देश की पहली महिला रक्षा मंत्री बनने के बाद अल्प प्रवास पर गुरुवार को ग्वालियर पहुंचीं निर्मला सीतारमण ने कहा कि देश को बार-बार 56 इंच का सीना दिखाने की जरुरत नहीं है। उन्होंने कहा कि एलओसी से संबंधित मामलों को डील कर रहे हैं। रक्षा से जुड़े मामलों में जमीनी स्तर पर काम चल रहा है। बॉर्डर पर सीजफायर उल्लंघन के कुछ मामले सामने आ रहे हैं। आतंकी घटनाएं हुई हैं। ऐसे सभी संबंधित मामलों को लेकर रक्षा मंत्रालय गंभीर है।
निर्मला सीतारमण ने कहा कि हमारी कोशिश है कि देश को नुकसान न हो, साथ ही युद्ध की स्थित न बने, हमें बार-बार 56 इंच का सीना दिखाने की जरूरत नहीं है। यदि हालात विपरीत बनते हैं, तो सेनाएं हर स्थिति से निपटने के लिए तैयार हैं। रक्षामंत्री ने यहां ग्वालियर एयरफोर्स स्टेशन का निरीक्षण किया। इस दौरान साथ ही सुखोई, मिराज, मिग-21 और जगुआर जैसे फाइटर विमानों के बारे में बारीकी से जानकारी ली।
रक्षामंत्री कहा कि फ्रांस से राफेल विमान को लेकर बुधवार को ही उनके पास फ्रांस की रक्षा मंत्री का फोन आया है। जिसमें राफेल विमान की डील को लेकर अच्छी बात हुई है। दरअसल भारत और फ्रांस के बीच होने वाले सबसे महत्वपूर्ण सौदे राफेल विमानों की डील सबसे बड़ी है। भारत और फ्रांस की इस सामरिक डील में कहीं न कहीं ग्वालियर भी है। 27 जुलाई 2013 में फ्रांस के तत्कालीन रक्षामंत्री वाय वेस ली ड्रियान के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ग्वालियर भी आया था।
निर्मला सीतारमण ने मिराज के कॉकपिट में बैठकर फाइटर विमान की कई बारीकियों को करीब से जाना और समझा। रक्षामंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री ने उन्हें रक्षामंत्री का दायित्व इस निर्देश के साथ दिया कि वह तीनों सैन्य अमले के हर एक जवान की समस्याओं, चुनौतियों को करीब से समझते हुये उनका निराकरण कर सकें। इसके अलावा समान काम, समान वेतन सहित सीमा पर तैनात जवानों को अच्छे भोजन सहित बुनियादी सुविधाएं मिले। इन मसलों पर कई सुझाव अधिकारियों और जवानों के जरिये मिले हैं, जिन पर पॉलिसी के तहत कार्य जारी है।
ग्वालियर एयरबेस पर करीब चार घंटे तक ग्वालियर एयरबेस पर रही देश की रक्षामंत्री ने उम्मीद जताई कि यदि सब कुछ ठीक रहा तो फ्रांसीसी मिराज की तरह आगामी दिनों में राफेल ग्वालियर के एयरबेस की शान बन सकता है। अगर एमओयू प्रभावी होता है, तो ग्वालियर उन एयरबेस में शामिल हो सकता है, जहां फ्रांस के फाइटर जेट की दूसरी पीढ़ी गर्जना करेगी। राफेल से पहले फ्रांस के मिराज 2000 भी यहां मौजूद हैं। राफेल अंतरराष्ट्रीय रक्षा उत्पाद के बाजार में पांचवीं पीढ़ी के दुर्लभ विमानों में से एक है।