जैसलमेर । आज जहां समूचा हिन्दुस्तान रक्षाबंधन का त्यौहार मना रहा हैं वही हिन्दुओं में एक ऐसी जाति हैं जहां पर रक्षाबंधन का पर्व नही मनाया जाता। समूचे देश में फैले पालीवाल ब्राह्मण जाति के लाखों लोग रक्षा बंधन के पर्व को ना माकर इसे तर्पण शोक दिवस के रुप में मनाते हैं।
करीब 700 वर्ष पूर्व श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन एक मुगल शासक के आक्रमण में हजारो की संख्या में पालीवाल ब्राह्मण के स्त्री, पुरुष व बच्चों का नरसंहार हुआ था। रक्षाबंधन के इस दिन पालीवाल ब्राह्मण अपने पुरखों की याद में ना केवल तर्पण करते हैं वही धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन करते हैं।
जानकारी के अनुसार पालीवाल ब्राह्मण आदि गौड़ ब्राहमण के रुप में जाने जाते थे। बाद में पाली में निवास करने के बाद इनकी पहचान पालीवाल ब्राह्मण के रुप में होने लगी लेकिन इन सबके बीच पूरे देश में फैले लाखो पालीवाल ब्राह्मण रक्षा बंधन का त्यौहार नही मनाते। वे इस दिन अपने पूर्वजो को याद करते है येउनका तर्पण करते हैं।
इसके पीछे जो उनके पूर्वजो से जानकारी मिली हैं उसमें पालीवाल जाति के लोग काफी धनाड्य व साधन संपन्न हुआ करते थे तथा इनकी पहचान काफी मेहनतकश लोगो में होती थी, इन सबके बीच आज से 725 साल पहले 1291-92 में दिल्ली के तत्कालीन मुगल शासक फिरोह शाह द्वितीय द्वारा अपनी सेना के साथ पाली क्षेत्र में निवास कर रहे इन पालीवाल ब्राह्मण को लूटपाट के उद्देश्य से इन पर जबरदस्त हमला करते हुये । इनका नरसंहार किया।
इस नरसंहार में हजारो की तादात में स्त्री पुरुष मारे गए थे, इसमें बड़ी संख्या में ऐसे भी लोग थे जो पाली में लाखोरिया तालाब में एक तर्पण के लिए इकट्ठा हुये थे। रक्षाबंधन के दिन की मुगल सेना ने इन निर्वही ब्राह्नो की हत्या कर उन्हें तालाब में फेंक दिया था वही कई गायो की हत्या कर तालाब में डाल दिया था। इस घटना से असुरक्षित पालीवालो ने हमेशा के लिए पाली क्षेत्र का त्याग कर दिया, तथा वे जैसलमेर सहित देश के अन्य भागो से पलायन कर गए।
इस घटना के बाद समूचे पालीवाल ब्राह्मणों ने यह तय किया कि रक्षाबंधन को ये दिन उनके लिए दुख शोक लेकर कर आया हैं तथा वे इस पर्व का हमेशा के लिए त्याग करते हैं। रक्षा बंध के पर्व में अपने पुरखों के बलिदान को याद करते हुवें तर्पण दिवस के रुप में मनाते हैं, पाली में धोलीतणा नामक स्थान जहां पर इस नरसंहार में मारे गए पुरुष स्त्रियों की चूड़े व यज्ञोपवित्र रखे गए थे, वहां जाकर इस दिन तर्पण करते है।
रिपोर्ट – चन्द्रभान सौलंकी