पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व सांसद नवजोत सिंह सिद्धू अब पंजाब विधानसभा चुनाव में पूरी तरह कांग्रेस का साथ निभाने के लिए औपचारिक तौर पर कांग्रेस में शामिल हो गए है। सिद्धू के अमृतसर (पूर्व) सीट से चुनाव लडऩे की पूरी संभावना जताई जा रही है और उन्होंने कांग्रेस में शामिल होने को घर वापसी करार दिया है। सिद्धू ने कहा कि मैं पैदाइशी कांग्रेसी हूं और ये मेरी घर वापसी है। सिद्धू ने कहा कि मेरे पिता ने 40 साल कांग्रेस की सेवा की। मुझे फर्क नहीं पड़ता कि लोग क्या कहेंगे। सिद्धू ने कहा कि ये मेरी निजी लड़ाई नहीं है। पंजाब के स्वाभिमान की लड़ाई है। मेरा कोई पर्सनल एजेंडा नहीं है, मैं पंजाब की तरफ हूं। पंजाब की साख धूल में मिलाकर रख दी गई है। मैं हैरान हूं कि किसी ने नहीं कहा कि ड्रग्स पंजाब की सच्चाई है। ये किसी और राज्य में नहीं है। जो पंजाब हरित क्रांति के लिए जाना जाता था, आज ड्रग्स के लिए जाना जाता है। हम ड्रग्स के खिलाफ सख्त कानून बनाएंगे। पुलिस पंजाब में नेताओं की कठपुतली बन गई है ।
नवजोत सिंह सिद्धू ने पिछले दिनों अंतत: अब यह फैसला कर लिया था कि वे पंजाब विधानसभाचुनावों में कांग्रेस के पक्ष में चुनाव प्रचार करेंगे। यह घोषणा स्वयं पंजाब प्रदेश कांग्रेसाध्यक्ष कैप्टन अमरिंदर सिंह ने की जो पंजाब में पूववर्ती कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। विचार हमेशा के लिए त्याग दिया है। और अभी यह ख्ुालासा होना भी बाकी है कि क्या नवजोत सिंह सिद्धू ने कैप्टन अमरिंदर सिंह से अपनी शर्ते मनवाने के बाद ही कांग्रेस के पक्ष में चुनाव प्रचार करने का फैसला किया है या उन्हें ऐसा लगने लगा था कि आम आदमी पार्टी के साथ बात न बनने के बाद कांग्रेस के साथ दोस्ती कर लेने का विकल्प ही उनके राजनीतिक भविष्य को निरापद बना सकता है।
यहां यह बात विशेष उल्लेखनीय है कि अरविन्द केजरीवाल के साथ बात न बनने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू आवाज ए पंजाब पार्टी के नाम से अपना नया राजनीतिक दल गठित करने की तैयारियों में जोर शोर से जुटे हुए थे तभी एक न्यूज चैनल द्वारा कराए गए चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में पंजाब विधानसभा के आगामी चुनावों में कांग्रेस पार्टी को सर्वाधिक सीटें मिलने की संभावना व्यक्त की गई और इस सर्वेक्षण के नतीजे ने सिद्धू को यह सोचने पर विवश कर दिया कि अब कांग्रेस के साथ तालमेल करके ही वे अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति की उम्मीद कर सकते हैं और उन्होंने कैप्टन अमरिन्दर सिंह के नेतृत्व वाली पंजाब प्रदेश कांग्रेस के पक्ष में चुनाव प्रचार करने का विकल्प चुनना ही उचित समझा।
पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू ने भारतीय जनता पार्टी के सांसद के रूप में राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के साथ ही भाजपा से भी अपना रिश्ता तोड़ लिया था और वे आम आदमी पार्टी में शामिल होने के लिए आप के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल से राजनीतिक सौदेबाजी के प्रयास में जुट गए थे परंतु अरविन्द केजरीवाल को सिद्धू की सारी शर्ते स्वीकार्य नहीं थीं इसलिए सिद्धू ने यह आरोप लगाते हुए आप में शामिल न होने की घोषणा कर दी थी कि अरविन्द केजरीवाल पंजाब विधानसभा के आगामी चुनवों में आप के चुनाव अभियान में एक शोपीस के रूप में इस्तेमाल करना चाहते थे और आप को बहुमत मिलने की स्थित में उनकी पत्नी नवजोत कौर सिद्धू को मात्र मंत्री पद देकर उन्हें संतुष्ट कर दिया जाता।
