चीन सीमा के नजदीक ब्रह्मपुत्र नदी पर बने देश के सबसे लंबे धौला-सादिया पुल को देश को समर्पित कर दिया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज इसका उद्गाटन किया। उद्घाटन के बाद पीएम मोदी और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी पुल पर सफर कर इसका जायजा ले रहे हैं। असम से अरुणाचल को जोड़ने वाला यह पुल 9.15 किलोमीटर लंबा है।
इससे पहले गुवाहाटी पहुंचने के बाद हवाई अड्डे पर ही असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनवाल ने पीएम मोदी को फुल का गुलदस्ता देकर स्वागत किया। वहीं कुछ अन्य बड़े मंत्री व नेता वहां मौजूद थे।
मोदी ने असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल को उनकी सरकार के एक साल पूरा होने पर बधाई भी दी। 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को जबरदस्त जीत दिलाने के बाद उस साल 26 मई को मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी।
प्रधानमंत्री मोदी असम से ही तीसरी सालगिरह पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए सादिया जिले में ब्रह्मपुत्र नदी पर बनाए गए 9.15 किलोमीटर लंबे पुल का भी उद्घाटन किया। यह भारत का सबसे लंबा पुल है। यह पुल दो राज्यों असम और अरुणाचल प्रदेश को आपस में जोड़ेगा। इस पुल पर भारी से भारी सामान ले जाना भी संभव होगा।
चीन को करारा जवाब
सामरिक तौर पर भारत को लगातार घेरने की पूरी कोशिश कर रहे चीन के लये करारा जवाब है। आपको बता दें कि चीन लगातार सीमा से सटे इलाकों में तेज़ी से सड़कें और अन्य निर्माण कर रहा है यह पुल उसके पलटवार माना जा रहा है। यह पुल 60 टन वजनी युद्धक टैंक का भार भी वहन करने में सक्षम है। यह पुल चीनी सीमा से हवाई दूरी 100 किलोमीटर से कम है।
ब्रहमपुत्र नदी पर बने 9.15 किलोमीटर लंबे धोला-सादिया पुल के उद्घाटन के साथ ही प्रधानमंत्री असम के पूर्वी हिस्से से राजग सरकार के तीन साल पूरे होने का जश्न आरंभ करेंगे। इस पुल को चीन भारत सीमा पर, खास तौर पर पूर्वोत्तर में भारत की रक्षा जरूरतों को पूरा करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। इसके अलावा यह पुल अरुणाचल प्रदेश और असम के लोगों के लिए हवाई और रेल संपर्क के अलावा सड़क संपर्क भी आसान बनाएगा। यह मुंबई में बांद्रा-वर्ली समुद्र संपर्क पुल से 3.55 किलोमीटर लंबा है और इस प्रकार यह भारत का सबसे लंबा पुल है।
असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने कहा कि प्रधानमंत्री सामरिक रूप से अहम इस पुल को आज देश को समर्पित करेंगे। यह पूर्वोत्तर में सड़क संपर्क को भी आसान बनाएगा क्योंकि रक्षा बलों द्वारा बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करने के अलावा पुल का उपयोग असम और अरुणाचल प्रदेश के लोग भी करेंगे। पुल का निर्माण साल 2011 में शुरू हुआ था और परियोजना की लागत 950 करोड़ रुपये थी। इस का डिजाइन इस तरह बनाया गया है कि पुल सैन्य टैंकों का भार सहन कर सके।
सोनोवाल ने कहा कि असम और अरुणाचल प्रदेश का देश के लिए अत्यंत सामरिक महत्व है। पुल चीन के साथ हमारी सीमा के करीब है लिहाजा टकराव के समय यह सैनिकों और तोपों की तेजी से आवाजाही में मदद करेगा। पुल असम की राजधानी दिसपुर से 540 किलोमीटर दूर और अरुणाचल प्रदेश की राजधानी इटानगर से 300 किलोमीटर दूर है। चीनी सीमा से हवाई दूरी 100 किलोमीटर से कम है।
सोनोवाल ने कहा कि वर्ष 2014 में मोदी सरकार के बनने के बाद से पुल के निर्माण में तेजी लाई गई। पुल का उद्घाटन 2015 में होना था। असम में भाजपा सरकार 24 मई को अपना एक साल पूरा कर रही है।
मोदी के आज का कार्यक्रम
आज पीएम मोदी कई स्थानों पर जाएंगे। आज वे 100 किलोमीटर की यात्रा करेंगे। वे कई आयोजन स्थलों पर जाएंगे।
सुबह सादिया से शुरू हुई यह मोदी यात्रा धेमाजी पहुंचेगी जहां गोमुख स्थित कृषि केंद्र का शुभारंभ किया जाएगा
इसके बाद प्रधानमंत्री गुवाहाटी में ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडीकल साइंसेज (एम्स) का शिलान्यास करेंगे जो गुवाहाटी से 5 किलोमीटर दूर ग्रामीण क्षेत्र में खोला जाएगा।
इसके बाद प्रधानमंत्री अपनी यात्रा का समापन असम और मेघालय सीमा पर स्थित खानापारा में राजनैतिक रैली कर करेंगे जिसके लिए कई विशेष इंतज़ाम किये जा रहे हैं।
महासेतु की खासियत
-ब्रह्मपुत्र नदी पर बना 9.15 किलो मीटर लंबा यह पुल एशिया का दूसरा सबसे लंबा पुल है।
-यह असम में तिनसुकिया जिले के ढोला तथा सदिया को जोड़ता है।
-यह मुंबई के बांद्रा वर्ली सी लिंक पुल से 3.55 किलो मीटर लंबा है।
-यह पुल देश की सुरक्षा जरूरतों को देखते हुए रणनीतिक रूप से भी काफी महत्वपूर्ण है।
-यह पुल असम की राजधानी दिसपुर से 540 किलो मीटर तथा अरूणाचल प्रदेश की राजधानी इटानगर से 300 किलो मीटर दूर है।
-चीनी सीमा से इस पुल की हवाई दूरी महज 100 किलोमीटर है।
-यह पुल पूर्वी क्षेत्र के दूर-दराज के लोगों को देश के अन्य हिस्सों से जुडऩे के लिए सुविधा मुहैया कराएगा, जो अभी तक नौका के जरिए कहीं भी आने-जाने के लिए विवश थे।
-इस पुल के निर्माण का कार्य 2011 में शुरू हुआ था तथा इसके निर्माण पर 50 करोड़ रुपए लागत आई है।
-यह उतर-पूर्व में सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की मुख्य परियोजना था तथा इसे सार्वजनिक निजी भागीदारी में बनाया गया है।