जो धर्म कभी लोगों को जोड़ने और शांति व दया का माध्यम बनता था अब वही धर्म “धर्म के ठेकेदारों” द्वारा हिंसा व आतंक का सशक्त माध्यम बन चुका है। जब से धर्म के ठेकेदारों ने धर्म को पावर और पैसे से जोड़ने का सस्ता व सरल रास्ता निकाल लिया है, पूरे विश्व में हिंसा का एक नया दौर शुरू हुआ है। मिडिल ईस्ट से निकली और वित्त पोषित वहाबी विचारधारा का ही यह नतीजा है कि सीरिया, मिश्र, लेबनान, ईरान, अफगानिस्तान, म्यांमार, पाकिस्तान ……में हर साल लाखों लोग मारे जा रहे हैं।
धर्म के ठेकेदारों ने जेहाद और 72 हूरों की ऐसी परिभाषा गढ़ी है कि जाहिलों को छोड़ , पढ़े लिखे भी उसी धारा में बह निकले। जिन साथियों ने खिलाफत मूवमेंट के बारे में पढ़ा होगा उन्हें याद होगा वर्ष 1921 …. भारत में अंग्रेजी हुकूमत से जेहादियों का जबरदस्त टकराव हुआ। अंग्रेजी हुकूमत ने जेहादियों को जीभर के ठोंका। अंग्रेजी हुकूमत से मार खाए जेहादी दूसरे धर्म के लोगों पर टूट पड़े …. इसमें विशेषकर केरल सहित दक्षिण भारत के राज्यों के वो नागरिक जिन्होंने धर्म नहीं बदला कत्ल कर दिए गए।
डा. ऐनीबेसेंट ने लिखा-“खुले आम हत्याएं हुईं । लूटपाट हुई। वे सभी मारे गए जिन्होंने धर्म नहीं बदला । एक लाख लोग बेघर हो गए।” धर्म के नाम पर यह हिंसा क्या थी जरा “द फ्यूचर ऑफ इंडियन पाॅलिटिक्स पृष्ठ 252..देखें”……”इतने बड़े पैमाने पर हिंसा कभी नहीं हुई। अधमरे कटे हुए शहीदों से तालाबों व कुओं को पांच दिया गया। गर्भवती महिलाओं के टुकड़े कर दिए गए । उनके गर्भ में जो बच्चे पर रहे थे उन्हें निकाल कर मृत औरतों के सीने पर रख दिया गया। …..खुलेआम जवान औरतें व लड़कियों को उठा लिया गया। उनसे बलात्कार हुआ। मंदिर तोड़े गए। …..”
अब तो हर धर्म धंधा बन चुका है। हर धर्म के मठाधीश धर्म गुरू की अपनी महत्वाकांक्षाएंड हैं …..भिंडरवाला भी अपने को संत ही कहता था। बाबा जयगुरूदेव का अपना साम्राज्य बना। मथुरा-आगरा रोड पर अरबों की सरकारी जमीन धर्म की भेंट चढ़ गई। रामवृक्ष यादव की महत्वाकांक्षा करीब 30 लोगों की जिंदगी ले डूबी। बाबा रंगीन के नाम से मशहूर बाप-बेटे आशाराम और नारायण सामी….बाबा रामपाल….एक शंकराचार्य …..तथाकथित रूप से बच्चा पैदा करने वाला बाराबंकी, उत्तर प्रदेश का बाबा….ऐसे बाबाओं की लाइन लगी है।
बाबा की औकात घर वोट बैंक वाली है तो फिर कहने क्या? उत्तर प्रदेश में जब सपा की सरकार होती है तो एक धर्म विशेष के “बाबाओं” का अपना अंदाज होता है। बाबा राम रहीम को कांग्रेस भी पालती रही और भाजपा भी। तांत्रिक चंद्रास्वामी का कांग्रेसी हुकूमत में क्या रूतबा हुआ करता था यह बताने की जरूरत नहीं है ।
वैसे तुलसीदास जी ने पहले ही लिख दिया था…..”मार्ग सोई जा करहुं जोआ भावा। पंडित सोई जो गाल बजावा। मिथ्यारंभ दंड तय जोई। ता करहुं संत कहा सब कोई।।” यानी जिसको जो अच्छा लगे वही मार्ग है। जो डींग मारे वही पंडित है। जो अहंकार में रत है वही संत है। ………..”निराधार जो श्रुति पथ त्यागी । कलिजुग सोई ग्यानी हो बिरागी। जाके नख अरूण छटा विसाला।
सोई तापस प्रसिद्ध कलिकाला।। ” यानी जो आचारहीन व वेदमार्ग त्यागे हुए है। कलियुग में वही ज्ञानी है। जिसके बड़े नख और लंबी जटाएं हैं वही कलियुग में प्रसिद्ध तपस्वी है।……..अंत में …….”कलिमल ग्रसे धर्म सब लुप्त भरे सदग्रंथ। दंभिन्ह निज मति कल्पि करि प्रकट किए बहुत पंथ।।” यानी कलियुग में पापों ने सब धर्मों को डस लिया है। सदग्रंथ लुप्त हो गए हैं, दंभियों ने अपनी बुद्धि से कल्पना करके बहुत से पंथ प्रकट कर लिए हैं । (संदर्भ- फ्राॅड राम-रहीम)
लेख: पवन सिंह – वरिष्ठ पत्रकार (यूपी)