आठ नवंबर 2016 के बाद के दो महीने तथा 21 जनवरी 2017 का दिन भारतीय इतिहास में कतारबंदी के लिए हमेशा याद किए जाएंगे। 8 नवंबर को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की दो बड़ी मुद्रा एक हज़ार व पांच सौ रुपये के नोटों का प्रचलन बंद कर पूरे देश की जनता को दो महीने से भी अधिक समय तक बैंकों की कतार में खड़े रहने के लिए मजबूर कर दिया था। निश्चित रूप से बैंक में कतारों में खड़े लोग सरकार के इस फैसले के प्रति गुस्से का इज़हार कर रहे थे तथा अपनी बदकस्मती पर आंसू बहा रहे थे।
दुनिया के किसी भी देश में ऐसा दृश्य या ऐसी सरकारी व्यवस्था कभी नहीं देखी गई कि उसे बैंक में जमा उसी के अपने पैसे उसकी ज़रूरत के अनुसार निकालने न दिए जाएं। नोटबंदी के बाद लगी इन कतारों तथा भारत के बैंक कर्मचारियों पर अचानक पड़े इस अतिरिक्त बोझ का दुष्प्रभाव यह रहा कि लगभग 125 व्यक्ति नोटबंदी के किसी न किसी प्रभाव से मारे गए और लगभग 12 बैंक कर्मचारी इसी अफरातफरी में तथा काम के अत्यधिक बोझ के चलते अपनी जानें गंवा बैठे। निश्चित रूप से यदि नोटबंदी के दौरान बैंकों के बाहर प्रतिदिन लगने वाली कतारों की लंबाई का योग किया जाए तो यह लंबाई भी विश्व रिकॉर्ड स्थापित कर सकती है। केवल लंबाई में ही नहीं बल्कि जिस लंबी अवधि तक के लिए यह कतारें लगी हुई थीं वह भी विश्व कीर्तिमान स्थापित करने के लिए पर्याप्त हैं।
दूसरी ओर बिहार में नितीश कुमार सरकार द्वारा 21 जनवरी को दोपहर 12 बजे से लेकर एक बजे के मध्य मात्र एक घंटे के लिए 11 हज़ार 300 किलोमीटर की विश्व कीर्तिमान स्थापित करने वाली एक ऐसी मानव श्रृखंला बनाई गई जिसका मकसद शराबबंदी के विरुद्ध एकजुटता का प्रदर्शन करना था। नोटबंदी व शराबबंदी की कतारों के मध्य के अंतर का अंदाज़ा इसी बात से लगया जा सकता है कि नोटबंदी की कतारों में जहां मायूसी,उदासी,परेशानी,बदहाली,अनिश्चितिता तथा मजबूरी दिखाई दे रही थी।
वहीं शराबबंदी के लिए लगने वाली कतारों में उत्साह,उज्जवल भविष्य की रौशनी,सदॅभाव,स्वेच्छा तथा अनेकता में एकता के दर्शन हो रहे थे। इस मानव श्रृखंला में दो करोड़ से अधिक लोग शामिल हुए। इस आयोजन की फोटोग्राफी पांच सेटेलाईट,38 ड्रोन तथा 6 हेलीकॉप्टर के द्वारा की गई। मुख्यमंत्री नितीश कुमार व आरजेडी नेता लालू यादव सहित बिहार का समूचा मंत्रिमंडल,समस्त अधिकारी,स्कूल व कॉलेज के बच्चे,पंचायतों के लोग, आमजन सभी जहां-जहां थे उन्हीं जगहों पर सडक़ों पर आ खड़े हुए और शराब विरोधी मानव श्रृंखला में शामिल हो गए। बच्चे,बूढ़े,जवान, महिलाएं सभी पूरे उत्साह से मानव श्रृंखला में शामिल होते देखे गए। कई जगहों पर तो मानव श्रृंखला पूरी हो जाने के कारण लोगों को श्रृखंला से अलग दूसरी कतार बनानी पड़ी। माना जा रहा है कि यह मानव श्रृंखला विश्व कीर्तिमान स्थापित करेगी।
शराबबंदी के समर्थन में 21 जनवरी को बिहार सरकार द्वारा बनाई गई इस मानव श्रृंखला में किसी प्रकार के जान व माल के कोई नु$कसान का समाचार नहीं मिला। यहां तक कि पूरे प्रदेश में मानव श्रृंखला बनने के दौरान लगभग दो घंटे तक लोगों ने स्वैच्छिक रूप से यातायात व्यवस्था भी नियंत्रित रखी। पूरे बिहार राज्य के राष्ट्रीय व राज्य राजमार्ग की मानव श्रृंखला की लंबाई के उद्देश्य से अलग से पैमाईश की गई थी तथा प्रत्येक किलोमीटर पर निशानदेही की गई थी। अलग-अलग इलाकों को सेक्टर के अनुसार बांटा गया था। 21 जनवरी से दो दिन पूर्व इस आयोजन का रिहर्सल भी किया गया था। इसमें कोई शक नहीं कि विश्व की इस सबसे बड़ी मानव श्रृंखला का कीर्तिमान बनाने के बाद नितीश कुमार इस समय शराबबंदी को लेकर देश का सबसे बड़ा चेहरा बनकर सामने आ गए हैं। बिहार में जो परिवार शराब के कारण अपने परिवार को उजड़ते व बर्बाद होते देखने के लिए मजबूर थे वहां चैन,सु$कून व उम्मीदों की किरण दिखाई देने लगी है। ऐसे में नितीश कुमार का एक शराब विरोधी व्यक्ति के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर उभरना स्वाभाविक है।
