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Friday, November 22, 2024

जिला चिकित्सालय में लापरवाही, मौतों के आंकड़ों से हड़कंप

madhya pradeshबैतूल- मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में गर्भवती महिलाएं कुपोषण से पीड़ित है जिसके चलते जिला अस्पताल में प्रसव के बाद भी शिशुओं की मृत्यु दर कम नही हो रही है । संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने और शिशु-मातृ मृत्युदर कम करने के नाम पर सरकार करोड़ों की राशि खर्च कर रही है। इसके बाद भी जिले में नवजात बच्चों की मौतों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है।

जहाँ जिला चिकित्सालय में 240 दिनों के भीतर 158 बच्चों की प्रसव के दौरान ही जहां मौत हो गई। वहीं प्रसव में देरी और अन्य कारणों से एसएनसीयू में भर्ती 172 बच्चों के दम तोड़ देने से पूरे सिस्टम पर ही सवालिया निशान लगने लगे हैं। जिला चिकित्सालय में प्रसव कराने पहुंच रही प्रसूताओं को समुचित सुविधाएं न मिलने के दर्जनों मामले सामने आने के बाद भी व्यवस्थाएं पटरी पर नहीं आ पा रही हैं।

जिला चिकित्सालय के मेटरनिटी वार्ड में प्रतिदिन 8 से 10 प्रसूताओं को प्रसव के लिए भर्ती कराया जाता है। इनमें से 10 से 20 फीसदी का सीजर आपरेशन करने की नौबत आ जाती है। इसी प्रक्रिया में होने वाली देरी के कारण प्रसव के दौरान ही बच्चों की मौत हो रही है। पिछले 8 महीने के भीतर 158 बच्चों ने प्रसव के दौरान ही दम तोड़ दिया, लेकिन जिला चिकित्सालय प्रबंधन के माथे पर रत्तीभर भी शिकन नहीं आ सकी है।

8 माह में 5286 प्रसूताएं भर्ती
जिला चिकित्सालय में अप्रैल से लेकर नवंबर माह के अंत तक 5286 महिलाओं को प्रसव के लिए भर्ती किया गया था। इनमें से 3517 का प्रसव कराया गया जिनमें 395 महिलाओं का सीजर आपरेशन किया गया। प्रसव के पूर्व आने वाली दिक्कतों का कोई ध्यान न रखने के कारण 158 बच्चे प्रसव के बाद मृत जन्मे हैं। इतना ही नहीं 1138 बच्चों की हालत गंभीर होने से एसएनसीयू में भर्ती कराया गया था लेकिन इनमें से भी 172 की जान नहीं बचाई जा सकी।
अक्टूबर माह में हुई 34 बच्चों की मौत
जिला चिकित्सालय के मेटरनिटी वार्ड में अक्टूबर माह में सबसे अधिक बच्चों की प्रसव के दौरान मौत हुई है। इस महीने कुल 647 प्रसूताओं को प्रसव के लिए भर्ती किया गया था। इनमें 380 का सामान्य और 73 के सीजर आपरेशन किए गए। प्रसव के दौरान ही इस महीने कुल 34 बच्चों ने दम तोड़ दिया था। नवंबर में भी 17 बच्चों की जान प्रसव के दौरान चली गई।

25 घंटे तक तड़पती रही प्रसूता
जिला चिकित्सालय में बदइंतजामी का यह आलम है कि 25 घंटे तक एक प्रसूता का सीजर नहीं किया गया जबकि लेबर पेन होने के साथ ही बच्चे का हाथ बाहर आ चुका था। अस्पताल प्रबंधन ने 25 घंटे उसकी कोई सुध नहीं ली और बाद में निजी एनेस्थेसिया विशेषज्ञ को बुलाकर सीजर किया गया। ग्राम भौंरा में रहने वाले

