आजादी के बाद से 50-55 सालों तक मीडिया ने समाचारों के संकलन और उसके प्रसारण व प्रकाशन को लेकर जो गंभीरता व विवेक बनाए रखा था, वह विगत 15-20 सालों में नष्ट हो चुका है। खबरों को लेकर बौखलाहट और पागलपन की हद को मात दे चुकी कलमानिगारों व कैमराधारकों की हरकतें शर्मनाक हो चुकी हैं। एक बार नहीं तमाम मौकों पर “खबरों की मिर्गी” बीते 15-20 सालों में देखने को मिली है। सानिया मिर्जा की शादी में लेहेंगे और हाथ की मेहंदी की खासियत बखारती reporting कई दिनों तक चली। उदयपुर पैलेस में एक बालीवुड हिरोइन को पागलों की तरह पिछवाए पत्रकारिता के पुरोधाओं की पुलिसिया खातिरधारी भी याद होगी। यहां से छूटे तो धोनी की शादी और विराट कोहिली की शादी में “बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना” जैसी हालत में थे।
पिछले दिनों एक हफ्ता श्रीदेवी की मौत की खबर से पटा रहा। भाई लोगों ने हत्या तक बता डाला, अभी भी बीच-बीच में श्री देवी के “ऑफ्टर शाॅक” आते हैं ….इसी बीच उत्तर प्रदेश के दो उपचुनाव क्रमशः फूलपुर और गोरखपुर की सीट भाजपा हार गई। निःसंदेह बड़ी खबर थी लेकिन इसके बाद कई दिनों से इसका “प्याज छीला” जा रहा है, वह अब कान पकाने लगा है। कुछ पुरोधा ये भविष्यवाणी कर रहे हैं कि ये सोशल इंजीनियरिंग का कमाल है, कुछ BJP का बुखार उतार रहे हैं । जहाँ तक मेरा मानना है कि यह हार भाजपा में भीतर की तनातनी, कार्यकर्ताओं की घोर उपेक्षा का परिणाम है। बसपा-सपा के मिलन के बाद दोनों सीटों पर विजय का अंतर लाखों वोटों का होना चाहिए था जो कि 50 हजार के भीतर सिमट गया।
जरा सोचिए कि यदि भाजपा का कार्यकर्ता उदासीन नहीं होता और इन उपचुनावों को हल्के में नहीं लिया गया होता तो ये नतीजे कुछ और होते। वोटिंग % बताता है कि भाजपा का वोटर कम संख्या में बाहर आया और नतीजा भाजपा के खिलाफ गया। यही वोटिंग गर 65% तक पहुँच जाती तो सोशल इंजीनियरिंग का तेल निकल गया होता। इन दो सीटों की हार को दुल्लती पत्रकारिता ने ऐसा परिभाषित किया मानों उत्तर प्रदेश की सरकार चली गई है। मैं फिर दावे के साथ कह रहा हूँ नौ माह की इन दोनों सीटों के परिणाम फिर बदलेंगे। सपा व बसपा का खुश होना स्वाभाविक है। किसी को 20 दिन से रोटी का एक निवाला तक न मिला हो और अचानक दो रोटी मिल जाएं तो खुशी तो होगी ही। अखिलेश यादव का बच्चों की तरह कूद कर मायावती के घर तक पहुँच जाना उनकी राजनैतिक अपरिपक्वता का अनुपम उदाहरण है।
अखिलेश जाने-अनजाने सारा श्रेय मायावती को दे आए। यह बिछ जाना लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे के मामले में दिक्कत पैदा करेगा। मायावती चढ़कर ज्यादा सीटों की मांग करेंगी। मायावती की माया ब्रह्मा को भी नहीं पता। भाजपा को धूलधूसरित करने का मंसूबा पाले यह गठबंधन कितने दिन “लव बाइट” कर पाएगा इस पर बड़े से बड़ा राजनैतिक सूरमा कुछ नहीं कह सकता। फिलहाल मीडिया के साथी दो सीट….हाय…हाय…दो सीट का पाटा लगाकर खबर को कपड़े की तरह रोज पटके हुए हैं । सोशल इंजीनियरिंग तो बसपा के बहुत आने और उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने को भी करार दिया गया था। सतीश चंद्र मिश्रा को हीरों हीरालाल बता दिया गया था।
तब भी मैंने लिखा था पांच साल में इस सोशल इंजीनियरिंग का “मोबीआॅयल” सूख जाएगा। वही हुआ। दरअसल सपा की शाश्वत पहचान गुंडागर्दी, निठरीकांड, तथाकथित लोहिया बंधुओं का लखनऊ के चौक इलाके से जीप की बोनट पर DEPT. S.P.स्तर के अफसर को घुमाते हुए SSPऑफिस के भीतर पटक देना……तमाम ऐसी घटनाओं से जनता परेशान हो चुकी थी, भाजपा राज्य में कमजोर थी और कांग्रेस का तो यूपी में केवल “स” बचा था और है…..ऐसे में जनता को बसपा एक विकल्प के रूप में नजर आई और बहुमत मिला। भाई लोगों ने उसे सोशल इंजीनियरिंग के शब्दों की वरमाला पहना दी….पांच साल बाद लूट-खसोट, मूर्ति- पार्क……में इंजीनियरिंग का इंजीनियर सतीश मिश्रा हाशिए पर खड़ा था।
कहने का मतलब है (1) भाजपा हार के कारणों का मंथन करे। (2) सपा-बसपा जीत को पचाएं और धैर्य से योजना बनाएं (3) मीडिया नवजात बछडे की तरह दुलत्ती मारती पत्रकारिता से बाझ आए……नहीं तो कपिल शर्मा व राजू श्रीवास्तव की अगली कामेडी का विषय बनेगीl
लेखक :- पवन सिंह