बहुचर्चित कठुआ सामूहिक दुष्कर्म व हत्याकांड में आज फैसला सुनाया जा रहा है। सात में से छह आरोपियों को दोषी करार दिया गया है। एक को बरी कर दिया गया है। वहीं मामले में सजा का एलान अभी बाकी है।
मंदिर के संरक्षक व ग्राम प्रधान सांझी राम, एसपीओ सुरेन्द्र कुमार, विशेष पुलिस अधिकारी दीपक खजूरिया, सब इंस्पेक्टर आनंद दत्ता, हेड कांस्टेबल तिलक राज और प्रवेश कुमार को दोषी करार दिया गया है। सांझी राम के बेटे विशाल को बरी कर दिया गया है।
हेड कांस्टेबल तिलक राज और उप निरीक्षक आनंद दत्ता ने कथित रूप से सांझी राम से 4 लाख रुपये लिए और सबूत नष्ट कर दिए थे।
देश को हिलाकर रख देने वाले इस मामले में ट्रायल 3 जून को पूरा हो गया था। मामले की सुनवाई जिला और सत्र न्यायाधीश तेजविंदर सिंह कर रहे हैं।
मामले में दाखिल की गई 15 पन्नों की चार्जशीट के अनुसार, कठुआ जिले के रसाना गांव में पिछले साल 10 जनवरी को आठ साल की एक बच्ची का अपहरण कर लिया गया था।
उसके बाद गांव के एक मंदिर में कथित तौर पर उसके साथ चार दिन दुष्कर्म किया गया और फिर लाठी से पीट कर हत्या कर दी गई।
किशोर आरोपी के खिलाफ मुकदमा शुरू होना अभी बाकी है, क्योंकि उसकी उम्र का निर्धारण करने वाली याचिका जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा हस्तक्षेप के बाद, किशोर आरोपी को छोड़कर सभी आरोपियों को गुरदासपुर जेल में स्थानांतरित कर दिया गया। बचाव पक्ष के वकीलों की संख्या को भी सीमित कर दिया गया था।
आरोपियों के खिलाफ जिला और सत्र न्यायाधीश ने बलात्कार और हत्या का आरोप लगाया था। अदालत ने रणबीर दंड संहिता के साथ, धारा 120 बी (आपराधिक साजिश) 302 (हत्या)और 376डी (सामूहिक दुष्कर्म) के तहत आरोप तय किए।
मामले को लेकर कठुआ में जब वकीलों ने क्राइम ब्रांच के अफसरों को चार्जशीट दाखिल नहीं करने दी तो सुप्रीम कोर्ट ने केस की सुनवाई राज्य से बाहर करने का आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एक जून 2018 से इस मामले की दैनिक आधार पर नियमित सुनवाई कठुआ से तीस किलोमीटर दूर पड़ोसी राज्य पंजाब के पठानकोट जिले में शुरू हुई।
आरोपियों को दोषी पाया जाता है तो उन्हें न्यूनतम आजीवन कारावास और अधिकतम मौत की सजा सुनाई जा सकती है।
मामले में तत्कालीन पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार का हिस्सा रहे भाजपा के दो मंत्रियों, चौधरी लाल सिंह और चंद्र प्रकाश गंगा ने आरोपियों के समर्थन में निकाली गई रैली में हिस्सा लिया था।
बाद में यह मामला सत्तारूढ़ गठबंधन के सहयोगियों पीडीपी और भाजपा के बीच विवाद का विषय बन गया, जिसके बाद दोनों मंत्रियों को अपना पद छोड़ना पड़ा था।
जम्मू के कठुआ में गांव रसाना की 8 साल की बच्ची 10 जनवरी 2018 को लापता हो गई थी। बच्ची को काफी तलाशने के बाद पिता ने 12 जनवरी को हीरानगर थाने में शिकायत दर्ज कराई।
लापता होने के 7 दिनों बाद 17 जनवरी को जंगल में बच्ची की लाश क्षत-विक्षत हालत में मिली।
बच्ची अपने परिवार के साथ रहती थी। खानाबदोश मुस्लिम समुदाय से थी। उस बकरवाल समुदाय से, जो कठुआ में अल्पसंख्यक है।
बच्ची के साथ हुई हैवानियत के विरोध में परिजनों ने प्रदर्शन किया और हाईवे जाम कर दिया। 18 जनवरी को एक आरोपी का सुराग लगा और उसे दबोच लिया गया।
22 जनवरी को पुलिस ने मामले की जांच क्राइम ब्रांच को सौंप दी। इस बीच कुछ लोग आरोपियों के पक्ष में खड़े हो गए।
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन (जम्मू) भी इस आंदोलन में शरीक हो गया। नतीजतन 9 अप्रैल को चार्जशीट दाखिल नहीं हो पाई। फिर क्राइम ब्रांच ने 10 अप्रैल को चार्जशीट दाखिल की।
वकीलों ने इसका विरोध करते हुए 11 अप्रैल और 12 अप्रैल को पूरे जम्मू-कश्मीर का बंद बुलाया और वे कठुआ जिला जेल के बाहर लगातार प्रदर्शन करते रहे।
पीड़ित परिवार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला कठुआ से पठानकोट की सेशन कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया।
कोर्ट ने 8 जून 2018 को सात आरोपियों के खिलाफ दुष्कर्म और हत्या के आरोप तय किए थे। केस में कुल 221 गवाह बनाए गए हैं। 55वें गवाह के रूप में पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर पेश हुए।
56वें गवाह के रूप में फोरेंसिक साइंस लैबोरेटरी के एक्सपर्ट को पेश किया गया। जब से केस की सुनवाई शुरू हुई, तब से अब तक सभी तारीखों पर सुनवाई की वीडियोग्राफी कराई गई है।