प्रयागराज : यूपी में डीजे बजाने पर हाईकोर्ट ने प्रतिबंध लगा दिया है। सबसे आश्चर्य की बात यह है कि डीजे को किसी भी तरीके से या किसी भी कार्यक्रम में नहीं बजाया जा सकेगा। यानी डीजे पर पाबंदी पूर्ण रूप से की गई है। यह बड़ा फैसला ध्वनि प्रदूषण के बढ़ते दायरे की वजह से एक याचिका पर सुनवाई के बाद आया है। हालांकि, अदालत के इस फैसला का बेहद ही व्यापक प्रभाव होगा। अब चाहे शादी-ब्याह हो या त्योहारों की धूम, जुलूस हो या धार्मिक यात्राएं हर जगह डीजे पर पाबंदी होगी
दरअसल, हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल हुई थी, जिसमें प्रयागराज के रिहायशी इलाके हासिमपुर रोड पर एलसीडी से ध्वनि प्रदूषण की शिकायत की गई थी। अदालत को बताया गया था कि याची की मां 85 वर्ष की है और एलसीडी की वजह से वह बहुत परेशान है, जबकि यहीं बगल में कई अस्पताल हैं, स्कूल हैं और घरों में बच्चों की पढ़ाई तक बाधित हो रही है। याची ने ध्वनि प्रदूषण को रोकने की कोई व्यवस्था न होने पर कार्रवाई की मांग की थी, जिस पर अदालत ने ध्वनि प्रदूषण पर बड़ा फैसला सुनाते हुए बड़े बदलाव के आदेश दिए हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इससे पूर्व भी डीजे पर इसी तरह का प्रतिबंध लगाया था, लेकिन तब नियमों में ढील दी गई थी और कहा गया था कि डीजे बजाने के लिए प्रशासनिक अनुमति लेनी होगी। जिसके चलते लोग निर्धारित प्रोफार्मा पर डीजे बजाने की अनुमति प्राप्त कर लेते थे और एक तरह से यह प्रतिबंध नियमों के फेर में फेल हो गया था। लेकिन इस बार हाईकोर्ट ने अनुमति देने पर ही पाबंदी लगा दी है। यानी अब सरकारी महकमा डीजे बजाने की अनुमति ही नहीं दे सकेगा। ऐसे में हाईकोर्ट ने अपने पहले ही दिए गए आदेश को एक तरीके से विस्तार दे दिया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डीजे पर प्रतिबंध लगाते हुए कहा है कि डीजे से ध्वनि प्रदूषण बहुत तेज हो रहा है। इससे मानव स्वास्थ्य बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। इस समय ध्वनि प्रदूषण की वजह से बच्चों और बुजुर्गों में ध्वनि प्रदूषण जनित बीमारियां तेजी से फैल रही हैं। जबकि अस्पतालों में मरीजों को भी इससे आघात पहुंच रहा है। ऐसे में ध्वनि प्रदूषण रोकने आवश्यक है। हाईकोर्ट ने यूपी के सभी जिलाधिकारियों को आदेशित किया है कि ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिए एक टीम बनाई जाए, जो न सिर्फ निगरानी रखे बल्कि आदेश का उल्लंघन करने पर कार्रवाई करे। हाईकोर्ट ने डीजे बजाने को ध्वनि प्रदूषण कानून से जोड़ते हुए कहा कि डीजे बजाना एक तरह से ध्वनि प्रदूषण कानून को तोड़ना है और अगर ऐसा किया जाता है तो दोषियों पर पांच साल तक की कैद और एक लाख रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुशील चंद्र श्रीवास्तव की ओर से दाखिल याचिका पर न्यायमूर्ति पीकेएस बघेल और न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया है कि ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण कानून भारतीय नागरिकों के मूल अधिकारों से जुड़ा हुआ है और अगर इस कानून का उल्लंघन होता है तो नागरिकों के मूल अधिकारों का हनन होगा। ऐसे में डीजे पर पूर्णत: प्रतिबंध के लिए जिलाधिकारी व्यवस्था सुनिश्चित करें और धार्मिक त्योहारों से पहले बैठक कर ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण कानून का कड़ाई से पालन कराएं। स्थानीय स्तर पर रोकथाम की जिम्मेदारी प्रत्येक थानाध्यक्ष की होगी।
हाईकोर्ट के आदेश के बाद अब अगर कोई डीजे बजाता हुआ पकड़ा गया तो उसके विरूद्ध ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण कानून के तहत मुकदमा दर्ज होगा। ध्वनि प्रदूषण का दायरा निर्धारित करने के लिये यूपी के सभी शहरी इलाकों को अलग अलग श्रेणी में बांटा जाएगा। जिसमें औद्योगिक, व्यवसायिक और रिहायशी या साइलेन्स जोन के तौर पर होंगे। ध्वनि प्रदूषण की शिकायत सुनने के लिये एक अलग से अधिकारी नियुक्त होगा, जिसका मोबाइल नंबर व अन्य ब्यौरा सार्वजनिक स्थलों पर सूचना बोर्ड लगाया जाएगा, ताकि लोग ध्वनि प्रदूषण होने पर खुद ही फोन कर अपनी शिकायत दर्ज करा सकें। ध्वनि प्रदूषण की शिकायत के लिए कंट्रोल रूम बनाने और टोल फ्री नंबर की व्यवस्था करने को कहा गया है। शिकायत पर तत्काल पुलिस मौके पर पहुंचेगी और डीजे बंद करा कर मुकदमा दर्ज करेगी। शिकायतकर्ता का नाम गोपनीय रखा जाएगा और बिना नाम के ही शिकायत दर्ज की जाएगी। हाईकोर्ट के आदेश की अवहेलना होने पर किसी भी व्यक्ति कोर्ट में अवमानना याचिका दाखिल करने की छूट होगी। शिकायत पर कार्रवाई न होने पर संबंधित थाना प्रभारी जवाबदेह होंगे। शिकायतकर्ता एसएमएस, व्हाट्सएप, ई-मेल या फोन से शिकायत दर्ज करा सकेंगे और इस पर तत्काल एक्शन होगा। ध्वनि प्रदूषण की शिकायत रजिस्टर पर दर्ज होगी और उस शिकायत पर क्या कार्रवाई हुई इसकी भी रिपोर्ट वहीं दर्ज होगी।