सिद्धू के इस आरोप से यह स्पष्ट अनुमान लगाया जा सकता है कि सिद्धू आप में शामिल होकर इससे भी अधिक कुछ हासिल करना चाहते थे जिसके लिए अरविन्द केजरीवाल तैयार नहीं हुए और सिद्धू ने इसे अपना अपमान मानते हुए आम आदमी पार्टी में शामिल होने का इरादा बदल दिया। बीच में ऐसी खबरें भी आई थीं कि सिद्धू दरअसल यह चाहते थे कि आम आदमी पार्टी उन्हें पंजाब विधानसभा चुनावों के दौरान भावी मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करे और यही वह शर्त थी जिसे मानने के लिए अरविन्द केजरीवाल तैयार नहीं थे। सिद्ध् ने इससे खफा होकर आम आदमी पार्टी में शामिल होने का इरादा छोड़ दिया, लेकिन एक बात तो यह तय है कि कुछ माह पूर्व जब ऐसी खबरें आना शुरू हुई थीं कि पंजाब विधानसभा के आगामी चुनावों में आम आदमी पार्टी के सत्ता में आने की संभावनाएं बलवती हो चुकी हैं तभी सिद्धू ने आम आदमी पार्टी में जाने का मन बनया था और जब न्यूज चैनल के सर्वेक्षण कांग्रेस को अन्य दलों से बेहतर स्थिति में बता रहे हैं तब सिद्धू कांग्रेस से मित्रता करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहे हैं।
सिद्ध् यह बात भलीभांति जानते हैं कि कांग्रेस कैप्टन अमरिंदर सिंह को पंजाब विधानसभा के चुनावों में मुख्यमंत्री पद के रूप में प्रोजेक्ट करेगी। वे पूर्व में पंजाब के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। उन्होंने गत लोकसभा चुनावों में अमृतसर लोकसभा सीट से भाजपा उम्मीदवार अरूण जेटली को हराकर सबको चौका दिया था। अमृतसर सीट से नवजोत सिंह सिद्ध् ने भाजपा की टिकिट पर तीन लोकसभा चुनावों में जीत हासिल की थी परंतु गत लोकसभा चुनावों में इस सीट से भाजपा ने अरूण जेटली को उम्मीदवार बना दिया था और यहीं से सिद्ध् का भाजपा से मोहभंग होना शुरू हुआ। भाजपा ने बाद में उन्हें राज्यसभा में जरूर भेज दिया परंतु इससे सिद्ध् का असंतोष कम नहीं हुआ। पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाशसिंह बादल के परिवारजनों का सरकार में वर्चस्व भी उनके असंतोष को बढ़ाने की एक बड़ी वजह बन गया।
चुंकि अगले विधानसभा चुनावों में भी भाजपा ने अकाली दल के साथ अपना गठबंधन जारी रखने का फैसला कर लिया है इसलिए सिद्ध् का पार्टी बदलना तो तय ही था। बस वे यह गुणा भाग लगा रहे थे कि किस पार्टी में जाना उनके लिए राजनीतिक फायदे का सौदा रहेगा। अब यह करीब करीब तय है कि सिद्ध् पंजाब विधानसभा के आगामी चुनावों में कांग्रेस के स्टार प्रचारक होंगे। सवाल यह उठता है कि अगर कांग्रेस वहां सत्ता में नहीं आई तो भी क्या वे कांग्रेस से अपना रिश्ता स्थायी बनाकर रखेंगे। अभी तो ऐसा ही जान पड़ रहा है क्योंकि सिद्ध् भले ही कांग्रेस को बाहर से समर्थन देने के लिए राजी हुए हैं परंतु उनकी पत्नी डॉ. नवाजोत कौर सिद्ध् ने बाकायदा कांग्रेस में प्रवेश कर लिया है। यहीं नहीं वे कांग्रेस की टिकिट पर विधानसभा चुनाव भी लड़ेगी। बताया जाता है कि नवजोत सिंह सिद्ध् की कांग्रेस उपाध्यक्ष से चर्चा के बाद ही यह तय किया गया कि सिद्ध् कांग्रेस से बाहर रहकर कांग्रेस के पक्ष में खुलकर चुनाव प्रचार करें और उनकी पत्नी डॉ. नवजोत कौर सिद्ध् कांग्रेस में शामिल होकर कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में विधानसभा चुनाव लड़े।
गौरतलब है कि हरियाणा के साथ जल विवाद के मुद्दे पर पंजाब का पक्ष लेेते हुए कैप्टन अमरिंदर सिंह ने विगत दिनों अमृतसर लोकसभा सीट से विधिवत इस्तीफा दे दिया था इसलिए अब अमृतसर सीट के लिए उपचुनाव कराए जाने पर कांग्रेस उन्हें अपना प्रत्याशी बनाने के लिए तैयार हो सकती है। कांगे्रस को इसमें कोई ऐतराज भी नहीं होगा क्योंकि सिद्ध् भाजपा की टिकिट पर तीन बार अमृतसर लोकसभा सीट पर विजय हासिल कर चुके हैं। उन्हें पूरा भरोसा है कि अमृतसर सीट के लिए उपचुनाव होने पर इस क्षेत्र के मतदाता उन्हें ही विजयी बनाएंगे। अब यह दिलचस्पी का विषय है कि पूर्व क्रिकेटर सिद्ध् की सारी मनोकामनाओं की पूर्ति में कांग्रेस उनकी कितनी मदद कर पाती है।
कृष्णमोहन झा
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और आईएफडब्ल्यूजे के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं)