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Friday, November 22, 2024

शिव’राज’ सरकार मुश्किल मे, 3000 करोड़ का घोटाला उजागर

मध्य प्रदेश में व्यापम घोटाले की आंच अभी धीमी नहीं हुई थी कि शिवराज सरकार के लिए विधानसभा चुनावों से ठीक पहले एक और घोटाला चुनौती बनकर आ गया है। इस ई-टेंडर स्कैम के तहत सरकार पर कुछ प्राइवेट कंपनियों को फायदा पहुंचाने का आरोप है।

बताया गया है कि बड़े स्तर पर ऑनलाइन प्रक्रिया से छेड़छाड़ कर ऐसा किया गया है। आशंका जताई गई है कि यह घोटाला कई साल से चल रहा था, लेकिन इसका खुलासा इसी साल मई में हुआ है।

खास बात यह है कि मामले की जांच कराने वाले अधिकारी से चार्ज लेकर दूसरे अधिकारी को दे दिया गया है। ऐसे में जांच पर भी सवाल उठने लगे हैं। गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और ऐसे में यह घोटाला सामने आने से राज्य सरकार के लिए बड़ी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।

कम अंतर से टेंडर हारने पर शिकायत

इस साल मार्च में जल निगम की ओर से तीन कॉन्ट्रैक्ट दिए जाने थे। इनके लिए बोली लगाई गई थी। हमारे सहयोगी अखबार इकनॉमिक टाइम्स की पड़ताल में पता चला है कि मध्य प्रदेश जल निगम को चेताया गया था कि ऑनलाइन दस्तावेजों में छेड़छाड़ की जा रही है।

आरोप है कि इसमें प्राइवेट कंपनियों और शीर्ष नौकरशाही की रजामंदी शामिल है। ईटी के मुताबिक एक बड़ी टेक्नॉलजी और इंजिनियरिंग निर्माण कंपनी ने भी इस बारे में शिकायत की थी। इस कंपनी के हाथ से कुछ टेंडर बहुत कम अंतर से निकल गए थे। उन्होंने इंटरनल असेसमेंट के बाद शिकायत की थी।

ऑनलाइन पोर्टल से छेड़छाड़

जल निगम के एक अधिकारी ने स्टेट इलेक्ट्रॉनिक्स डिवेलपमेंट कॉर्पोरेशन (MPSEDC) से यह पता लगाने के लिए मदद मांगी कि ऐसा कैसे हुआ। MPSEDC ही उस पोर्टल को चलाता है। MPSEDC के मैनेजिंग डायरेक्टर मनीष रस्तोगी ने आंतरिक जांच कराई।

जांच में पता लगा कि तीन कॉन्ट्रैक्ट्स से जुड़ी नीलामी प्रक्रिया को इस तरह से बदला गया कि हैदराबाद की दो और मुंबई की एक कंपनी की बोली सबसे कम दिखाई दे। ये तीन कॉन्ट्रैक्ट राजगढ़ और सतना जिले में बहु ग्रामीण जलापूर्ति योजना से जुड़े थे। इन तीनों की कीमत 2,322 करोड़ रुपये थी।

जांच में पता चला कि अंदर के लोगों की मदद से इन कंपनियों ने पहले ही दूसरी कंपनियों की बोलियां देख लीं और फिर उनसे कम बोली लगाकर टेंडर ले लिया।

एक नहीं, कई विभागों में घोटाला

यहीं नहीं, रस्तोगी को जांच में यह भी पता चला कि लोक निर्माण विभाग, जल संसाधन विभाग, राज्य सड़क विकास प्राधिकरण और प्रॉजेक्ट इंप्लिमेंटेशन यूनिट के 6 प्रॉजेक्ट्स में भी ई-नीलामी से जुड़ी गड़बड़ियां की गई थीं।

उन्होंने सर्विस प्रवाइडर टाटा कंसल्टंसी सर्विसेज और ऐंटरेस सिस्टम को 6 जून को MPSEDC से किए गए समझौते का पालन नहीं करने के लिए नोटिस भेजा। टीसीएस को हेल्पडेस्क बनाने, हार्डवेयर और ट्रेनिंग का काम दिया गया था और ऐंटरेस को ऐप्लिकेशन डिवेलपमेंट और मेंटेनेंस का काम दिया गया था।