शराबबंदी के पक्ष में बनने वाली इस विशाल मानव श्रृंखला का मैने भी बिहार में दस दिन रहकर करीब से अध्ययन किया तथा मानव श्रृंखला के मार्ग में सैकड़ों किलोमीटर के विभिन्न शहरी व ग्रामीण इलाके भी देखे। इस दौरान मैंने जनता से शराबबंदी व नोटबंदी तथा इनके लिए लगने वाली $कतारों के अंतर तथा इसके प्रभाव को भी समझने की कोशिश की। मैंने यह देखा कि लगभग पूरे राज्य में मनरेगा सहित कई दूसरी योजनाओं के अंतर्गत् चलने वाले विकास कार्य पूरी तरह से सिर्फ इसलिए ठप्प हो गए हैं क्योंकि ठेकेदारों को मज़दूरों को देने तथा सामग्री आदि खरीदने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं हैं। जगह-जगह 8 नवंबर के पहले चलते हुए काम अब रुके हुए देखे जा सकते हैं। मानव श्रंखला में लगे कई ऐसे लोग भी मिले जो दिल्ली,हरियाणा,पंजाब तथा महाराष्ट्र जैसे राज्यों से सिर्फ इसीलिए वापस आ गए थे क्योंकि उन्हें उनके मालिकों द्वारा नोटबंदी के कारण नौकरी से हटा दिया गया था और उनको मज़दूरी दिए जाने में असमर्थता व्यक्त की जा रही थी। यह लोग दो-तीन दिनों तक बैंक की लाईनों में लगकर अपनी वापसी के लिए अपने पैसे निकालकर किसी तरह अपने घरों को वापस आए। इन लोगों ने स्वयं बताया कि नोटबंदी के लिए लगी कतारों में तथा आज शराबबंदी के पक्ष में लगने वाली कतार में उन्हें कितना अंतर महसूस हो रहा है। जहां नोटबंदी की कतारें उन्हें बोझ व मुसीबत लग रही थीं वहीं शराबबंदी के समर्थन में कतार में खड़े होने को यही लोग अपना सौभाग्य समझ रहे थे।
हमारे देश में बावजूद इसके कि देश की सर्वोच्च अदालत ने धर्म के नाम पर वोट मांगने को गलत करार दिया है फिर भी राजनैतिक दल मंदिर-मस्जिद तथा धर्म व जाति के नाम पर वोट मांगने से बाज़ नहीं आ रहे हैं। ऐसे में शराबबंदी निश्चित रूप से एक ऐसा विषय है जो बिना धर्म-जाति,राज्य अथवा रंग-भेद की सीमाओं के आम लोगों को प्रभावित करता है। यदि वास्तव में नेताओं को जनहित के लिए कोई $कदम उठाने की बात करनी है या समाज कल्याण की वास्तव में चिंता करनी है तो न केवल शराबबंदी बल्कि देश को समस्त प्रकार की नशीली सामग्रियों से मुक्त कराए जाने की ज़रूरत है। सिगरेट,बीड़ी,शराब,गुटका,तंबाकू जैसीे सभी चीज़ें समाज को सिवाए नुकसान के कोई फायदा नहीं पहुंचातीं। अफगानिस्तान,यमन,बंगलादेश,सऊदी अरब,मॉरिशस,कुवैत,ईरान व बुरूनी जैसे और भी कई देश हैं जहां कहीं संपूर्ण तो कहीं आंशिक शराबबंदी लागू है। ईरान में इस्लामी क्रांति से पूर्व शाह पहलवी के शासनकाल में शराब का उत्पादन होता था। परिणामस्वरूप ईरान की जनता भी शराब का स्वाद चखा करती थी। परंतु इस्लामी क्रांति के बाद यह कहते हुए शराब बंद कर दी गईकि शराब के व्यापार से मिलने वाले राजस्व की तुलना में ईरानी युवाओं के चरित्र व उनके भविष्य पर पडऩे वाले दुष्प्रभाव की कीमत उससे कहीं ज़्यादा है। यही सोच दुनिया के हर हुकमरानों को रखनी चाहिए। कोई भी नशीली वस्तु या स्वास्थय को नुकसान पहुंचाने वाली सामग्री का उत्पादन ही बंद कर देना चाहिए। परंतु दुर्भाग्यवश ऐसे व्यवसाय में बड़े-बड़े राजनेताओं व तथाकथित सम्मानित उद्योगपतियों का दखल हुआ करता है जिसके कारण इन्हें प्रतिबंधित करना एक टेढ़ी खीर साबित होता है। परंतु इन सब बातों के बावजूद नितीश कुमार को शराबबंदी लागू करने वाले एक अनूठे नेता के रूप में देश देखने लगा है।
लेखक:- @तनवीर जाफरी