केंद्र सरकार, उच्चतम न्यायालय से लेकर राज्य सरकार की चिंता का सबब बने ताजमहल के मुख्य गुंबद सहित पूरी इमारत के संगमरमर का रंग आखिर क्यों बदलता है? ताजमहल के संगमरमर पर यमुना नदी के भारी प्रदूषण के कारण होने वाली रासायनिक क्रियाओं का असर भी पड़ता है? भू-गर्भ जल में घातक तत्वों की मौजूदगी से ताजमहल की नींव की मिट्टी की प्रकृति में भी बदलाव हुए हैं क्या? ताजमहल के संरक्षण में जुटे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रसायन शाखा इन तीन सवालों के जवाब तलाशेगी।
इन तीनों तरीकों से ताजमहल पर पड़ने वाले असर पर रसायन शाखा ने शोध प्रारंभ कर दिया है। दुनियाभर में अपनी खूबसूरती के लिए विख्यात ताजमहल के आसपास हवा, पानी और मिट्टी में प्रदूषण के कारण पड़ रहे असर की जांच के लिए एएसआई रसायन शाखा ने टीमों का गठन कर दिया है। एएसआई के अधीक्षण पुरातत्व (रसायनविद) डॉ. एमके भटनागर ने बताया कि मुख्य गुंबद सहित ताज की पूरी इमारत के संगमरमर के रंग बदलने, यमुना प्रदूषण से पत्थर में बदलाव और मिट्टी की प्रकृति में परिवर्तन का अध्ययन करेगी।
यमुना नदी के किनारे मौजूद पुरातत्व स्मारकों के पत्थरों पर प्रदूषण का असर जांचने के लिए एएसआई की टीम मथुरा भी जाएगी। यमुना नदी के किनारे जितने भी स्मारक हैं, उन सभी का अध्ययन किया जाएगा। खासतौर पर उन स्मारकों पर फोकस किया जाएगा, जहां यमुना का जल स्मारकों को छूते हुए गुजर रहा है। रसायन शाखा की टीमें संगमरमर के साथ रेड सैंड स्टोन की प्रकृति और रसायनों के साथ प्रदूषण तत्वों की रासायनिक क्रियाओं से हुए बदलाव को भी देखेंगी। यूनेस्को के सहयोग से आगरा किला में मौजूद लैब का भी इस जांच में सहयोग लिया जाएगा।
ताजमहल पर प्रदूषण का प्रभाव जांच में परखा जाएगा। इसके लिए टीमों का गठन कर दिया गया है, जोकि ताजमहल के संरक्षण संबंधी सभी सवालों का जवाब तलाशेंगी। यह अध्ययन प्रदूषण से निपटने और ताज के संरक्षण में काफी मददगार साबित होगा। -डॉ. एमके भटनागर, अधीक्षण पुरातत्व रसायनविद
यमुना नदी में प्रदूषण से वहां पनपने वाले कीड़ों के कारण कई बार संगमरमरी पत्थरों को नुकसान पहुंचा है। इससे बचाव को कई बार टीमें गठित की गईं पर आज तक इसका कोई समाधान नहीं निकल सका। पत्थरों पर धूल के कणों के चिपकने से भी नुकसान हुआ है। इसको लेकर पर्यावरण संसदीय समिति ने भी कई बार एएसआई को सुझाव भी दिया। उसके बाद भी सुधार के लिए कोई सकारात्मक प्रयास नहीं किए गए।