दोनों ने नोटिस का जवाब देते हुए यह माना है कि साइबर फ्रॉड हुआ है। हालांकि, दोनों ने पोर्टल में सेंध लगने की जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया है। MPSEDC ने बाद में सभी विभागों से 6 टेंडर रद्द करने को कहा है।

MPSEDC की आंतरिक जांच में OSMO IT सलूशन की भूमिका पर भी सवाल खड़े हुए। साल 2016 में पोर्टल के खराब प्रदर्शन के बाद इस कंपनी से संपर्क किया गया था। बताया गया है कि OSMO को उन्हीं आईडी के पासवर्ड दिए गए थे, जिनसे बोली को कम करने के लिए ऑनलाइन सिस्टम में सेंध लगाई गई।

उधर, OSMO के निदेशक वरुण चतुर्वेदी ने घोटाले में किसी भी तरह की भूमिका से साफ इनकार किया है। चतुर्वेदी ने बताया है कि उन्हें 2016 में टेंडर बनाने और देखने के लिए सीमित चीजों के पासवर्ड दिए थे।

उन्हें नहीं पता कि इन पासवर्ड्स का इस्तेमाल टेंडर्स से छेड़छाड़ करने के लिए कैसे किया गया। MPSEDC के ऑफिस में उन्होंने परफॉर्मेंस टेस्टिंग की और उसकी रिपोर्ट शेयर कर दी गई। बाद में आगे टेस्ट नहीं कराए गए और उन्हें काम से हटा दिया गया।

अचानक हटाए गए रस्तोगी

हैरान करने वाली बात यह रही कि रस्तोगी को उनकी ऑडिट रिपोर्ट आने के बाद अचानक प्रिंसिपल सेक्रटरी साइंस ऐंड आईटी के अतिरिक्त चार्ज से हटा दिया गया। उनकी जगह प्रमोद अग्रवाल को दे दी गई। रस्तोगी ने इस बारे में टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है। उन्होंने कहा कि उन्हें जो करना था वह कर चुके हैं और पिछले काम के बारे में बात नहीं करना चाहते।

राज्य के चीफ सेक्रटरी बीपी सिंह के निर्देश पर सभी 9 टेंडर्स की जांच इकनॉमिक ऑफेंस विंग (EOW) को दे दी गई। EOW के एक अधिकारी के मुताबिक, यह घोटाला 3000 करोड़ रुपये का है। बीपी सिंह ने बताया कि रस्तोगी छुट्टी पर थे और मामले के बारे में फौरन जानकारी चाहिए थी, इसीलिए किसी और को चार्ज दे दिया गया।

रिपोर्ट के बावजूद दर्ज नहीं FIR

हालांकि, टीसीएस और ऐंटरेस की आंतरिक जांच में यह बात साफ हो गई थी कि तीनों कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए डेटा के साथ छेड़छाड़ की गई लेकिन EOW ने प्राथमिक जांच ही दर्ज की है, एफआईआर नहीं।

MPSEDC और संबंधित कंपनियों के अधिकारियों से पूछताछ और डेटा की जांच शुरू हो गई है। बताया गया है कि सभी 9 टेंडर्स की फरेंसिक जांक की जाएगी, जिससे जिम्मेदारी तय की जा सके।

चुनावों को देखते हुए जांच में नरमी

उधर, सरकारी सूत्रों के कहना है कि आगामी चुनाव को देखते हुए पुलिस जांच में नरमी बरत रही है। एक ओर जहां रस्तोगी को पद से हटा दिया गया है, वहीं जांच के घेरे में मौजूद अधिकारी अभी भी अपनी जगह पर बने हुए हैं। ऐसे में निष्पक्ष जांच होने पर सवाल उठने लगे हैं। विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने भी मौका पाकर पीएम नरेंद्र मोदी को खत लिखकर मामले की जांच सीबीआई या सुप्रीम कोर्ट के निरीक्षण में कराने की मांग की है।

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