खंडवा : इस वर्ष अन्य क्षेत्रों की तरह कोरकू बाहुल्य खालवा ब्लाक भी सूखे की मार झेल रहा है. ऐसे में लोगों, विशेषकर महिलाओं ने इस समस्या को गंभीरता से लिया. क्योंकि पानी के लिए उन्हें ही सबसे ज्यादा परेशानी उठानी पड़ती है, उन्होंने इससे निपटने के लिए कुछ ठोस करने की ठानी. अनेकों गावों में इसपर महिला समूह के सदस्यों ने चिंतन-मंथन किया और जलश्रोतों की पहचान की जिनमें पानी को अधिक समय तक सरंक्षित किया जा सकता है और उन जमीनों की भी पहचान की जिसमे वर्षा का पानी बहकर निकल जाता है. उन्होंने इस सन्दर्भ में स्पंदन के साथियों से भी चर्चा की और परस्पर सहयोग से इस कार्य को करने की रणनीति तय की. इसके तहत कुओं से गाद निकलकर उन्हें गहरा करने, अर्ध निर्मित कुओं को पूरा करने, तालाब का गहरीकरण, बहते नालो पर बोरी बंधान बनाने और पुराने जलश्रोतों जैसे स्टॉप डैम आदि की मरम्मत के काम शामिल किये गए. महिलाओं के सामने एक और समस्या थी. वे निश्चित रूप से इसे श्रमदान से करने के प्रति प्रतिबद्ध थी पर दो जून की रोटी जुटाना भी जरूरी था. स्पंदन ने गूँज नई दिल्ली और कुछ व्यक्तिगत दानकर्ताओं से अनाज और कपडे इकठ्ठा कर इस रिक्तता को पूरा करने का बीड़ा उठाया. यह तय किया गया कि श्रमदान करने वालों को प्रोत्साहन के रूप में दो किलो चावल , पाव भर दाल और उनके परिवारों को कपड़ों का सहयोग दिया जायेगा. इस परस्पर सहयोग की भावना से किया गए कामों का ब्यौरा, महिलाओं की पहलों, श्रमदान और अपने गावं के विकास में भागीदारी की अनूठी मिसाल है.
“ताप्ती नदी के किनारे जंगलों के बीच बसा बूटी गाँव इस बार पानी के लिए तरस गया. इसके मुहाने पर स्थित एक बड़ा तालाब न सिर्फ जल का प्रमख श्रोत था पर इसकी सुन्दरता में भी चार चाँद लगाता था. इस वर्ष दिसम्बर में ही यह सूख गया. लोगों को पानी के लिए , विशेषकर अपने पशुओं के लिए 3-4 किलोमीटर दूर ताप्ति नदी तक जाने के लिए बाध्य होना पड़ा. ऐसा शायद पहले कभी हुआ था. बूटी गाँव में दो ढाने (मोहल्ले) हैं जिसमे 162 परिवार रहते हैं और इसकी जनसंख्या लगभग 1000 है. इन मोहल्लों में कुल 08 हैण्ड पम्प हैं जिसमे से आधे बंद पड़े हैं और बाकी आधे भी काफी मेहनत के बावजूद कम मात्रा में पानी दे रहे हैं.
इस परिस्थिति में बूटी गाँव की चन्द महिलाऐं जो अपना स्व-सहायता समूह भी चलाती हैं, इस तालाब को गहरा करने के लिए आगे आई. अप्रैल –मई की कड़ी धूप में वे 3-4 घंटे का श्रमदान किया. उन्हें देखकर कुछ पुरुषों ने भी काम किया. इस काम में 60 महिलाओं और 7 पुरुषों ने योगदान दिया. तालाब बहुत बड़ा है और महिलाएं पूरे तालाब को गहरा कर पाने में असमर्थ पा रही थी. इसपर चर्चा हुई और तय किया गया कि कुछ घन्टों के लिए कल्टीवेटर लगाया जाए. कल्टीवेटर मिटटी खोदता गया और महिलाएं मिटटी ढोती रहीं. तालाब से निकलने वाली मिटटी आस पास के किसानों ने उठाकर अपने खेतों में डाली और महिलाओं ने कुछ मिटटी इकट्ठी की जो वे बारिश के समय वृक्षारोपण में इस्तेमाल करेंगी.
इन 53 महिलाओं ने कुल 17 दिन का श्रमदान किया. यदि इसे वर्तमान शासकीय न्यूनतम मजदूरी के दर से परिवर्तित किया जाए तो इस योगदान का मूल्य एक लाख बत्तीस हज़ार दो सौ उन्सठ रूपये होगा. स्पंदन द्वार गूँज और व्यक्तिगत दान दाताओं के सहयोग से इस स्वयं सेवा को प्रोत्साहन देने हेतु कुल 10 क्विन्टल चावल, 60 किलो दाल और 111 बोरी कपड़ों का सहयोग दिया गया.महिलाएं इस प्रयास से बड़ी उत्साहित है. दशकों पहले बने इस तालाब को अब वे नया नाम देने की सोच रही है. उन्होंने अपनी पंचायत में यह प्रस्ताव भी दिया कि आने वाले समय में वे इसमें मछली पालन कर अपनी आजीविका का एक नया श्रोत प्राप्त करेंगी.”
