मंडला- मशहूर चित्रकार सैयद हैदर रजा का 94 वर्ष की आयु में दिल्ली के एक अस्पताल में इलाज के दौरान 23 जुलाई 2016 को निधन हो गया, उनका जन्म 22 फरवरी 1922 को मध्यप्रदेश के मण्डला जिले में हुआ था। अपनी किसी भी पेंटिग को एक बिन्दू से शुरू करने वाले सैयद हैदर रजा के मशहूर होने की कहानी भी अनूठी है इस कहानी को समझने के लिए हमें अतीत के कुछ पन्नों को पलटना होगा।
बात उन दिनों की है जब सैयद हैदर रजा के पिता सैयद मुहम्मद रजा वन परिक्षेत्र अंजनिया के ककैया सर्किल में पदस्थ थे। ककैया में आस-पास के क्षेत्र का इकलौता प्राथमिक विद्यालय था। लिहाजा उनके पिता ने हैदर तथा भाईयों का दाखिला वहां करा दिया। बाल्य अवस्था में हैदर चंचल स्वभाव के थे और इसी चंचलता के कारण कई बार उन्हें अपने शिक्षकों की डांट-फटकार का सामना भी करना पड़ता था।
एक दिन कक्षा शिक्षक श्री नंदलाल झारिया ने सैयद हैदर रजा को एक अनोखा दंड दे दिया उन्होंने ब्लैक बोर्ड में एक बिन्दू बना दिया तथा हैदर को उसी बिन्दू पर ध्यान केन्द्रित करने को कह दिया। शिक्षक श्री झारिया द्वारा दिये गये इस दण्ड ने हैदर का जीवन बदल दिया इस बात का खुलासा स्वयं हैदर ने कुछ वर्षों पहले ग्राम ककैया में भ्रमण के दौरान ग्राम-वासियों द्वारा किये गए सम्मान समारोह के दौरान किया था। ककैया के बाद हैदर दमोह चले गए तथा वहां से फ्रांस में जाकर बस गये।
उनकी काबलियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनकी एक पेंटिंग सोलह करोड़ रूपये में बिकी थी। फ्रांस में बसने के द्वौरान उन्होंने एक फ्रांसीसी महिला जेनाईन मोंगिल्लेट से 1959 में विवाह कर लिया वहां की सरकार द्वारा उन्हे सर्वोच्च नागरिक सम्मान द लीजन आॅफ आॅनर प्रदान किया गया है। वहीं भारत सरकार से पद्म श्री तथा पद्म विभूषण से सम्मानित किया जा चुका है। मरहूम हैदर रजा को २४ जुलाई को मंडला के बिंझिया स्थित कब्रिस्तान में सुपुर्दे ख़ाक किया जाएगा भारत सरकार के एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी भी उनके जनाजे के साथ मंडला आ रहे है मरहूम हैदर रजा की ख्वाइश के मुताबिक उनके पिता की कब्र के पास ही उन्हें सुपुर्दे ख़ाक किया जायेगा।
रिपोर्ट- @सैयद जावेद अली