प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार ने पूर्व सीबीआई चीफ आर.के राघवन को साएपरस का हाई कमीश्नर नियुक्त किया है, जिन्होंने 2002 के गुजरात दंगों में मोदी को क्लीन चिट दे दी थी। मोदी सरकार ने भारत की राजनयिक स्थापना के लिए पहली राजनैतिक नियुक्ति की है।
मोदी सरकार काफी समय से राजनैतिक नियुक्ति से बच रही थी लेकिन अब सरकार द्वारा राघवन की नियुक्ति किए जाने पर सवाल भी खड़े हो गए हैं। एम्बेसडर पद के लिए मोदी सरकार राजनैतिक नियुक्ति को काफी समय से टाल रही थी। भारतीय विदेशी सेवाओं के अंदर प्रधानमंत्री की एक बहुत अच्छी छवि बनी हुई है।
वहीं 76 वर्षीय राघवन की बात करें तो वे जनवरी 1990 से अप्रेल 2001 तक सीबीआई डायरेक्टर के पद पर थे। उन्हें 2002 में गुजरात में हुए दंगों की जांच की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, जिसकी जांच पूरी होने के बाद राघवन ने मोदी को क्लीन चिट दे दी थी।
2008 में राघवन को सुप्रीम कोर्ट द्वारा गोधरा दंगों की जांच कर रही एसआईटी की टीम का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। 2012 में एसआईटी ने कोर्ट से कहा था कि उन्हें दंगों में मोदी का हाथ होने के कोई सबूत नहीं मिले।
वहीं जब 2014 में बीजेपी द्वारा मोदी को पीएम उम्मीदवार घोषित किया जा रहा था तो यह विवाद खड़ा हुआ था। राघवन के काम करने के तरीके को लेकर आलोचकों ने एसआईटी पर मोदी के खिलाफ सबूतों से छेड़छाड़ करने का आरोप लगा दिया था।
बता दें कि गुजरात दंगों से पहले राघवन को 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने एंटी-रैगिंग मॉनिटरिंग कमेटी का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी दी थी। राघवन के नेतृत्व में इस टीम ने भारती की एंटी-रैगिंग नीति विकसित की थी।
राघवन ने भारत का पहला साइबर सेल सेट किया था और उन्होंने ही अन्नाद्रमुक की नेता जयललिता के भ्रष्टाचार मामले की जांच की थी। साल 2000 में हुए मैच फिक्सिंग के मामले की जांच भी राघवन को सौंपी गई थी, जिसके बाद मोहम्मद अजहरुद्दीन और अजय जड़ेजा का क्रिकेट करियर खत्म हो गया था।