अमेठी के जगदीशपुर में एक हिंदी दैनिक अखबार के पत्रकार दिलीप कौशल कस्बे में ही बने अपने मकान के सामने बैठे हुए थे इसी बीच बाइक से पहुँचें तीन अज्ञात हमलावरों ने दिलीप कौशल को गोली मार दी
अमेठी: पत्रकारिता अगर लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है तो पत्रकार इसका एक सजग प्रहरी है देश को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली पत्रकारिता आज़ादी के बाद भी अलग-अलग परिदृश्यों में अपनी सार्थक जिम्मदारियों को निभा रही है लेकिन मौजूदा दौर में अमेठी में पत्रकारिता दिनोंदिन मुश्किल बनती जा रही है जैसे-जैसे समाज में अत्याचार, भ्रष्टाचार, दुराचार और अपराध बढ़ रहा है, पत्रकारों पर हमले की घटनाएं भी बढ़ रही हैं।दरअसल, मीडिया और पत्रकारों पर हमला वही करते हैं या करवाते हैं जो इन बुराइयों में डूबे हुए हैं ऐसे लोग दोहरा चरित्र जीते हैं !
योगी सरकार में सुरक्षित नही रहे पत्रकार-
इसी दोहरे चरित्र के लोगो ने ही कल शाम अमेठी में कलम से खौफ खाकर एक पत्रकार पर जान लेवा हमला कर दिया मामला अमेठी के जगदीशपुर कस्बे का है जहां रविवार की शाम एक हिंदी दैनिक अखबार के पत्रकार दिलीप कौशल कस्बे में ही बने अपने मकान के सामने बैठे हुए थे इसी बीच बाइक से पहुँचें तीन अज्ञात हमलावरों ने दिलीप कौशल को गोली मार दी और वहां से फरार हो गए गोली दिलीप के कंधे के नीचे बाजुओं में लगी घायल पत्रकार को इलाज के लिए सीएचसी ले जाया गया जहाँ चिकित्सको ने घायल दिलीप को सीएचसी से लखनऊ के ट्रामा सेंटर के लिए रिफर कर दिया गौरतलब हो कि इससे पहले भी दिलीप पर हमला चुका है जिससे ये स्पष्ट है कि इस कलमकार की कलम किन्हीं भ्रष्ट तत्वो की राह में बाधा पहुँचा रही है ।
कहा है बाधा-
यूपी में पत्रकार, खास तौर पर जनपद या कस्बो के पत्रकार,अपराधियों के निशाने पर क्यों रहता है जनपद में काम कर रहे पत्रकारों की रिपोर्टिंग अधिकतर स्थानीय स्तर के भ्रष्टाचार, ग्राम पंचायत के फैसलों,ग्राम सभा की गतिविधियों, सड़कों की बदहाली, बिजली की समस्या, स्थानीय अधिकारियों, विधायको के कारनामों और स्थानीय आपराधिक मामलों आदि पर केंद्रित रहती है अक्सर यह देखा गया है कि ख़बरों से बड़े खुलासे होने की संभावनाएं होती हैं.जिससे कलम भ्रष्ट लोगो राह में बाधा उत्तपन्न कर देती है ।
जख्म की शक्ल में मिलता कलम का महनताना-
भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का गौरव प्राप्त है पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ और पत्रकारों को लोकतंत्र का प्रहरी कहा जाता है जहां एक तरफ पत्रकारिता लोगों में जागरूकता पैदा करके लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करता है, तो वहीं लोकतंत्र के दूसरे स्तंभों यानी कार्यपालिका और न्यायपालिका पर भी नज़र रखता है ।
अमेठी जनपद के पत्रकारों को अपना काम ईमानदारी से करने का जख्म की शक्ल में मिले, तो इससे न सिर्फ देश की कानून व्यवस्था सवालों के घेरे में आ जाती है बल्कि यह लोकतंत्र के लिए भी ठीक नहीं है ।
अतः पत्रकारों पर हो रहे हमलों और उनकी असुरक्षा को देखते हुए यह ज़रूरी हो गया है कि उनकी सुरक्षा के लिए विशेष कानून बनाया जाए और उन पर हुए हमलों के मामलों को स्पीड ट्रायल के जरिए निपटाया जाए । रिपोर्ट@राम मिश्रा