कानून व्यवस्था को मुख्य मुद्दा बनाकर चुनाव लड़कर प्रचंड जीत हासिल करने के बाद भाजपा के सत्तासीन होने के बाद यूपी वासियों में विकास और प्रदेश की बदहाल कानून व्यवस्था को लेकर एक आशा की किरण जागी थी, जिस प्रकार से योगी सरकार ने पुलिस प्रशासन के पेंच कसे थे उससे लगता था कि अब कुछ बदलाव आएगा, लेकिन प्रदेश की कौन कहे, प्रदेश के संचालन केंद्र यानि राजधानी लखनऊ में ही अपराध का ग्राफ इस कदर बढ़ जाएगा जिसकी कल्पना भी किसी ने न की होगी। एंटी रोमियो स्क्वायड का गठन मानो एक कल्पना मात्र रह गयी।
कप्तान, सी ओ और तमाम थानेदार बदलने के बाद भी राजधानी वासी अपराधमुक्त समाज को दिवास्वप्न ही समझने लगे हैं। चिनहट की हो या 22 दिन के अंदर गोमतीनगर की दो दो डकैतियां , पारा में दो सगी बहनो का क़त्ल और उसके ठीक दुसरे दिन पारा में ही दिन दहाड़े टेंट व्यवसायी की गोली मार कर हत्या। गाड़ियों की चेकिंग में अधिकतर टाइम बिताती पुलिस। चालान को एक टारगेट बना कर काम करने की पद्धति अपनाने वाली पुलिस के खौफ से बेअसर हैं अपराधी।
इसी कड़ी में थाना पी जी आई में बैंक अधिकारी के यहाँ चोरी और चोरी के माल को ले जाने के लिए पीड़ित की कार को भी चुरा लेना उनके बेख़ौफ़ होने की बेहतर मिसाल है। वहीँ दूसरी ओर के जी एम यु में पति का इलाज कराने आयी महिला से सामूहिक बलात्कार अपराधियों की सक्रियता का जीता जागता उदहारण है।
अब तो बस ये देखना है कि नो रूल नो फ्यूल जैसे अभियान में असफल प्रशासन कैसे अपनी पुलिसिंग को सुधारता है, जिससे नागरिकों में सुरक्षा की भावना प्रबल हो सके।
@सुजीत द्विवेदी