“लंगोटी गाँव की महिलाएं अपनी हिम्मत और लगन के लिए जानी गयीं जब उन्होंने अपने सामूहिक प्रयास से कुआँ खोदा. कड़ी मेहनत से वे तबतक खोदती चली गयीं जब तक कठोर चट्टानों के आगे वे न जा सकीं. पानी तो निकल आया पर इस वर्ष गर्मी में वह भी सूखने के कगार पर आ गया. अब चट्टानों को हटाना लाजमी था. महिलाओं ने हिम्मत जुटाई, आस पास से उन्होंने बेशरम की डालियों को काट कर इकठ्ठा किया और पड़ोस से वे कुछ लोहे की रेलिंग भी मांग लायीं. यह सारी सामग्री कुए में ब्लास्टिंग के लिए जुटाई गयीं ताकि कोई पत्थर उड़कर आस पास किसी के मकान या किसी व्यक्ति को नुक्सान न पहुंचाए. बहुतेरे उन्हें निरुत्साहित करने लगे कि यदि कोई हादसा हो जाए तो वे क्या करेंगी? महिलाओं ने आस पास के लोगों से राय ली. लोगों को पता है कि यह कुआँ उनके लिए कितना लाभकारी होगा. उन्होंने कहा यदि एक दो कवेलू फूट भी जायें तो क्या ! रेलिंग और पर्याप्त मात्रा में बेशरम के डालियों का बिछाव इतना पुख्ता था कि एक ब्लास्टिंग के दौरान एक भी पत्थर कुँए के ऊपर नहीं उड़ पाया. उन्होंने इस सुरक्षा के साथ दूसरी बार भी ब्लास्टिंग करवाई. हाड तोड़ मेहनत कर उन्होंने पत्थर निकाले. उनके इस प्रयास से मुग्ध होकर ब्लाक के अधिकारियों और सरपंच ने भी उनके श्रमदान में कुछ घंटे उनका साथ दिया, कुछ उपकरण जैसे तगारी –फावड़ा भी भेंट किया. कुआँ लगभग तैयार है और बारिश के बाद इसमें साल भर पानी बना रहेगा और आस पड़ोस के दर्ज़नों परिवारों को आशीषित करेगा. इस कुँए में भी 27 महिलाओं ने 178 दिन का श्रमदान किया. स्पंदन द्वारा गूँज और व्यक्तिगत दान दाताओं के सहयोग से इस स्वयं सेवा को प्रोत्साहन देने हेतु प्रतिदिन 2 किलो चावल, पाव भर दाल और कपड़ों का सहयोग दिया गया ताकि उनके चूल्हे तो जलते रहे.”
“इस वर्ष लगभग 25 परिवारों ने अपने खेत की मेडबंदी की. आवलिया (नागोतर), बूटी, मानपुरा, भागपुरा, बाराकुण्ड, कोटवारिया माल, उदियापुर, मोजवाड़ी, जमोदा,लंगोटी, पिपलिया भावलिया, पटालदा और हसनपुरा में लाभान्वित परिवार के सदस्यों ने श्रमदान कर अपने खेतो के बेकार पड़े पत्थरों को चुनकर मेड़ो पर जमाकर पाल बनायीं ताकि पानी बहकर न निकले ना ही खेत की मिटटी बहकर चली जाए.”
“ गोगईपुर भी एक दूरस्थ वनग्राम है. यहाँ की महिलाओं ने भी जल सरंक्षण का संकल्प लिया. उनके गाँव में एक पुराना स्टॉप डैम है जो बीते वर्षों में जल का एक प्रमुख श्रोत हुआ करता था. अन्य उपयोगों के आलावा यह डैम इतना पानी सरंक्षित कर लेता था कि आस पास के लगभग 20 किसान चना , मूंग उगा लिया करते थे. इस वर्ष यह भी सुख गया. यहाँ के महिला समूह ने इसे सुधारने की ठानी. 15 महिलाएं आगे आई. दो पुरुष भी साथ हो लिए. इन्होने सतत तीन दिन तक श्रम दान कर इस डैम की गाद निकली और लगभग 100 मीटर तक डैम को साफ़ कर दिया. इस बार निश्चित रूप से यह डैम पूरे वर्ष तक पानी संजोये रखेगा और किसान मूंग,चना उगा पाएंगे. सबसे बड़ी बात, इसके भरे रहने से इर्द गिर्द के कुओं में भी पानी का स्तर बढेगा.”
“ मानपुरा में भी लोगों ने पानी रोकने के लिए पूर्व व्यवस्था सोची. उन्होंने अपने गावं के श्रतिग्रस्त स्टॉप डैम को सुधरने की ठानी. उनके पास सीमेंट-गारा तो नहीं था पर उन्होंने बोरियों में मिटटीला भरकर उन्हें टूटे हिस्सों पर जमाकर अपने स्टॉप डैम की मरमम्त कर डाली. १० लोगों ने एक पूरे दिन का श्रमदान योगदान के रूप में दिया. अब इसका पानी नहीं रीसेगा और ससाल बहर लोग इसे नहाने, कपडे धोने, पशुओं को पानी पिलाने और सिंचाई के लिए इस्तेमाल में ले सकेंगे. ”
इसी प्रकार लोगों ने (विशेषकर महिलाओं) ने और भी कई जगह इस प्रकार के काम किये: चबूतरा में तालाब गहरा किया, अवलिया (न), अम्बाडा, हसनपुरा, देवलीखुर्द, में कुओं का गहरीकरण किया गया. इन सारे कामों में लोगों ने बिना मजदूरी के श्रमदान से सारे कार्य संपन्न किये. उनके हौसले को बनाये रखने के लिए स्पंदन द्वारा अनाज और सामग्री प्रोत्साहन के रूप में प्रदान की गयी.