हरीराम की पत्नी सुनीता को प्रसव पीड़ा शुरू हो जाने के कारण 14 दिसम्बर को सुबह 11 बजे जिला चिकित्सालय में भर्ती किया गया था। अस्पताल में प्रसूता को बेहद कमजोर होने के कारण चिकित्सकों ने यह मान लिया कि शायद बच्चे की मौत हो गई होगी। इसके बाद उसे 3 यूनिट ब्लड दिया गया। निजी एनेस्थेसिया विशेषज्ञ डॉ. अशोक मुले को बुलाया गया और 15 दिसम्बर को दोपहर 1 बजे आपरेशन कर जच्चा-बच्चा की जान बचाई जा सकी।

खुलासे से मचा हड़कम्प, सीएमएचओ ने ली क्लास
जिला चिकित्सालय के एसएनसीयू में 8 महीने के भीतर 172 बच्चों की मौत के मामले का खुलासा ‘नवदुनिया’ में होते ही स्वास्थ्य विभाग में हड़कम्प मच गया है। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. प्रदीप मोजेस ने शुक्रवार को एसएनसीयू में औचक पहुंचकर चिकित्सकों और प्रसूति वार्ड की मेट्रन, नर्सिंग सिस्टर एवं स्टाफ नर्स से जवाब तलब किया। उन्होंने शिशु मृत्यु के कारणों की समीक्षा कर उचित समाधान एवं बचाव के प्रयास करने हेतु निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि समय-समय पर प्रसव हेतु भर्ती महिला का परीक्षण कर बच्चे की स्थिति का निरंतर आंकलन किया जाए। सीएमएचओ ने स्वास्थ्य अमले को निर्देश दिए कि सही समय पर सोनोग्राफी कर उचित उपचार एवं आवश्यकतानुसार सीजेरियन आपरेशन करें। आपतकालीन स्थिति में ड्यूटी डाक्टर एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ को तत्काल बुलाया जाए। सीएमएचओ ने निर्देश दिए कि महिला चिकित्सक प्रतिदिन प्रातः 9 बजे से वार्ड का राउण्ड लेकर सीजेरियन आपरेशन हेतु महिलाओं का चयन करें तथा उचित समय पर सीजेरियन आपरेशन किया जाए।
शासन ने दी हैं यह व्यवस्थाएं
– आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और आशा कार्यकर्ता पहले महीने से गर्भवती महिलाओं को चिन्हित करती हैं।
– एएनएम के माध्यम से हर 3 माह में स्वास्थ्य परीक्षण करने के बाद विटामिन की दवाएं दी जाती हैं।
– संदेहास्पद स्थिति पाए जाने पर एएनएम और आशा कार्यकर्ता की जिम्मेदारी है कि वह महिला को नजदीकी स्वास्थ्य केन्द्र पहुंचाकर परीक्षण कराए।
– महिला एवं बाल विकास विभाग के माध्यम से गर्भवती महिलाओं को पोषण आहार प्रदान किया जाता है।

सिस्टम में उजागर हो रहीं यह खामियां
– अधिकांश आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और आशा कार्यकर्ता पहले महीने से गर्भवती महिलाओं को चिन्हित कर केवल रिपोर्ट बनाने में रूचि ले रही हैं।
– एएनएम के माध्यम से हर 3 माह में स्वास्थ्य परीक्षण करने की केवल खानापूर्ति की जाती है जिससे महिलाएं एनेमिक हो रही हैं।
– गर्भवती महिला को किसी परेशानी के दौरान स्वास्थ्य विभाग का मैदानी अमला जिला अस्पताल भेजने का हवाला देकर अपनी जिम्मेदारी निभा लेता है।
– महिला एवं बाल विकास विभाग के माध्यम से गर्भवती महिलाओं को मिलने वाला पोषण आहर ग्रामीण अंचलों में पहुंच ही नहीं पाता है।

इधर मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉक्टर प्रदीप मोजेस ने बताया कि शिशु मृत्यु दर कम करने के लिए सिविल सर्जन समेत एसएनसीयू स्टाफ और मेटरनिटी स्टाफ को कड़े निर्देश दिए गए हैं। किसी भी स्तर पर लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
रिपोर्ट- @अकील अहमद




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