बालाघाट: मध्यप्रदेश में इस वर्ष के अन्त में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिये सत्ताधारी भाजपा और प्रमुख विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने समयपूर्व ही अपनी चुनावी तैयारियां प्रारंभ कर दी है। भाजपा जहां चैथी बार सरकार बनाने के लिये मैदान में उतरेगी वहीं दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी प्रदेश की सत्ता में पुनः अपने आप को स्थापित करने के लिये संघर्ष करेगी। संयोग की बात यह है कि दोनों की प्रमुख दलों के प्रदेश अध्यक्ष महाकौशल क्षेत्र से है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह जबलपुर से 3 बार सांसद निर्वाचित हुए है, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नौ बार के सांसद और पूर्व केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ छिंदवाड़ा का प्रतिनिधित्व करते है। इन दोनांे में वैसे तो कोई भी तुलना नहीं की जा सकती है क्योंकि कमलनाथ विगत 40 वर्षो से प्रदेश की राजनीति में अपनी सक्रियता बनाये हुए है उनका अनुभव भाजपा प्रदेश अध्यक्ष से कहीं ज्यादा है।
कांग्रेस के नये प्रदेश अध्यक्ष अनुभवी राजनेता कमलनाथ के लिये आगामी विधानसभा चुनाव को अगर उनके राजनीतिक अनुभव की अग्नि परीक्षा कही जाये तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। यहीं कारण है कि पदभार ग्रहण करने के पश्चात ही वह एक्शन में आ गये है और संगठन को नई गति देने के साथ अपने सभी वरिष्ठ सहयोगी दिग्गज नेताओं से तालमेल बनाकर अपने काम को आगे बढ़ा रहे है। टीम वर्क के साथ आगे बढ़ने के उनके प्रयास कांग्रेस को कितना राजनीतिक लाभ देगें यह तो आने वाला समय बतायेगा।
परन्तु कमलनाथ के राजनीतिक नेतृत्व की पहली परीक्षा महकौशल क्षेत्र होगी जहां आंकडों में अभी भाजपा का पल्ला बहुत भारी है। यहां पर कांग्रेस को बढ़त दिलाना उनकी पहली प्राथमिकता में शामिल होगा। महाकौशल में अनुमानित आंकडो के अनुसार 65 में 45 से अधिक सीटों पर भाजपा का परचम लहरा रहा है शेष बाकी सीटों पर कांग्रेस विधायक है। महाकौशल क्षेत्र में बालाघाट, सिवनी, मण्डला, जबलपुर, शहडोल, उमरिया, डिडोंरी, बैतुल ऐसे जिले है जहां पर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का प्रभाव अतीत के चुनाव में बहुत ज्यादा देखने मिला था। उसके बाद वह प्रभाव कम होता गया परन्तु गोगपा की वजह से कांग्रेस का राजनीतिक वोट बैंक प्रभावित होता है और उसका लाभ भाजपा के खाते में जाता है। इसकारण भीतर से ही आवाजें उठ रही है कि गोंगपा से कांग्रेस को गठबंधन करना चाहिये पर ऐसा होगा या नहीं अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी।
महाकौशल के अंतर्गत आने वाले संभावित जिलों में शहडोल की तीन सीटों में कांग्रेस 1 भाजपा 2, अनूपपुर में 2 कांग्रेस 1 भाजपा, उमरिया में 2 में 2 भाजपा, कटनी में 4 में 3 भाजपा 1 कांग्रेस, जबलपुर में 2 कांग्रेस 6 भाजपा, डिडोंरी में 2 में 2 भाजपा, मण्डला के 3 में 2 भाजपा 1 कांग्रेस, बालाघाट के 6 में 3 कांग्रेस 3 भाजपा, सिवनी के 4 में 2 भाजपा 2 कांग्रेस, नरसिंहपुर के 4 में 4 भाजपा, छिंदवाड़ा की 7 में 3 कांग्रेस 4 भाजपा, बैतुल में 5 में 5 भाजपा, होंशंगाबाद में 4 में 4 भाजपा, दमोह में 3 भाजपा 1 काग्रेस, सागर में 8 में 7 भाजपा 1 कांग्रेस, इस तरह से देखा जाये तो आंकड़ों को जो हिसाब किताब है उसमें पूरी तरह से भाजपा का बोलबाला है। इन 65 सीटों में कुछ सीटो अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिये आरक्षित है। महाकौशल ऐसा क्षेत्र है जहां मण्डला, सिवनी, बालाघाट, बैतुल, शहडोल, उमरिया, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी अपना वजन रखती है।
बहरहाल नये प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के राजनीतिक अनुभव पर किसी को संदेह नहीं है।परन्तु अब तक की उनकी जो कार्यप्रणाली रही वह पूरा फोकस अपने संसदीय क्षेत्र पर रखते थे। छिंदवाड़ा हो या दिल्ली पहली प्राथमिकता वहां उनके संसदीय क्षेत्र के लोग ही होते थे जो सही भी है परन्तु बदले हुए राजनीतिक परिदृश्य में पूरा प्रदेश को उन्हें एक नजर से देखना है। इस दृष्टिकोण से वह अपनी कार्यप्रणाली में कितना बदलाव ला पाते है और अपने फैसलों से पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं को किस तरह संतुष्ट कर पाते है, कम समय में अधिक काम की जो चुनौती उनके सामने है उस पर वह कैसे विजय पायेगें। साथ ही सत्ताधारी भाजपा के प्रहारों को किस तरह से वह कमजोर करेगें। ऐसे अनेक सवाल है जो कांग्रेस के राजनीतिक गलियारे में चर्चाओं का केन्द्र बने हुए है। इन सबके मध्य महाकौशल में कांग्रेस उनके प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद अधिक से अधिक सीट जीतने के लिये क्या रणनीति अपनाती है यह भी ध्यान देने वाली बात है। हालांकि उन्हें एक कमजोर संगठन मिला है जिसमें संपूर्ण रूप से ऊर्जा लाने के लिये काफी समय लगेगा फिर भी अगर मजबूत रोड मैप के साथ वह कार्य करते है तो लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग पर उन्हें संतोषप्रद सफलता मिलने की संभावना बन सकती है।
@रहीम खान