभी भी हार नही मानी बीमारी में सर्दी गर्मी कुछ नही देखा और अपना काम नही छोड़ा। अब मेरे लिए बहार से भी ऑफर आने लगे है लेकिन में यही खुश हूँ। क्योंकि मेरे लिए मेरा परिवार ही सब कुछ है और में अपने परिवार को नही छोड़ना चाहती।
किसी पे बोझ नही बनना था तभी मेहँदी लगाने को अपना मकसद बना लिया-
में अपने दोनों पैर से 80 प्रतिशत तक दिव्यांग हूँ। में अपने पापा अम्मी परिवार पर बोझ नही बनना चाहती थी। मेरा घर मेरी कमाई से तो नही चलता था मगर जबसे मैंने काम शुरू किया मेरे परिवार को कभी भी क़र्ज़ लेने की जरूरत नही पड़ी।
अपने कमाए पैसो से कर रही जरूरत मंदो की मदद-
तस्लीम ने बताया की कुछ समय पहले एक महिला का आंख का ऑपरेशन हुआ था। उसके बच्चे इलाज नही करवा रहे थे। मेरे को मालूम हुआ तो मैंने उन्हे इलाज के पैसे दिए और आज वो अपनी आँखों से देख सख्ती है।इसके अलावा बहुत गरीब घर की लड़की की शादी थी मैंने उस लड़की को फ्री में मेहँदी भी लगाई और अपने कमाये हुए पैसे में से उसकी शादी के लिए पैसे भी दिए। इसके अलावा भी तस्लीम बहुत से जरूरत मंद लोगो की मदद कर चुकी है।
लेखक:- @मोहम्मद ताहिर खान
मोबाईल-8878020501