बीजेपी और शिवसेना के बीच काफी वक्त से चल रही तल्खी का नतीजा मंगलवार को सामने आ ही गया। शिवसेना ने एनडीए गठबंधन से अलग होने का ऐलान कर दिया है।
पार्टी ने कहा है कि वह 2019 का चुनाव अकेले ही लड़ेगी। इसके अलावा, विधानसभा चुनाव में भी अकेले ही उतरेगी। इस फैसले का महाराष्ट्र की राजनीति पर बड़ा असर पड़ने वाला है। महाराष्ट्र सरकार के अलावा बीएमसी में दोनों पार्टियां गठबंधन करके सरकार चला रही हैं।
शिवसेना ने यह फैसला ऐसे वक्त में लिया है, जब युवा नेता और पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे को पार्टी की नैशनल एक्जीक्यूटिव का सदस्य बनाया गया है। इसे शिवसेना की विरासत अगली पीढ़ी को सौंपने की दिशा में उठाए गए कदम के तौर पर देखा जा रहा है।
बता दें कि शिवसेना ने यह फैसला अपनी कार्यकारिणी की बैठक में लिया है। हालांकि, लंबे वक्त से चली आ रही तल्खी को देखते हुए यह फैसला सामान्य ही माना जाएगा। शिवसेना केंद्र की मोदी सरकार, यहां तक कि राज्य की फडणवीस सरकार की खासी आलोचक रही है।
नोटबंदी, जीएसटी जैसे केंद्र सरकार के फैसलों से लेकर हर उस मुद्दे पर शिवसेना अपने सहयोगी पर हमलावर रही, जिसके जरिए विरोधी पार्टियों ने बीजेपी को घेरने की कोशिश की। तल्खी इस हद तक बढ़ गई कि शिवसेना परंपरागत राजनीतिक विरोधी कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी की तारीफ करते नजर आई। बीएमसी के चुनाव भी इस तल्खी के माहौल में लड़े गए।
हालांकि, बीजेपी और शिवसेना ने अलग अलग चुनाव लड़ा। चुनाव में बीजेपी ने शिवसेना को इतनी कड़ी टक्कर दी कि शिवसेना ने उस वक्त चुप्पी साधने में ही भलाई समझी और बीजेपी के सहयोग से नगर निगम की सत्ता पर काबिज होने में भलाई समझी। दूसरी ओर, बीजेपी के नेता शिवसेना के तमाम हमलों के बावजूद बेहद सधी हुई प्रतिक्रिया देते रहे हैं।
शिवसेना की ओर से इस बड़े फैसले का ऐलान वरिष्ठ नेता संजय राउत ने किया। बता दें कि महाराष्ट्र सरकार में बीजेपी और शिवसेना की गठबंधन के 288 विधायक हैं। इनमें 122 बीजेपी के, 63 शिवसेना और बाकी अन्य विधायक हैं। वहीं, कांग्रेस के 42, और एनसीपी के 41 विधायक हैं।
अब बड़ा सवाल उठ रहा है कि क्या शिवसेना महाराष्ट्र सरकार और बीएमसी की सत्ता से भी अलग होगी? कुछ राजनीतिक जानकार मानते हैं कि यह शिवसेना की ओर से बीजेपी पर दबाव बनाने की रणनीति है।