लखनऊ : यूपी भाजपा में जिस तरह से अन्य पार्टियों से भागे नेताओं को गोद लेने की प्रक्रिया अभी भी जारी है, इससे साफ़ पता चलता है कि भाजपा राजनीति से अधिक कूटनीति पर विश्वास करने वाले नेत्रत्व की पार्टी है। कई विधान परिषद सदस्यों द्वारा इस्तीफ़ा देकर भाजपा के पाँच सदस्यों के लिए लिए जगह बनाना मौक़ापरस्ती की एक मिशाल है। सत्ता के निकट रहने की चाह में अखिलेश के ही नहीं मुलायम के समय के कुछ तथाकथित दिग्गज आज भाजपा की गोद में झूला झूलते नज़र आ रहें हैं तो कुछ कूद कर गोद में बैठने को बेताब हैं।
आलम ये है कि अगर भाजपा से ज़रा भी हरी झंडी मिल जाए तो अखिलेश के चाचा भी अपनी नयी पार्टी बनाने से ज़्यादा शाह के पिट्ठू बनना बेहतर समझेंगे । लेकिन फ़िलहाल शिवपाल को सपा के इस महीने में होने वाले राष्ट्रीय अधिवेशन में अपने भतीजे से आशा की एक किरण बाक़ी दिख रही हैं। क्योंकि वो भाजपा के बंधनों से अपनी होने वाली दुर्गति को बख़ूबी समझते हैं।
इस लिए मुझे ऐसा लगता है की वो स्वामी प्रसाद मौर्य बनना पसंद नहीं करेंगे। ख़ैर फ़िलहाल 325 का पंचवर्षीय गणित योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश पर पाँच साल राज करने की अनुमति देता ही है अब अक्सीजन की कमी से बच्चे गोरखपुर में मरें या फरुक्खबाद में क्या फ़र्क़ पड़ता है।
दरअसल ये भाजपा शासन की मात्र एक चूक नहीं है। जिस तरह से योगी ने सत्ता में आते ही शख़्त रवैय्ये के साथ एक तरफ़ से सभी अधिकारियों के स्थानांतरण का एक बेहिसाब सिलसिला शुरू किया उसमें ही सबसे बड़ी त्रुटि ये हुई है कि कुछ अच्छे अधिकारियों को योगी सरकार ने पूर्वाग्रह के चलते मुख्य धारा से किनारे कर दिया तो कुछ अच्छे कर्मठ अधिकारियों ने इस सरकार की शुरुआती उठापटक को देखते हुए अपना मूल्याँकन करवाना ज़रूरी नहीं समझा।
साथ ही योगी या भाजपा के पास कोई भी ऐसा फ़िल्टर नहीं था जिससे सिर्फ़ ईमानदार और कर्मठ लोगों को आगे लाया जा सके बल्कि चर्चाएँ तो यह भी हैं कि भाजपा कार्यालय से तबादला उद्योग की बुलंदियों को नए आयाम मिलें हैं जिसमें राजस्थान के बनिये को संगठन ने दोनों हाथों से लूटने की छूट दे रखी थी।
राहत की बात ये है कि योगी को इसकी भनक लगते ही बात मोदी तक शिकायत के रूप में पहुँची जिसके चलते कार्यालय में चल रही दुकान का आधा शटर गिर गया लेकिन पीछे के दरवाज़े से छुटपुट कार्यक्रम जारी है।
सरकारी वकीलों की नियुक्ति में भी न्यायालय का संज्ञान लेना भी भाजपा कार्यालय के अंदर संचालित दुकान की ही परिणति है। इसी ख़राब माहौल और एक वर्ग की उपेक्षा की पूर्ति को ध्यान में रखकर नए प्रदेश अध्यक्ष का चयन हुआ है।
कल मेट्रो का पुनःलोकार्पण हुआ सपा के कार्यकर्ताओं का कहना था अखिलेश भैया ने बनवाई मेट्रो मेरी है राजनाथ और योगी श्रेय लेने का प्रयास कर रहे अब मुख्य बात ये है कि मेट्रो बनवाने के लिए न ही अखिलेश अपनी नानी के घर से पैसा लाए थे न योगी अपने ताऊ के घर से मेट्रो तो जनता के पैसे से बनी है।
मेट्रो जनता की है हाँ बनवाने का निमित्त दोनों पार्टियाँ रहीं कुछ धन केंद्र से भी आया दोनों ने अलग-अलग उद्घाटन भी कर लिया हिसाब बराबर क्योंकि पहले उद्घाटन में केंद्र से किसी को नहीं बुलाया गया इस पर उस ववत भी काफ़ी बवाल प्रपंच हुआ था। @ शाश्वत तिवारी